'जहां तक हम भारतीयों का संबंध है तो बम्स प्राइवेट बॉडी पार्ट हैं' : POCSO कोर्ट ने 22 वर्षीय आरोपी को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया

LiveLaw News Network

20 Feb 2021 11:30 AM GMT

  • जहां तक हम भारतीयों का संबंध है तो बम्स प्राइवेट बॉडी पार्ट हैं : POCSO कोर्ट ने 22 वर्षीय आरोपी को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया

    मुंबई की एक विशेष पाॅक्सो कोर्ट ने माना है कि एक महिला का पिछला भाग(नितंब) भी उसका 'प्राइवेट पार्ट' है और जो व्यक्ति इसे छूता है वह यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए जिम्मेदार होगा।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एमए बारालिया की अदालत ने माना कि,

    ''निजी भाग की व्याख्या इस संदर्भ में की जाती है कि हमारे समाज में इसका क्या अर्थ है। हो सकता है कि गूगल बम्स की निजी अंग के रूप में व्याख्या न करता हो,जैसा कि आरोपी के वकील ने दलील दी है, लेकिन हम भारतीयों के संबंध में यह व्याख्या अभी तक स्वीकार्य नहीं है।"

    अदालत 10 वर्षीय लड़की के पिता की तरफ से दायर एक आपराधिक मामले पर विचार कर रही थी। पीड़ित लड़की ने शिकायत की थी कि एक लड़के ने मंदिर की तरफ जाते हुए रास्ते में उसके नितंब को छुआ था।

    पृष्ठभूमि

    यह अभियोजन पक्ष का मामला था कि जब पीड़िता और उसकी दोस्त मंदिर की ओर जा रहे थे, तो पास में बैठे चार लड़कों के एक समूह में से काली टी-शर्ट पहने एक लड़का उसके पास पहुँचा और उसके प्राइवेट पार्ट को छुआ। यह आरोप लगाया गया था कि इस घटना के बाद, सभी लड़के हंसने लगे और पीड़िता वापस अपने घर चली गई।

    यह दावा किया गया कि पीड़िता ने अपनी मां को घटना सुनाई, जिसने बाद पीड़िता के पिता को फोन किया गया और उसे बताया कि किसी ने उसकी बेटी को छेड़ा है।

    इसके बाद, पिता घर वापस आए और पीड़िता को उस स्थान पर ले गए जहां उसने काली टी-शर्ट पहने लड़के की तरफ इंगित किया था।

    इसके बाद, आईपीसी की धारा 354 (महिला को अपमानित करने के इरादे से हमला करना या आपराधिक बल) और 354ए (यौन उत्पीड़न) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012, (पाॅक्सो ) अधिनियम की धारा 10 (यौन हमला) के तहत किए गए अपराध के संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जिसके बाद अगले दिन 22 साल के आरोपी को गिरफ्तार किया गया था।

    बहस

    बचाव पक्ष ने सभी आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि आरोपी को मामले में झूठा फंसाया गया था। आरोपी ने न्यायालय के समक्ष निम्नलिखित मुद्दे उठाएः

    -जांच अधिकारी, चश्मदीद गवाह के बयान को रिकॉर्ड करने में विफल रहा है, खासकर उस सहेली का बयान,जिसके साथ पीड़िता मंदिर जा रही थी।

    -जांच अधिकारी की ओर से उस आरोपी के किसी भी दोस्त का बयान दर्ज करने की कोशिश नहीं की गई जो उसके साथ थे।

    -टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड का उपयोग यह साबित करने के लिए नहीं किया गया कि आरोपी वही लड़का था जिसने पीड़िता को छुआ था।

    - नितंब एक निजी अंग नहीं है,जैसा कि पीड़िता ने बताया है।

    -पीड़िता के पिता के मुताबिक, उन्हें उनकी पत्नी का फोन आया, जिसमें बताया गया कि किसी ने उनकी बेटी को छेड़ा था। ''छेड़खानी'' और ''छूने'' के बीच बहुत अंतर है।

    कोर्ट का निष्कर्ष

    यौन उत्पीड़न करने का इरादा

    शुरुआत में ही अदालत ने आरोपी की इन दलीलों को खारिज कर दिया कि नितंब या बम्स एक निजी अंग नहीं है। कोर्ट ने माना कि निजी शब्द की व्याख्या भारतीय संदर्भ में की जानी चाहिए और कहा कि,

    ''अभियुक्त ने उसके बम्स, प्राइवेट पार्ट को छुआ था, जाहिर है कि ऐसा उसने उसके साथ यौन उत्पीड़न करने के इरादे से किया ... आरोपी ने उसके नितंब को छुकर ,पूर्ण ज्ञान और इरादे के साथ उसकी शालीनता को भंग करने और उस पर यौन हमला करने का कार्य किया था।''

    इस संदर्भ में, न्यायालय ने पाॅक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत ''यौन हमले'' की परिभाषा का उल्लेख किया। इस धारा के प्रावधान बताते हैं किः

    ''जो कोई भी यौन इरादे से बच्चे के योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूने के लिए कहता है या वह यौन इरादे से कोई और ऐसा कार्य करता है, जिसमें बिना पेनिट्रेशन के शारीरिक संपर्क शामिल हो, यौन हमला करना कहा जाता है।''

    इस मामले में, अदालत ने उल्लेख किया कि अभियुक्त ने लड़की की योनि, स्तन या गुदा को नहीं छुआ था, बल्कि उसके नितंब को छुआ था। अदालत ने कहा कि,

    ''स्पर्श करना, जैसा कि पाॅक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 7 के तहत कहा गया है, अगर यह अन्य अंगों के संबंध में है, जिन्हें वर्गीकृत किया गया है, तो यह यौन इरादे के साथ होना चाहिए। तो जाहिर है कि लड़की के नितंब को यौन इरादे के साथ ही छुआ गया होगा।''।

    यह भी कहा गया है कि अभियुक्त और उसके दोस्तों का बाद का आचरण, जो पीड़िता पर हंस रहे थे, उनके मन की स्थिति का भी संकेत दे रहा था। कोर्ट ने कहा कि,

    ''पहले भी अभियुक्त उस पर हंसता था और फिर उसे छुना,यह सब यौन इरादे से किया गया था,जो एक मौके की तलाश में था। यौन इरादा मन की स्थिति है, जिसे जरूरी नहीं कि प्रत्यक्ष सबूतों से साबित किया जाए, इस तरह के इरादे का मामले की परिस्थितियों से अनुमान लगाया जाना चाहिए।''

    अदालत ने कंवरपाल सिंह गिल (जिसे बट स्लैपिंग के मामले के रूप में भी जाना जाता है) के मामले का उल्लेख किया, इस मामले में निचली अदालत ने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक को एक आईएएस अधिकारी व मामले की पीड़िता के पिछले भाग(पॉस्टिरीएर) पर थप्पड़ मारने के लिए दोषी ठहराया गया था। उक्त सजा को अपील में सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही ठहराया था।

    इस मामले में उसी सादृश्यता को चित्रित करते हुए, अदालत ने कहा,

    ''जैसा कि घटना के समय पीड़िता 10 साल का बच्ची थी, पाॅक्सो अधिनियम के प्रावधान लगाए गए क्योंकि पीड़िता के पीछे के हिस्से को छूआ गया था। इस प्रकार अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा है कि अभियुक्त ने उक्त कार्य को यौन इरादे और उसकी शालीनता को भंग करने के लिए अंजाम दिया है।''

    बम्स को छूना केवल छेड़खानी नहीं

    अदालत ने आरोपी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि कथित मामला केवल छेड़खानी की घटना थी। कोर्ट ने माना कि,

    ''अपनी भाषा में पीड़िता ने अपने माता-पिता से और पुलिस के समक्ष बताया था कि आरोपी ने उसके प्राइवेट पार्ट को छुआ था। प्रासंगिक समय में, वह मुश्किल से 10 साल की थी। इसलिए उसने अपनी भाषा में उस व्यवहार को व्यक्त किया। इसलिए कोई भ्रम नहीं हो सकता कि न केवल उसके साथ छेड़खानी हुई थी,बल्कि आरोपी ने उसे अनुचित तरीके से छुआ था।''

    जहां तक पीड़िता के माता-पिता के बीच फोन पर हुई बातचीत का संदर्भ है, जहां उसकी मां ने कहा था कि किसी ने उनकी बेटी को ''छेड़ा'' है, कोर्ट ने कहा,

    ''फोन काॅल प्राप्त होते ही पिता का तुरंत दौड़कर घर आना,यह दर्शाता है कि उनकी बेटी के साथ छेड़खानी से ज्यादा गंभीर कुछ हुआ था। यह टेलीफोन पर बातचीत थी, इसलिए यह स्वाभाविक है कि पत्नी ने विवरण देने के बजाय फोन पर बस यही कहा कि, उनका बेटी को किसी ने छेड़ा है। फोन पर विवरण देने से बचने का मतलब यह नहीं है कि बेटी को सिर्फ छेड़ा गया है और उसे छुआ नहीं गया था।''

    जांच की निर्बलताओं की कीमत का भुगतान पीड़िता क्यों करें?

    अभियुक्त ने अभियोजन पक्ष के मामले को यह कहकर टालने का प्रयास किया था कि (1) न तो उसके दोस्तों और न ही पीड़िता की दोस्त से पूछताछ की गई थी (2) कोई निर्णायक सबूत नहीं था कि यह वही लड़का था जिसने पीड़ित के बम्स को छुआ था।

    कोर्ट ने माना कि अन्य चश्मदीद गवाहों से पूछताछ न करना मामले के लिए घातक नहीं होगा। जहां तक पीड़िता की दोस्त का संबंध है, न्यायालय ने कहा कि,

    ''बहुत कम लोग इस तरह की घटना में शामिल होना पसंद करते हैं, भले ही घटना उन्होंने देखी हो। इसलिए केवल, इस कारण से कि इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं हैं और जो दोस्त पीड़िता के साथ थी,उसकी गवाही नहीं करवाई गई, पीड़िता के बयान को नकारने का कारण नहीं बन सकते हैं।''

    आरोपी के दोस्तों के संबंध में अदालत ने कहा,

    ''यह मामला नहीं है कि चार लड़कों में से किसी ने भी पीड़िता को छेड़ा नहीं था और न ही उसे अनुचित तरीके से छुआ था। एक लड़के ने निश्चित रूप से उसे अनुचित तरीके से छुआ था। सवाल यह है कि उक्त लड़का कौन था? अगर उक्त लड़का आरोपी के अलावा अन्य था तो आरोपी को अपने उस दोस्त का नाम अदालत के समक्ष बताना होगा जो घटना की तारीख पर उसके साथ था और उसने पीड़ित को अनुचित तरीके से छुआ था।''

    अंत में, अदालत ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि यह आरोपी ही है जिसने पीड़िता को अनुचित तरीके से छुआ था। कोर्ट ने कहा कि,

    ''पीड़िता के अनुसार, उक्त विशेष लड़का काली टी-शर्ट पहने हुए था। पीड़िता ने अपने पिता के सामने विशेष रूप से काली टी-शर्ट पहने हुए लड़के की तरफ इशारा किया था। यह रिकॉर्ड की बात है कि पुलिस ने आरोपी से उक्त काली टी-शर्ट को बरामद नहीं किया ताकि अपनी पहचान की पुष्टि की जा सकें। मेरे लिए, यह पुलिस की जांच में कमी है और निर्दोष पीड़िता इसकी लागत का भुगतान नहीं करेगी। जैसे ही आरोपी को अगले दिन गिरफ्तार किया गया और उसे पीड़िता के पिता को दिखाया गया, उस समय आरोपी ने वहीं काले रंग की टी-शर्ट पहन रखी थी जो उसने घटना की तारीख पर पहनी थी। इसलिए अदालत के लिए आरोपी की पहचान उचित संदेह से परे स्थापित हो गई है।''

    उपरोक्त के मद्देनजर, आरोपी को पाॅक्सो अधिनियम और आईपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एक महिला के यौन उत्पीड़न और उसकी शालीनता भंग करने के लिए दोषी ठहराया गया और उसे पांच साल के कठोर कारावास की सजा दी गई।

    केस का शीर्षकः स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम सहर अली शेख

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