बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की विवाह रद्द करने की याचिका खारिज की, पत्नी ने किया था नशीला पदार्थ देकर विवाह कराने का दावा
Avanish Pathak
8 July 2022 3:13 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि धोखाधड़ी के आधार पर विवाह को रद्द करने की याचिका धोखाधड़ी का पता चलने के एक साल के भीतर पेश की जानी चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला को मामले में राहत देने से इनकार कर दिया। महिला का दावा था कि उसे दिसंबर 2011 में नशीला पदार्थ देकर उसके विवाह स्थल से उसका अपहरण कर लिया गया था।
जस्टिस केआर श्रीराम और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि "कोई भी समझदार व्यक्ति उसके बयान पर विश्वास नहीं करेगा" कि मुंबई जैसे शहर में एक शिक्षित स्वतंत्र महिला को प्रसाद में नशीला पदार्थ मिलाकर खिलाया गया, उसे उसके ऑफिस से अपहरित किया गया, उससे विवाह किया गया और अगले दिन उसे उसके ऑफिस छोड़ दिया गया और महिला इन सब पर चुप और निष्क्रिय बनी रही।
अदालत ने कहा,
"अपीलकर्ता के साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि उसके निरे शब्दों को छोड़कर, किसी भी कोने से उसके माता-पिता, भाइयों, बहनों या यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारियों के साक्ष्य के रूप में उसकी कोई पुष्टि नहीं है।"
अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य या यौन शोषण और अप्राकृतिक संभोग के अभाव में उसके डेबिट कार्ड का उपयोग करके जबरन वसूली के आरोपों को खारिज कर दिया।
अदालत ने महिला की अपील को योग्यता से रहित और सीमा से वर्जित बताते हुए खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट द्वारा उसकी शादी को रद्द करने से इनकार करने के बाद महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) के तहत विवाह को रद्द करने योग्य होने के लिए याचिका उस तारीख से एक वर्ष के भीतर प्रस्तुत की जानी चाहिए जब विवाह विफल हो चुका हो या धोखाधड़ी की जानकारी हुई हो।
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 12 (1) (सी) में कहा गया है कि यदि विवाह बलपूर्वक या धोखाधड़ी से किया गया है तो विवाह रद्द हो सकता है।
महिला का मामला था कि वह अपने पति को 2003 से जानती थी। तब वह 15 साल की थी। वह बिलासपुर से उसका पीछा किया, उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया, उसकी अश्लील तस्वीरें लीं और उसे धमकी दी। लेकिन महिला ने इस संबंध में किसी को कुछ नहीं बताया।
महिला ने दावा किया कि 2010 में उसके पति ने उससे शादी नहीं करने पर उस पर तेजाब फेंकने की धमकी दी थी। अंत में, जब उसने 2011 में मुंबई में नौकरी की, तो उस व्यक्ति ने उसे अपने कार्यालय के बाहर बुलाया, उसे नशीला प्रसाद देकर अपनी कार में उसका अपहरण कर लिया। उसने दावा किया कि तस्वीरें ली गईं और उसे खाली दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया।
पति का कोर्ट में प्रतिनिधित्व नहीं था। हालांकि, हाईकोर्ट ने महिला के सिद्धांत के दावे को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: मोनिका नरेंद्र शर्मा बनाम मुकेश कुमार रामनाथ भागल