कलकत्ता हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी व्यक्ति को राहत देने से इनकार किया, कहा- ऐसे मामले रद्द करने से न्याय की हानि होगी

Shahadat

19 Sep 2023 5:15 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी व्यक्ति को राहत देने से इनकार किया, कहा- ऐसे मामले रद्द करने से न्याय की हानि होगी

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया है, जिस पर नाबालिग लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। उस व्यक्ति उक्त व्यक्ति प्यार करता था और कथित तौर पर उसे शारीरिक और मानसिक यातना देने के साथ-साथ उससे पैसे की मांग भी कर रहा था।

    आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    जस्टिस शंपा (दत्त) पॉल की एकल पीठ ने ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करते समय आईपीसी की धारा 305 का ध्यान रखने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    वर्तमान मामले में प्रथम दृष्टया यह रिकॉर्ड पर है कि घटना (कथित आत्महत्या) की तारीख पर पीड़िता नाबालिग थी। इस प्रकार प्रथम दृष्टया कथित अपराध में आईपीसी की धारा 305 के तहत आवश्यक सामग्रियां रिकॉर्ड में हैं। तदनुसार, ट्रायल जज कानून के अनुसार विचार और आरोप तय करने के समय या संबंधित चरण में रिकॉर्ड पर मौजूद उक्त सामग्री पर विचार करेगा। इस प्रकार वर्तमान मामले को कानून के अनुसार तय करने के लिए मुकदमे की ओर आगे बढ़ना होगा, क्योंकि इस मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रथम दृष्टया सामग्री है। इस तरह के मामले रद्द करने से न्याय की हानि होगी।

    याचिकाकर्ता के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि ट्रायल जज इस बात को समझने में असफल रहे कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोप को साबित नहीं करती है। भले ही याचिकाकर्ता के खिलाफ लिखित शिकायत को सच मान लिया जाए, फिर भी कोई मामला सामने नहीं आएगा। कथित अपराधों से संबंधित याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला बनाया गया है।

    वकील ने प्रस्तुत किया कि आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध मानने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा उकसावे के कृत्य को साबित करना होगा, लेकिन वर्तमान मामले में आरोप पत्र की कोई भी सामग्री याचिकाकर्ता द्वारा पीड़ित को उकसाने की ओर इशारा नहीं करती है।

    राज्य ने केस डायरी रखी और प्रस्तुत किया कि मामले की सुनवाई के लिए आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री रिकॉर्ड पर रखी गई है।

    कोर्ट ने केस डायरी से पाया कि कथित अपराध के समय नाबालिग 15 साल की थी और केस डायरी में प्रथम दृष्टया सामग्री के साथ-साथ याचिकाकर्ता के नाबालिग पीड़िता के साथ संबंधों से संबंधित विशिष्ट आरोप है।

    दक्साबेन बनाम गुजरात राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए अदालत ने आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया और मामले को सुनवाई के लिए भेज दिया।

    केस टाइटल: अमित पोली बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।

    केस नंबर: सीआरआर 809/2020

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