तीन साल की बच्ची से रेप के दोषी की उम्र कैद की सज़ा बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखी
LiveLaw News Network
28 Oct 2020 11:55 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 3 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार के दोषी 27 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर दोषसिद्धि के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए कहा कि इतनी निविदा उम्र में पीड़िता से यह पता लगाने की उम्मीद नहीं की जा सकती कि घटना किस तरह से हुई और अभियोजन पक्ष (prosecution) ने उचित संदेह से परे आरोपी के खिलाफ अपराध साबित कर दिया है।
न्यायमूर्ति एस शिंदे और न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (एफ) के तहत दोषी ठहराए गए सुदाम शेल्के की आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नासिक ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
केस का बैकग्राउंड
प्राथमिकी पीड़िता की दादी ने दर्ज कराई थी। घटना की तारीख पर पीड़िता की उम्र करीब 3 साल 8 महीने थी और वह अपने दादा-दादी और माता-पिता के साथ रह रही थी। घटना 12 सितंबर 2014 को हुई थी और यह दोपहर तीन बजे के आसपास हुई थी। पीड़िता खेलते हुए होटल (ढाबा) में चली गई।
पीड़िता की दादी उस होटल की मालिक है जो की उनके आवास के ठीक सामने है। पीड़ित लड़की मोबाइल फोन लेकर घर आई थी। आरोपी ने पीड़िता की दादी को बताया कि फोन उसी का है और उसने पीड़िता को खेलने के लिए फोन दिया था। इसके बाद पीड़िता की दादी अपने काम में व्यस्त हो गई ।
इसके बाद 10-15 मिनट बाद शिकायतकर्ता का पति (पीड़िता के दादा) कृषि क्षेत्र से वापस आये और पीड़िता से पूछताछ की। उसकी दादी ने उसे जानकारी दी कि वह घर के सामने खेल रही है। हालांकि पीड़िता का पता नहीं चला, इसलिए उन्होंने उसकी तलाश की। पीडि़ता की दादी कृषि क्षेत्र की ओर गई तो उसने कृषि क्षेत्र से रोने का शोर सुना जो की उनकी पोती का था। उस समय शिकायतकर्ता ने आरोपी को खेत से सड़क की ओर दौड़ते हुए देखा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार शिकायतकर्ता ने देखा कि पीड़िता की कमर पर चोटें आई हैं और उसके प्राइवेट पार्ट से खून बह रहा है । उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था । जब शिकायतकर्ता ने अपनी पोती से इस बारे में पूछा तो वह भी कुछ भी बताने से घबरा गई। पीड़िता को गांव नंदुर, शिंगोट के डॉक्टर चांदुरकर के अस्पताल ले जाया गया और डॉ अनीता सतीश कानिटकर ने जांच की। डॉक्टर को शक था कि उक्त चोटें पीडि़ता पर यौन उत्पीड़न के कारण हो सकती हैं और उन्होंने सुझाव दिया कि पीड़िता को सिविल अस्पताल ले जाया जाना चाहिए।
शिकायतकर्ता ने शाम सात बजे पीड़िता के माता-पिता को घटना की जानकारी दी और अगले दिन सुबह करीब सात बजे पीड़िता ने अपनी दादी और अपनी ही मां के सामने खुलासा किया कि "मोबाइलवाला बाबा (आरोपी) उसे उक्त कृषि क्षेत्र में ले गया, उसके कपड़े और उसके कपड़े निकालकर उसके उपर सो गया।
बाद में एफआईआर दर्ज कर जांच हेमंत पाटिल ने कराई। पीड़िता की मेडिकल जांच डॉ महेश खैरनार ने की और उन्होंने परीक्षण के आधार पर राय दी कि हाल ही में यौन उत्पीड़न के हुआ है। एकत्र किए गए नमूनों को सील हालत में पुलिस कांस्टेबल को सौंप दिया गया।
निर्णय
अपीलार्थी आरोपी की ओर से एडवोकेट अनिकेत वागल पेश हुए और शिकायतकर्ता की दादी से क्रॉस जांच की। अधिवक्ता वागल ने सुझाव दिया कि मैदान में गतिविधियां उसके घर से दिखाई नहीं देंगी और इसलिए शिकायतकर्ता घटना पर ध्यान नहीं दे सकता था या आरोपी मैदान से भाग रहा था । उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की कि बाजरे की फसल मोटी होती है और यह घटना संभवत कृषि क्षेत्र में नहीं हो सकती थी । बचाव पक्ष ने दलील दी कि पीड़िता कृषि क्षेत्र में नेचर कॉल (nature's call) के लिए गई थी जिसके परिणामस्वरूप चोटें आईं ।
इसके सामने पेश किए गए सभी तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद कोर्ट ने कहा,
"हमें आरोपी के विवाद में कोई योग्यता नहीं मिलती कि चूंकि आरोपी के प्राइवेट पार्ट पर कोई चोट नहीं आई है, इसलिए उसकी मिलीभगत से इंकार किया जाता है । पीड़िता की उम्र महज 3 साल और 8 महीने है। निचली अदालत ने टिप्पणी की है कि चिकित्सा न्यायशास्त्र से पता चलता है कि छोटे बच्चों में सामान्य हिंसा के कुछ या कोई संकेत नहीं होते हैं, क्योंकि बच्चे को आमतौर पर इस बात का कोई पता नहीं होता कि क्या हो रहा है और वे विरोध करने में भी असमर्थ होते है । हाइमन गहराई से स्थित है और चूंकि योनि बहुत छोटी है, इसलिए वयस्क अंग के प्रवेश के लिए असंभव है। आमतौर पर लिंग या तो योनी के भीतर या जांघों के बीच रखा जाता है। इस प्रकार हाइमन आमतौर पर बरकरार होता है और इस प्रकार योनी की थोड़ी लालिमा और कोमलता हो सकती है। आईपीसी की धारा 376 के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए पूरी पैठ की जरूरत नहीं है, मामूली पैठ भी पर्याप्त है। हम निचली अदालत के विचार से सहमत हैं कि अभियुक्त को कोई लाभ केवल इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि उसे अपने प्राइवेट पार्ट पर कोई चोट नहीं आई है।"
इसके अलावा पीठ ने बचाव पक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया,
"वर्तमान तथ्यों में सबूत से पता चलता है कि घटना की तारीख को पीड़ित उस घटना के बारे में कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी जो उसकी निविदा आयु पर विचार करते हुए स्वाभाविक है । उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाना पड़ा। अगले दिन सुबह 13/09/2004 की बात है तो उसने घटना के बारे में खुलासा किया। सुबह आठ बजे रिपोर्ट दर्ज कराई गई। घटना की तारीख पर पीड़िता की मुश्किल से 3 साल और 8 महीने की उम्र थी। ऐसे हालात में यह नहीं कहा जा सकता कि एफआईआर दर्ज कराने में किसी तरह की देरी हो।"
अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,
"जहां तक सजा का सवाल है, हम निचली अदालत का विचार पर ही विचार रखते है कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आरोपी की उम्र 27 साल है, उसी गांव का निवासी है जिस गावं की पीड़िता है और आरोपी ने पीड़िता के विश्वास को धोखा दिया और उल्लंघनकर्ता बन गया,इसलिए कोई नरमी नहीं बरतना चाहिए । इसलिए हमें निचली अदालत द्वारा पारित आदेश में कोई दुर्बलता नहीं मिलती, नतीजतन, अपील खारिज कर दी जाती है।"
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