पति को बताए बिना भारी ब्याज पर पैसा उधार लेना, जिसके कारण पति को धमकियं मिलीं, क्रेडिट पर गहने और कपड़े इत्यादि ख़रीदना 'क्रूरता': उत्तराखंंड हाईकोर्ट

SPARSH UPADHYAY

27 Aug 2020 5:00 AM GMT

  • पति को बताए बिना भारी ब्याज पर पैसा उधार लेना, जिसके कारण पति को धमकियं मिलीं, क्रेडिट पर गहने और कपड़े  इत्यादि ख़रीदना क्रूरता: उत्तराखंंड हाईकोर्ट

    Uttarakhand High Court

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 24 अगस्त को सुनाये एक फैसले में यह साफ़ किया कि अपने पति को सूचित किए बिना, कई व्यक्तियों से ब्याज पर पैसा उधार लेना, क्रेडिट पर खरीदारी करना, अपने घर से गहने और कीमती सामान चोरी करना अपने पति के खिलाफ कई आरोप लगाना, यह सभी हरकतें क्रूरता (Cruelty) की श्रेणी में आएँगी।

    न्यायमूर्ति नारायण सिंह धनिक एवं न्यायमूर्ति रवि मलिमथ ने यह फैसला उस मामले में सुनाया जहाँ प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, देहरादून द्वारा 7-12-2016 में मुकदमा संख्या 446/2014 में पारित आदेश को अपील में चुनौती दी गयी थी।

    दरअसल, उक्त मामले में वादी-पति (प्रतिवादी) का विवाह-विच्छेद (dissolution of marriage) का मुकदमा डिक्री कर दिया गया था।

    मामले की पृष्ठभूमि

    राजेश गौड़ (वादी-प्रतिवादी) का विवाह अनीता गौड़ (प्रतिवादी-अपीलकर्ता) के साथ 12-5-1999 को हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार किया गया था। शादी के तुरंत बाद, दंपति मुंबई में स्थानांतरित हो गए जहां वादी-प्रतिवादी अपना व्यवसाय चला रहा था।

    3-6-2014 को पति (वादी) ने क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री की मांग करने हेतु पत्नी (प्रतिवादी-अपीलकर्ता) के खिलाफ हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत एक मुकदमा चलाया।

    अपने वाद में, वादी-प्रतिवादी द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि लगभग पांच साल पहले, प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) के व्यवहार में अचानक बदलाव आया और बहुमूल्य चीज़ें, गहने, नकदी, आदि घर से गायब होने लगे।

    2-3 साल बाद, वादी-प्रतिवादी को कुछ व्यक्तियों के टेलीफोन कॉल प्राप्त होने लगे जो उससे पूछते थे कि या तो वो धन वापस कर दें और अन्यथा वादी का अपहरण कर लिया जाएगा, पूछे जाने पर, प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने वादी-प्रतिवादी (पति) को सूचित किया कि उसने प्रति माह @10 प्रतिशत ब्याज पर पैसा उधार लिया था और उसने क्रेडिट पर गहने और कपड़े भी खरीदे थे।

    प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने वादी-प्रतिवादी (पति) के साथ झगड़ा करना शुरू कर दिया और उसने धमकी भी दी कि वह उसका अपहरण करवा देगी; जिन लोगों से पैसे उधार लिया गए थे, उन्होंने वादी-प्रतिवादी का पीछा करना शुरू कर दिया और उसके फ्लैट पर कब्जा करने की धमकी भी देने लगे।

    अपने जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरा पैदा होते देख, वादी-प्रतिवादी अपनी पत्नी (प्रतिवादी-अपीलकर्ता) के साथ 11-12-2013 को देहरादून लौट आया; इसके बाद गांव में एक पंचायत आयोजित की गई जिसमें प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने अपनी गलतियों को स्वीकार किया।

    प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने भी लिखित रूप में अपनी गलतियों को स्वीकार किया; उसके बाद भी प्रतिवादी-अपीलकर्ता ने वादी-प्रतिवादी के साथ कई अवसरों पर झगड़ा किया, और यह कि पति के लिए अपनी पत्नी के साथ रहना जारी रखना संभव नहीं रह गया।

    प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने लिखित बयान दर्ज करने के माध्यम से मुकदमा लड़ा, जिसमें उसने वादी-प्रतिवादी के आरोपों से इनकार किया। हालांकि, उसने स्वीकार किया कि उसने ब्याज पर लगभग दस लाख रुपये की धनराशि उधार ली थी क्योंकि उसके पति ने घरेलू खर्चों के लिए पैसा देना बंद कर दिया।

    यह कहा गया कि वादी-प्रतिवादी (पति) के किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध हैं; वादी-प्रतिवादी ने एक और महिला के साथ पुनर्विवाह किया।

    यह भी कहा गया कि वादी-प्रतिवादी द्वारा उसे बुरी तरह से परेशान किया जा रहा था, और उसने महिला सेल में शिकायत की और वादी-प्रतिवादी (पति) के खिलाफ धारा 494 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कराया था।

    निचली अदालत ने सबूतों की जांच के बाद, तलाक के लिए मुकदमे का फैसला किया कि सूट को स्थापित करने के कारणों और उसकी पत्नी के खिलाफ वादी द्वारा कथित कृत्य, क्रूरता की श्रेणी में आते हैं।

    हाईकोर्ट का अवलोकन

    पत्नी की ओर से पेश वकील ने अदालत में यह तर्क दिया कि कथित क्रूरता साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है और घरेलू खर्च चलाने के लिए दूसरों से पैसे उधार लेने को पति या पत्नी के प्रति क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।

    प्रतिवादी-पति के लिए पेश वकील का यह तर्क कि निचली अदालत ने पक्षकारों के बीच विवाह को रद्द करके उचित किया था, खासकर जब पक्षकार छह साल से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे थे।

    अदालत ने इस क्रम में देखा कि

    "अधिनियम के तहत क्रूरता को परिभाषित नहीं किया गया है। क्रूरता शारीरिक या मानसिक हो सकती है। वैवाहिक जीवन में, क्रूरता निराधार किस्म की हो सकती है। लेकिन क्रूरता नामक आचरण से पहले, इसे गंभीरता की निश्चित पिच को छूना चाहिए और आचरण ऐसा होना चाहिए कि कोई भी उचित व्यक्ति इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। यह इच्छाधारी और अन्यायपूर्ण आचरण होना चाहिए। इसलिए जांच यह होनी चाहिए कि क्या क्रूरता के रूप में लगाया गया आचरण ऐसे चरित्र का है या नहीं?"

    अदालत ने यह देखा कि मामला यह है कि पत्नी, अपने पति को बताए बिना, भारी ब्याज पर कई व्यक्तियों से पैसे उधार लेती रही और उधारकर्ता अपने पैसे मांगने के लिए उसके घर आते थे।

    हालांकि, उसने यह बहाना दिया कि उसने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि वादी-प्रतिवादी (पति) ने विभिन्न घरेलू खर्चों, बच्चों की स्कूल फीस आदि के लिए पैसा देना बंद कर दिया था, लेकिन वह अपने दावे को पुष्ट करने के लिए किसी भी सबूत को जोड़ने में विफल रही।

    अदालत ने आगे देखा कि इसके अलावा, उसने यह दिखाने के लिए भी कोई सबूत नहीं दिया कि उसने पैसे कहाँ खर्च किए।

    प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने वादी-प्रतिवादी (पति) के खिलाफ विभिन्न आरोपों को भी लगाया कि उसके किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध थे और उसके बाद उसने एक अन्य महिला से शादी की और वर्तमान में उसके साथ रह रही थी। इसके बावजूद, उसने ऐसा साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया।

    अदालत ने मुख्य रूप से देखा कि, वर्तमान मामले में, पत्नी ने अपने पति को सूचित किए बिना, कई व्यक्तियों से ब्याज पर पैसा उधार लिया, क्रेडिट पर खरीदारी की, अपने घर से गहने और कीमती सामान चोरी किये और अपने पति के खिलाफ इतने आरोप लगाए लेकिन वह उन्हें साबित करने में विफल रही।

    इसके पश्च्यात, अदालत ने देखा कि जब पैसे का भुगतान नहीं किया गया, तो ऋणदाता, जो गैंगस्टर थे, ने वादी-प्रतिवादी को धमकी देना शुरू कर दिया, जिसके चलते अंततः उसे मुंबई में अपना व्यवसाय बंद करना पड़ा और देहरादून लौट आना पड़ा।

    इसके अलावा, प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने वादी-प्रतिवादी (पति) के खिलाफ भी आरोप लगाए जो कि वह पुष्ट करने में विफल रही।

    प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) ने आरोप लगाया कि वादी-प्रतिवादी (पति) एक चरित्रहीन व्यक्ति है और उसने किसी अन्य महिला के साथ अतिरिक्त वैवाहिक संबंध बनाए हैं और बाद में उसने दूसरी महिला से शादी कर ली। ये सभी वादी-प्रतिवादी के खिलाफ निराधार आरोप हैं।

    अदालत ने मुख्य रूप से रेखांकित किया कि

    "ये सभी कार्य और आचरण, हमारे विचार में, क्रूरता का गठन करते हैं। इसके अलावा, जैसा कि स्पष्ट है, यह प्रतिवादी-अपीलकर्ता की ओर से क्रूरता का एकान्त उदाहरण नहीं था। प्रतिवादी-अपीलकर्ता ने अपने पति के साथ क्रूरता और दुर्व्यवहार की बार-बार कार्रवाई की। इसके अलावा, प्रतिवादी-अपीलकर्ता के आचरण से वादी-प्रतिवादी के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को भी खतरा था और वादी-प्रतिवादी के मन में उचित आशंका थी कि उसके साथ रहना हानिकारक होगा।"

    अदालत ने यह भी देखा कि,

    "शादी, हर दूसरे मानवीय रिश्ते की तरह - शायद दूसरों से ज्यादा - आपसी विश्वास, और आपसी सम्मान पर आधारित है। जब तक एक दूसरे के लिए सम्मान बना रहेगा, वैवाहिक बंधन बच जाएगा। उपरोक्त प्रतिवादी-अपीलकर्ता (पत्नी) की ओर से किए गए कार्य और उसके पति के बारे में निराधार आरोप लगाना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कार्रवाई योग्य मानसिक क्रूरता का गठन करता है।"

    इसी के मद्देनजर, अदालत ने मामले और तथ्यों में यह माना कि विद्वान ट्रायल जज ने शादी के विघटन के लिए डिक्री देने में कोई त्रुटि नहीं की।

    इसलिए, अदालत ने देखा कि

    "हमें इस अपील में कोई भी योग्यता नहीं मिली है जिससे कि आवेगित निर्णय और आदेश के साथ हस्तक्षेप की आवश्यकता हो। नतीजतन, अपील खारिज कर दी जाती है। अपील के तहत निर्णय और आदेश की पुष्टि की जाती है।"

    जजमेंट की कॉपी



    Next Story