सिस्टर अभया केसः 28 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने प्रीस्ट और नन को हत्या का दोषी पाया

LiveLaw News Network

22 Dec 2020 9:15 AM GMT

  • सिस्टर अभया केसः 28 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने प्रीस्ट और नन को हत्या का दोषी पाया

    28 साल पुराने सिस्टर अभया हत्या मामले में केरल की एक अदालत ने सोमवार को अपना फैसला सुनाते हुए आरोपियों को दोषी करार दिया।

    तिरुवनंतपुरम की एक विशेष सीबीआई अदालत ने कैथोलिक चर्च के प्रीस्ट फादर थॉमस कोट्टूर और नन सिस्टर सेफी को इस हत्या के मामले में दोषी पाया है।

    फैसले की पूरी प्रति जारी होने के बाद तर्क और अदालत के निष्कर्षों का विवरण ज्ञात होगा।

    सीबीआई के विशेष न्यायाधीश के सनल कुमार इस मामले में मंगलवार को सजा पर अपना फैसला सुनाएंगे।

    अगस्त 2019 में शुरू हुए मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के नौ गवाह अपने बयानों से मुकर गए थे।

    सीबीआई मामले के अनुसार, सिस्टर अभया को आरोपियों के अंतरंग संबंधों के बारे में पता चल गया था। इसलिए उसकी हत्या कर दी गई।

    इस मामले के एक अन्य आरोपी, फादर जोस पुथरीकायिल को पिछले साल सीबीआई कोर्ट ने आरोपमुक्त कर दिया था। पुथरीकायिल को आरोपमुक्त करते हुए सीबीआई अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ मामले को आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री लाने में विफल रहा है। पुथरीकायिल को आरोपमुक्त करने के सीबीआई कोर्ट के फैसले अपील हाईकोर्ट में दायर की थी,परंतु हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

    लेकिन कोर्ट ने कोट्टूर और सेफी को आरोपमुक्त किए जाने की दलीलों को खारिज कर दिया था और कहा था कि प्रथम दृष्टया अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त आधार है कि इन दोनों ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूत मिटाना) रिड विद 34 (कई व्यक्तियों द्वारा एक ही इरादे को आगे बढ़ाने के लिए किया गया कार्य)के तहत दंडनीय अपराध किए हैं। उनकी डिस्चार्ज याचिकाओं को खारिज करने के फैसले पर बाद में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मोहर लगा दी थी।

    केरल पुलिस विशेष शाखा के एक पूर्व अधिकारी के टी माइकेल, जिन्हें सबूत नष्ट करने का आरोपी बनाया गया था, को भी पिछले साल अदालत ने आरोपमुक्त कर दिया था।

    सिस्टर अभया के माता-पिता का चार साल पहले निधन हो गया था।

    इस साल अक्टूबर में, हाईकोर्ट ने दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई को तेज करने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति वी जी अरुण की एकल पीठ ने कहा था कि ''यह देखना निराशाजनक है कि 1992 के अपराध से संबंधित आपराधिक कार्यवाही को अंतिम रूप देना बाकी है, चाहे वह प्रोविडेंस या डिजाइन के कारण हो।'' न्यायालय ने महामारी की स्थिति को देखते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाहों से जिरह की अनुमति दी थी।

    इस साल की शुरुआत में, केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि आरोपियों पर किए गए नार्को-एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग प्रक्रिया के परिणामों को सबूतों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अलेक्जेंडर थॉमस की एकल पीठ ने कहा था किः

    ''.. अगर यह मान लिया जाए कि नार्को टेस्ट उनकी सहमति के आधार पर किए गए थे, क्योंकि इस तरह के परीक्षणों के दौरान प्रतिक्रिया पर कर्ता (subject)का सचेत नियंत्रण नहीं होता है, इसलिए जब तक कि अभियोजन एजेंसी सूचना सामग्री देने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा नहीं करती है कि सूचना सामग्री बाद में टेस्ट के परिणामों की स्वैच्छिक प्रशासन की सहायता से खोजी गई है,इसे तभी साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार साक्ष्य के रूप में दर्ज किया जा सकता है, उस क्षेत्र में कोई भी सबूत देने का कोई सवाल ही नहीं है।

    ऐसा करना, अदालत द्वारा अभियोजन पक्ष को सबूतों के संवैधानिक रूप से निषिद्ध क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति देने जैसा होगा और साथ ही आत्म-उत्पीड़न के खिलाफ एक अभियुक्त के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार व भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के सुनहरे प्रावधानों की परिकल्पना के तहत चुप रहने का अधिकार का उल्लंघन के समान होगा।''

    पृष्ठभूमि

    सिरो मालाबार कैथोलिक चर्च की नन सिस्टर अभया 27 मार्च, 1992 को कोट्टायम में पाइअस टेंथ कॉन्वेंट के कुएं में मृत पाई गईं थी। वह 18 वर्ष की थी, जो तब प्री-डिग्री कोर्स की पढ़ाई कर रही थी।

    प्रारंभ में, मामले की जांच स्थानीय पुलिस और राज्य अपराध शाखा द्वारा की गई थी, जिसने निष्कर्ष निकाला था कि अभया ने आत्महत्या की थी। सीबीआई ने 1993 में स्थानीय पुलिस से मामले को संभालने के बाद अलग-अलग समय में तीन क्लोजर रिपोर्ट दायर की।

    1996 में, सीबीआई ने अनिर्णायक निष्कर्षों के साथ अंतिम रिपोर्ट दायर की और यह नहीं बता पाई थी कि क्या सिस्टर अभया की मौत मानव हत्या थी या आत्महत्या? इस रिपोर्ट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था। एक अन्य टीम द्वारा आगे की जांच के बाद, एक दूसरी अंतिम रिपोर्ट 1999 में दायर की गई थी, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि मौत मानव हत्या थी लेकिन अपराधियों की पहचान नहीं कर पाए। इस रिपोर्ट को भी कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया। 2005 में, सीबीआई की एक अन्य टीम द्वारा जांच के बाद एक और रिपोर्ट दर्ज की गई, जिसमें सिस्टर अभया की मौत में अन्य व्यक्तियों के शामिल होने से इनकार किया गया था।

    1 नवंबर, 2008 को केरल हाईकोर्ट ने सीबीआई की कोच्चि इकाई को जांच का निर्देश दिया। इसके तुरंत बाद, 19 नवंबर, 2008 तक सीबीआई ने फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर जोस पुथरीकायिल को गिरफ्तार कर लिया।

    सामाजिक कार्यकर्ता जोमन पुथेनपुरकेल द्वारा गठित एक 'एक्शन काउंसिल' ने मामले में उचित जांच की मांग करते हुए कई याचिकाएँ दायर की थी।

    जुलाई 2009 में, सीबीआई ने फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर जोस पुथरीकायिल को हत्या और सबूत नष्ट करने के आरोप में आरोपी बनाते हुए आरोपपत्र दायर किया था। रिपोर्ट के अनुसार, सिस्टर अभया ने सिस्टर सेफी और अन्य दो आरोपी प्रीस्ट को ''अंतरंग स्थिति'' में देख लिया था। आगे आरोप लगाया गया था कि सिस्टर सेफी घबरा गई और इसी के चलते सेफी ने अभया को एक कुल्हाड़ी से मार दिया, जो जलाने की लकड़ी काटने के लिए थी। उसके बाद, तीनों आरोपियों ने कथित रूप से अभया का शव कुएं में फेंक दिया।

    परीक्षण में, फादर थॉमस कोट्टूर का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता बी रमन पिल्लई द्वारा किया गया था, जिनकी सहायता एडवोकेट चाको साइमन और बी सिवादास ने भी की।

    सिस्टर सेफी का प्रतिनिधित्व एडवोकेट जे जोस, सोजन मिकेल, चाको साइमन, बिनो आर बाबू, बिमल वीएस और वीएस बोबन ने किया।

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