बॉम्बे हाईकोर्ट ने एडवोकेट गुणरतन सदावर्ते को लाइसेंस निलंबन पर तत्काल राहत देने से इनकार किया, बीसीआई के समक्ष अपील दायर करने के लिए कहा

Avanish Pathak

7 April 2023 1:13 PM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने एडवोकेट गुणरतन सदावर्ते को लाइसेंस निलंबन पर तत्काल राहत देने से इनकार किया, बीसीआई के समक्ष अपील दायर करने के लिए कहा

    Bombay High Court

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को विवादित एडवोकेट गुणरतन सदावर्ते की याचिका में तुरंत हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    उल्लेखनीय है कि बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा ने दो साल के लिए सदावर्ते का लाइसेंस दो साल के लिए निलंबित कर दिया है, जिसके खिलाफ उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर की है। गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि मामले में वैकल्पिक वैधानिक उपाय उपलब्ध है।

    जस्टिस गौतम पटेल की अगुवाई वाली पीठ ने हालांकि कहा कि वह सदावर्ते के लिए "अपने दरवाजे पूरी तरह से बंद नहीं कर रही है" और अपील में राहत से इनकार किए जाने की स्थिति में उनकी याचिका को लंबित रखेगी।

    "हम रिट याचिका को निस्तारित करने का प्रस्ताव नहीं करते हैं। इससे केवल और विलंब होगा। यदि अपीलकर्ता के आवेदन को बार काउंसिल ऑफ इंडिया स्वाकार नहीं करती है या नहीं स्वीकार किया जाता है तो हमें उन्हें आवेदन को नवीनीकृत करने का अवसर यहां देना चाहिए।"

    एडवोकेट एक्ट की धारा 35 के तहत सदावर्ते के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही में कदाचार का दोषी पाए जाने के बाद 26 मई को बीसीएमजी ने उनका लाइसेंस दो साल के लिए निलंबित कर दिया था।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि वह टेलीविजन बहसों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने कोट और एडवोकेट बैंड का उपयोग करते हैं।

    सदावर्ते ने निलंबन के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपील में उन्होंने अपने खिलाफ जांच करने वाली तीन सदस्यीय अनुशासनात्मक समिति के अध्यक्ष पर पक्षपात का आरोप लगाया।

    उन्होंने कहा कि गजानन चव्हाण और उनका एक कटु अतीत रहा है। 2018 में बार काउंसिल चुनावों में वह उनके प्रतिद्वंद्वी रह चुके हैं। मामला वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।

    सदावर्ते ने आगे कहा कि एक सदस्य ने उनके खिलाफ दायर शिकायत की जांच की थी और उस सदस्य की सिफारिश के आधार पर आरोपों की जांच के लिए अनुशासनात्मक समिति का गठन किया गया था।

    हालांकि, प्रक्रिया में सदस्य की सिफारिश को बार काउंसिल के समक्ष रखा जाना और अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करना अनिवार्य है।

    इस आरोप पर कि वीडियो में उन्हें नाचते हुए देखा गया था, सदावर्ते ने दावा किया कि वह "राम कथा" कर रहे थे।

    बार काउंसिल की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डेरियस खंबाटा ने कहा कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि अधिवक्ता अधिनियम में बीसीआई के समक्ष अपील दायर करने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि पूरी सुनवाई की वीडियोग्राफी की गई थी।

    सुनवाई के दरमियान एक समय जब सदावर्ते उत्तेजित हो गए तो अदालत ने उन्हें मर्यादा बनाए रखने के लिए कहा और प्रेस के एक छिटपुट उल्लेख का भी जवाब दिया।

    "मिस्टर सदावर्ते, आप अभी भी अदालत में हैं। हम आपको बिना किसी रुकावट के सुन रहे हैं। आप आवश्यक मर्यादा बनाए रखें... मिस्टर सदावर्ते, हम प्रेस की ओर नहीं देख रहे हैं, आपको भी प्रेस की ओर नहीं देखना चाहिए... हम उन्हें संबोधित नहीं करेंगे और न ही हम उन्हें रोकेंगे। वे अपना काम करेंगे जैसे हम अपना काम कर रहे हैं।”

    इसके बाद अदालत ने कहा कि वह याचिका को लंबित रखेगी और इस दौरान सदावर्ते वैकल्पिक उपाय कर सकते हैं।

    अधिवक्ता अधिनियम की धारा 37(2) यह स्पष्ट करती है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के समक्ष अपीलीय उपचार पूर्ण उपाय है... हमारे विचार से यह स्पष्ट करता है कि इससे पहले मिस्टर सदावर्ते रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान कर सकते हैं और उन्हें वैकल्पिक विकल्प का लाभ उठाना चाहिए.."

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