कलकत्ता हाईकोर्ट ने जैविक पिता के बजाय मृतक मां की दोस्त को 4 साल की बच्ची की कस्टडी दी, पिता को मुलाकात का अधिकार दिया

LiveLaw News Network

13 Dec 2021 10:06 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने जैविक पिता के बजाय मृतक मां की दोस्त को 4 साल की बच्ची की कस्टडी दी, पिता को मुलाकात का अधिकार दिया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में साढ़े चार साल की एक बच्‍ची की कस्टडी जैविक पिता को सौंपने के बजाय मृतक मां की एक दोस्त को सौंप दी। हालांकि, कोर्ट ने जैविक पिता को मुलाकात का अधिकार प्रदान किया।

    कोर्ट ने माना कि जैविक पिता के साथ बच्ची के संबंध को उसकी मासूम उम्र से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

    जस्टिस बिवास पटनायक और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच ने स्वीकार किया कि

    जबकि बेटी अपनी मां की दोस्त के साथ बखूबी एडजस्ट कर चुकी है, फिर भी जैविक पिता के साथ उसके संबंध को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि बच्ची और उसके जैविक पिता के बीच लगाव को कम उम्र से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसा लगाव पिता के अधिकार का दावा नहीं है बल्कि एक नाबालिग के पूर्ण विकास की दिशा में एक कदम है। "

    पृष्ठभूमि

    मौजूदा मामले में बच्‍ची की मां ने सात मार्च 2018 को आत्महत्या कर ली थी। उसके बाद बच्ची के जैविक पिता को आत्महत्या पर दर्ज आपराधिक मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद पिता ने नाबालिग की कस्टडी की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था, जो उस समय अपनी नानी काजल साहा की कस्टडी में थी।

    निचली अदालत ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए निर्देश दिया कि बच्ची को नानी की कस्टडी में तब तक रहना चाहिए जब तक कि वह 15 साल की नहीं हो जाती और खुद की कस्टडी के संबंध में एक सचेत निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हो जाती है। इस आदेश को बाद में मौजूदा याचिका के माध्यम से जैविक पिता ने अपील की थी।

    अपील के विचाराधीन रहने के दौरान नानी ने भी आत्महत्या कर ली। ऐसी परिस्थितियों में, बच्‍ची को पड़ोसी और बच्चे की मां के दूर के रिश्तेदार जूली रॉय की देखभाल और हिरासत में रखा गया था।

    बहस

    कार्यवाही के दौरान, पारिवारिक मित्र जूली रॉय की ओर से यह बयान दिया गया था कि परिवार में किसी भी जिम्मेदार सदस्य की अनुपस्थिति में बच्‍ची को उसकी कस्टडी में रखा गया था।

    इसके अलावा यह भी कहा गया था कि जूली रॉय का जन्म से ही बच्चे के साथ गहरा संबंध रहा है और बच्ची उसकी देखभाल और कस्टडी में सहज है। अदालत को आगे बताया गया कि जूली रॉय ने हावड़ा के जिला जज के समक्ष बच्‍ची की संरक्षकता के लिए एक आवेदन भी दायर किया था।

    दूसरी ओर, अपीलकर्ता/पिता की ओर से यह तर्क दिया गया कि बच्ची की कस्टडी उसे सौंप दी जानी चाहिए क्योंकि वह जैविक पिता है और इस प्रकार वर्तमान परिस्थितियों में बच्ची की देखभाल करने के लिए सबसे उपयुक्त है। तेजस्विनी गौड़ और अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया गया था।

    टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरू में ही नोट किया कि पड़ोसी जूली रॉय का बच्ची के विकास के साथ दिन-प्रतिदिन का जुड़ाव है और इस तरह यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्ची उसके साथ की आदी है।

    न्यायालय ने स्वीकार किया कि बच्‍ची की कस्टडी का उसके पिता को तत्काल हस्तांतरण उसके लिए दर्दनाक हो सकता है, फिर भी उसके समग्र विकास के लिए नाबालिग को उसके पिता के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण था।

    न्यायालय ने निर्देश दिया,

    " ऐसी स्थिति को सक्षम करने और बच्ची के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिए, हम निर्देश देते हैं कि जूली रॉय लगातार दो शनिवारों, यानी 20 नवंबर, 2021 और 27 नवंबर, 2021 को सुबह 9 बजे बच्ची को अपीलकर्ता को सौंप दें और अपीलकर्ता बच्ची को जूली रॉय को उन तारीखों पर रात 9 बजे तक उन्हें वापस सौंप दे।

    बच्चे को सौंपना और वापस लेना, जैसा कि ऊपर बताया गया है, विद्वान एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड की उपस्थिति में होगा। उम्मीद की जाती है कि दोनों पक्ष इस आदेश और बच्चे के सर्वोत्तम हित के अनुसार कार्य करेंगे।"

    इसके अलावा कोर्ट ने 29 नवंबर, 2021 के आदेश के तहत एक बाल कल्याण अधिकारी को किसी भी पक्ष की अनुपस्थिति में विशेष रूप से बच्चे के साथ बातचीत करने का निर्देश दिया। बाल कल्याण अधिकारी को इस संबंध में अगली सुनवाई की तिथि को सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया।

    एडवोकेट श्रीजीब चक्रवर्ती ने हस्तक्षेपकर्ता जूली रॉय का प्रतिनिधित्व किया।

    केस शीर्षक: तुषार कांति दास बनाम काजल साहा

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