कलकत्ता हाईकोर्ट ने भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य को मारपीट मामले में अग्रिम जमानत दी

LiveLaw News Network

15 Oct 2021 7:10 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य को मारपीट मामले में अग्रिम जमानत दी

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता कैलाश विजयवर्गीय, आरएसएस सदस्य जिस्नू बसु और प्रदीप जोशी को मारपीट के एक मामले में अग्रिम जमानत दे दी।

    हाईकोर्ट ने उक्त नेताओं अग्रिम जमानत इस आधार पर दी कि मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं/जमानत आवेदकों को 25 अक्टूबर तक जमानत दी जानी चाहिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले की सुनवाई 20 अक्टूबर को होनी है।

    न्यायमूर्ति हरीश टंडन और न्यायमूर्ति कौशिक चंदा की खंडपीठ विजयवर्गीय सहित जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अलीपुर के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पीड़ित महिला द्वारा दायर शिकायत को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में मानने का निर्देश दिया गया था।

    संक्षेप में तथ्य

    पीड़ित महिला ने आरोप लगाया था कि विजयवर्गीय ने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया, जहां जमानत के आवेदकों ने एक के बाद एक उसके साथ बलात्कार किया। फिर उसे जबरदस्ती असहाय स्थिति में फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।

    इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि उसके बाद से उसे कई मौकों, विविध तिथियों और स्थानों पर 39 बार से ज्यादा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। इसके बाद उसने दिनांक 20 दिसंबर, 2019 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 341/506(ii)/34 और धारा 341/323/325/506/34 के तहत के तहत दो एफआईआर दर्ज कराई। हालांकि, कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई।

    इसके बाद, 12 नवंबर, 2020 को आईपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया गया, जिसे सीजेएम, अलीपुर ने खारिज कर दिया। उक्त आदेश को आपराधिक पुनर्विचार आवेदन दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई।

    सीजेएम, अलीपुर के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट द्वारा उक्त आपराधिक पुनर्विचार आवेदन की अनुमति दी गई थी। इसके बाद मामले को सीजेएम, अलीपुर को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया।

    अक्टूबर, 2021 को हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्देशों/आदेशों के आधार पर सीजेएम कोर्ट ने शिकायत को एफआईआर के रूप में मानने का निर्देश दिया।

    अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि महिला द्वारा दर्ज की गई दो शिकायतों में निचली अदालत के समक्ष उसके आवेदन में कथित अपराध की गंभीरता के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई।

    वहीं बसु के वकील ने तर्क दिया कि जांच एजेंसी द्वारा दो शिकायतों में दर्ज की गई क्लोजर रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आरोप राजनीतिक प्रतिशोध के कारण गढ़े गए।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों के तर्कों को ध्यान में रखा कि अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने में हाईकोर्ट के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से कमजोर और असंगति से प्रभावित है और उक्त आदेश अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया गया है।

    चूंकि मामले को 20 अक्टूबर, 2021 को सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है, अदालत का विचार है कि एक बार मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया तो इस समय उक्त पहलू की अनदेखी नहीं की जा सकती।

    कोर्ट ने कहा,

    "चूंकि वर्तमान मामले की शुरुआत इस न्यायालय के आदेश पर आधारित है, जिसका पालन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा संहिता की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन की अनुमति देने में किया जाता है, यह मामला काफी हद तक विशेष अवकाश के परिणाम पर निर्भर करता है। इसलिए हमें लगता है कि याचिकाकर्ताओं को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।"

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