बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों को COVID19 का टीका लगाने पर विचार करेंः इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
13 April 2021 10:00 PM IST
COVID19 महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर लिए गए स्वतः संज्ञान के एक मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और इंडियन काउंसिल फाॅर मेडिकल रिसर्च को निर्देश दिया है कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले और बोर्ड की परीक्षा देने वाले छात्रों को COVID19 का टीका लगाने पर विचार करें।
कोर्ट ने कहा कि,
''केंद्र सरकार और इंडियन काउंसिल फाॅर मेडिकल रिसर्च को उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले और हाई स्कूल व इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को टीकाकरण का लाभ देने पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि युवा पीढ़ी की आबादी में बड़े पैमाने पर संक्रमण फैल रहा है। यदि बोर्ड और अन्य परीक्षा आयोजित करने वाले निकाय ऑफलाइन परीक्षा लेने पर विचार रहे हैं तो सरकार को ऐसे छात्रों को टीकाकरण का लाभ देने के लिए व्यवहार्यता पर विचार करना चाहिए।''
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने एक सुओ मोटो मामले में यह अवलोकन किया है जिसका शीर्षक हैः In-Re Inhuman Condition At Quarantine Centres And For Providing Better Treatment To Corona Positive
यह देखते हुए कि ''स्थिति इतनी भयावह है'', पीठ ने महामारी की स्थिति के प्रभावी प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य के अधिकारियों को कुछ अन्य दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।
रेमडेसिवियर की उपलब्धता सुनिश्चित करें; जमाखोरों व कालाबाजारी के खिलाफ कार्रवाई करें
कोर्ट ने केंद्र और राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे ओपन मार्केट में रेमडेसिवियर की उपलब्धता सुनिश्चित करें, जो एक एंटी वायरल इंजेक्शन मेडिसन है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि रेमडेसिवियर के जमाखोरों और इसकी कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
कोर्ट को सूचित किया गया था कि रेमडेसिवियर की भारी कमी है और कोरोना के रोगियों के इलाज के लिए इसकी काफी मांग है। जिसके बाद कोर्ट ने यह निर्देश पारित किए हैं।
कोर्ट ने प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर जैसे जिलों के सभी जिला अस्पतालों और लेवल 2 व लेवल 3 के अस्पतालों के लिए एम्बुलेंस में हाई फ्लो कैन्युला मास्क प्रदान करने व bipap मशीन की तत्काल खरीद और आपूर्ति के लिए भी निर्देश दिया है क्योंकि इन जिलों में संक्रमण व्यापक रूप से फैला हुआ है।
कोर्ट ने कहा कि,
''COVID19 संक्रमण की हालिया स्पाइक ने राज्य के विभिन्न जिलों के हर कोने में दस्तक दी है। इस उछाल ने सार्वजनिक जीवन को पूरी तरह से पंगु बना दिया है और सभी चिकित्सा सहायता प्रणालियां परिपूर्णता के एक चरण में पहुंच गई हैं। हमें सूचित किया गया है कि कोविद अस्पताल में मरीजों की बाढ़ सी आ गई है,जिस कारण अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं व मेडिकल स्टाफ की खासी कमी हो चुकी है। स्थिति इतनी भयावह है कि अगर इसे सावधानीपूर्वक नहीं संभाला गया तो हम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के पूर्ण पतन के चरण पर पहुंच जाएंगे।''
स्थिति को गंभीरता से देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि ''हमें चुनावों की बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए ...''। यह ध्यान दिया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं।
न्यायालय ने जिला चिकित्सा अधिकारी प्रयागराज (जो पीठ के समक्ष उपस्थित हुए) द्वारा प्रस्तुत की गई दलीलों पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि ''COVID19 द्वारा प्रस्तुत वर्तमान चुनौती से निपटने के लिए प्रभावी बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।''
हाईकोर्ट भी कोर्ट को दो सप्ताह के लिए बंद करने के लिए बार के अनुरोध पर विचार करें
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह ने आग्रह किया कि हाईकोर्ट को कम से कम दो सप्ताह के लिए बंद किया जाना चाहिए, ताकि वादी और वकील अदालत में न पहुंचें और संक्रमण का प्रसार न हो पाए।
इस सबमिशन को ध्यान में रखते हुए, बेंच ने कहा किः
"हम हाईकोर्ट से यह भी अनुरोध करते हैं कि वह हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के उस अनुरोध पर विचार करें,जिसमें कोर्ट को कम से कम दो सप्ताह के लिए बंद करने का सुझाव दिया गया है। हाईकोर्ट को केवल तत्काल मामलों की सीमित संख्या पर खंडपीठों द्वारा ऑनलाइन सुनवाई के लिए खुला रखा जाना चाहिए,वो भी वर्तमान परिदृश्य से संबंधित मामलों के लिए। जहां तक लंबित गैर-जमानती वारंटों पर रोक और अंतरिम आदेशों के विस्तार के मामलों में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष द्वारा किए गए अनुरोध का संबंध है तो हमारा विचार है कि चूंकि पहले से ही जनहित याचिका संख्या 564/2020 लंबित है। इसलिए उचित दिशा-निर्देशों के लिए आवेदन उसी पीआईएल में दायर किए जाएं।''
अन्य निर्देश
बेंच द्वारा पारित अन्य निर्देश इस प्रकार हैंः-
-सरकार उन जिलों में पूर्ण लॉक-डाउन लगाने की व्यवहार्यता पर गौर कर सकती है,जहां कोरोना बहुत ज्यादा फैला हुआ है, जो कम से कम दो सप्ताह या तीन सप्ताह के लिए लगा दिया जाए और कम से कम तुरंत सभी सार्वजनिक समारोहों को 50 व्यक्तियों तक सीमित कर दिया जाना चाहिए।
-प्रत्येक केंद्र पर जिला प्रशासन को बड़े पैमाने पर परीक्षण सुनिश्चित करना चाहिए और एकत्र किए जाने वाले सभी नैदानिक नमूनों को प्रत्येक छह घंटे के अंतराल पर प्रयोगशाला में भेजा जाना चाहिए ताकि आरटीपीआर का परिणाम 18 से 24 घंटे के भीतर आ सकें और दवा शुरू की जा सके।
-नियंत्रण क्षेत्रों को अधिसूचित किए जाने के लिए हर दिन अपडेट किया जाना चाहिए और रैपिड फोर्स टीम को सतर्क किया जाना चाहिए और उन्हें काम पर रखा जाना चाहिए।
-हर 48 घंटे में कंटोनमेंट जोन की उचित स्वच्छता का एक नियम होना चाहिए।
-कुछ दवाइयाँ जो कि COVID19 के प्रसार को नियंत्रित करने में उपयोगी हो सकती हैं, उनको अधिसूचित किया जाए ताकि लोग स्वयं उनका उपयोग कर सकें।
-राज्य सरकार चैबीस घंटे के भीतर मोती लाल नेहरू महाविद्यालय, इलाहाबाद में सीओबीएएस मशीन के लिए उपलब्ध परीक्षण किट की व्यवस्था करें।
- बड़ी संख्या में लोगों का टीकाकरण करके प्रतिरक्षीकरण कार्यक्रम को पूरी ताकत से चलाया जाना चाहिए।
पीठ ने देखा कि निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हम हालत को ज्यादा बिगड़ने व पतन के बिंदु पर पहुँचने से बच सकेंः
ए-सार्वजनिक आवाजाही पर प्रतिबंध और सार्वजनिक गतिविधियों पर रोक।
बी-स्वास्थ्य सुविधाओं को व्यवस्थित करना।
सी-बुनियादी स्वास्थ्य आवश्यकताओं को प्रदान करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाना।
डी-non Covid रोगियों के लिए बुनियादी ढांचे की व्यवस्था करना।
ई-टीकाकरण/प्रतिरक्षीकरण कार्यक्रम को बढ़ावा देना।
न्यायालय ने निर्देश दिया है कि राज्य सरकार के सचिव स्तर का एक अधिकारी कोर्ट में एक हलफनामा दायर करे ताकि उसमें कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों के आलोक में किए गए उपायों का विवरण दिया जा सके।
जिला मजिस्ट्रेट और मुख्य चिकित्सा अधिकारी, प्रयागराज को सुनवाई की अगली तारीख पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।
इस आदेश की प्रति यूपी सरकार के मुख्य सचिव, प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट व एस.एस.पी को 24 घंटे के भीतर भेजने का निर्देश दिया गया है ताकि वह अपने स्तर पर आवश्यक कार्रवाई कर सकें।
इस मामले पर 19 अप्रैल को विचार किया जाएगा।
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