कलकत्ता हाईकोर्ट ने संविदात्मक बकाया के भुगतान में ‌देर करने और सीमा के आधार पर देयता से बचने की राज्य की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की

Avanish Pathak

23 Dec 2022 3:44 PM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने संविदात्मक बकाया के भुगतान में ‌देर करने और सीमा के आधार पर देयता से बचने की राज्य की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की

    Calcutta High Court 

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को निजी संस्थाओं की संविदात्मक बकाया राशि के भुगतान में विलंब और बाद में समय-बाधित के रूप में उन दावों को खारिज करने के राज्य सरकार की "ओपन सिक्रेट" पर चिंता व्यक्त की।

    जस्टिस अमृता सिन्हा ने कहा कि यदि इस प्रथा पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो वह समय दूर नहीं है जब राज्य को "खराब पे मास्टर" के रूप में ब्रांड कर दिया जाएगा और बिजनेसमैन राज्य और उसके अधीनस्थों को सेवा प्रदान करने से इनकार कर देंगे।

    जज ने कहा,

    "यह राज्य का दायित्व है कि वह उन सभी को भुगतान करे, जो सेवा के बदले में राज्य से पैसा लेते हैं।"

    न्यायालय एक निजी सेवा प्रदाता और प्रतिवादी कोलकाता नगर निगम के बीच वर्ष 2016 में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति के लिए हुए एक वाणिज्यिक अनुबंध के संबंध में दायर एक रिट याचिका का निस्तारण कर रहा था। नगर निगम संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत "राज्य" के दायरे के तहत एक इकाई है।

    ऐसी व्यवस्था के तहत, केएमसी याचिकाकर्ता कंपनी को वस्तु और संबंधित सेवाओं का भुगतान करने के लिए बाध्य था। विवाद 2,87,63,815 रुपये के भुगतान को लेकर हुआ, जो स्पष्ट रूप से उक्त अनुबंध के तहत याचिकाकर्ता को देय था।

    शुरुआत में न्यायालय ने माना कि दावा समय बाधित था और उक्त देय राशि के भुगतान के लिए कोई निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया।

    हालांकि, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि दुर्लभ अवसरों को छोड़कर, राज्य को संविदात्मक बकाया राशि के भुगतान को जारी करने में विलंब करने की आदत है। एक परिणाम के रूप में, याचिकाकर्ता ने भी बिलों के समय पर भुगतान पर जोर नहीं दिया और अनुबंध की शर्तों के अनुसार नहीं किए जाने पर तदर्थ भुगतान स्वीकार किया।

    कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राज्य के अधिकारियों को दावेदारों के वैध दावे को नकारने के लिए तकनीकी दलीलों को नहीं अपनाना चाहिए, बशर्ते दावा निर्धारित अवधि के भीतर दिया गया हो और इसमें अनुचित विलंब या कमी न हो।

    मामले की खूबियों पर अदालत ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि पार्टियों के बीच उक्त वाणिज्यिक व्यवस्था के भीतर भुगतान के लिए संविदात्मक रूप से निर्धारित समय सीमा के आलोक में लिमिटेशन एक्ट का अनुच्छेद 113 लागू होगा।

    मामलाः हेरिटेज इंफ्रा सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम कोलकाता नगर निगम और अन्य, WPO 1076 of 2021

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