कलकत्ता हाईकोर्ट ने लापरवाही से इकबालिया बयान दर्ज करने पर जताई नाराजगी, लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ जांच का आदेश

LiveLaw News Network

7 Sep 2020 7:12 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने लापरवाही से इकबालिया बयान दर्ज करने पर जताई नाराजगी, लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ जांच का आदेश

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने इकबालिया बयानों की रिकॉर्डिंग पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं हैं। हाईकोर्ट ने जांच प्राधिकरण द्वारा एक अभियुक्त के मुख्य बयान को दर्ज किए जाने के "उदासीन और संवेदनाहीन तरीके" पर गंभीर नाराजगी व्यक्त करते हुए उक्त टिप्पाण‌ियां की हैं।

    जस्ट‌िस सुव्रा घोष और जॉयमल्या बागची की खंडपीठ ने कहा कि "अपराध का सच्‍चा और पूरा खुलासा इकबालिया बयान की आत्मा है," जबकि वर्तमान मामले में, अभियुक्त का तथाकथित मुख्य बयान "रहस्य से ‌घिरा" है और अदालत के भरोसा को पैदा नहीं कर पा रहा है। " कोर्ट ने यह टिप्पणी नाबालिग बेटी की हत्या की आरोपी एक अभ‌ियुक्त संध्या मालू की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

    जांच अधिकारी के अनुसार, सुश्री मालू ने इकबालिया बयान दिया था, जिसमें उसने दावा किया था कि कथित हत्या के बाद, उसने लड़की के शव को अपने अपार्टमेंट में छुपा रखा था और वह यह पुलिस को भी दिखा सकती है।

    जांच के नतीजे

    अदालत ने अपराध की भीषणता पर अपनी विचार स्पष्ट किए, जिसमें एक नाबालिग की हत्या की गई थी और यह माना कि जिस तरह से अभियुक्त के इकबालिया बयान दर्ज किए गए हैं, उससे इसकी प्रामाणिकता "संदिग्ध" प्रतीत हो रही है।

    कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता के तथाकथित प्रमुख बयान को, जिसमें शव की कथित बरामदगी और अपराध के हथियार के कथित बरामदगी के संबंध में निर्णायक सबूत शामिल हैं, को लापरवाही से दर्ज किया गया प्रतीत होता है।

    अपराध का सच्चा और पूरा खुलासा इकबालिया बयान की आत्मा है। उक्त बयान में में ऐसा कोई खुलासा नहीं किया गया है, जबकि कथित बयान "हत्या करने के बाद" जैसे शब्दों के साथ शुरु होता हैं।"

    कोर्ट ने कहा कि कलकत्ता पुलिस रेगुलेशंस के रेगुलेशन 99 के संदर्भ में जांच प्राधिकारी ने इकबालिया बयान दर्ज नहीं किया है, जो कि निम्नानुसार है:

    -इकबालिया बयानों का सत्यापन किया जाना चाहिए

    -इकबालिया बयान प्राप्त करने में उत्पीड़न या चालाकी से बचा जाना चाहिए

    -पहले इकबालिया बयान प्राप्त करना और बाद में उचित सबूत प्राप्त करना, कार्यवाही या उचित अनुक्रम के खिलाफ है। (हालांकि, यदि इकबालिया बयान स्वेच्छा से दिया गया है, तो यह पता लगाने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए कि क्या बयान के किसी भी बिंदु को साक्ष्य के जर‌िए सत्यापित किया जा सकता है)

    -इकबालिया बयान दर्ज करने वाला अधिकारी तुरंत बयान देने वाले व्यक्ति को निर्धारित मजिस्ट्रेट के पास भेज देगा ताकि बयान को न्यायिक रूप से दर्ज किया जा सके।

    कोर्ट ने कहा कि मामले की परिस्थितियों में इकबालिया बयान न्यायिक विश्वास को प्रेरित नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि शव की बरामदगी और अन्य सामान, उस स्थान पर थे जो कि परिवार के अन्य सदस्यों के नियंत्रण में था।

    कोर्ट ने ऐसी "लापरवाही" के आलोक में याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को 10,000/ - रु के बॉन्ड और दो सुनिश्चितियों, जिनमें से एक स्थानीय होना चाहिए और संबंधित न्यायालय की संतुष्टि हो, को प्रस्तुत करने की शर्त के साथ अनुमति प्रदान कर दी।

    कोर्ट ने पुलिस आयुक्त, कोलकाता को मामले की जांच और विशेष रूप से इकाबाल‌िया बयान की रिकॉर्डिंग में बरती गई लापरवाही की "तटस्‍थ" जांच करने का आदेश दिया।

    अदालत ने कहा कि यदि जांच अधिकारी अपने कृत्यों को स्पष्टीकरण न दे तो उसके खिलाफ उचित अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए। साथ ही कोर्ट ने पुलिस आयुक्त को अगली तारीख तक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए मामले को जासूस विभाग, लालबाजार को स्थानांतरित कर दिया।

    मामले का विवरण

    केस टाइटल: संध्या मालू बनाम राज्य

    केस नं: सीआरएम नंबर 5973/2020

    कोरम: जस्ट‌िस सुव्रा घोष और जस्ट‌िस जोमाल्या बागची

    प्रतिनिधित्व: एडवोकेट मधुमिता बसाक (याचिकाकर्ता के लिए); अधिवक्ता प्रसून दत्ता और संतनु देब रॉय (राज्य के लिए)

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