बॉम्बे हाईकोर्ट ने ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के दुरुपयोग के लिए महाराष्ट्र पुलिस को फटकार लगाई
Shahadat
23 Dec 2022 11:15 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुलिस थानों के अंदर "चर्चा" करने या तस्वीरें लेने वालों के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 के तहत एफआईआर दर्ज करने पर पुलिस की खिंचाई की और अधिकारियों को निर्देश दिया कि कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए उचित कदम उठाएं।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज के. चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि यह पुलिस डायरेक्टर जनरल, मुंबई पुलिस के आयुक्त और गृह विभाग को यह तय करना होगा कि जब आधिकारिक तौर पर एफआईआर दर्ज की जाए तो क्या वरिष्ठ उच्च रैंकिंग स्तर के अधिकारी को इस बारे में सूचित किया जाए कि सीक्रेट्स एक्ट के तहत पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है।
अदालत ने कहा,
"हम नियमित रूप से ऐसे मामलों में आते हैं, जहां पुलिस द्वारा ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 के तहत बिना विवेक का इस्तेमाल एफआईआर दर्ज की जा रही है, जो गंभीर चिंता का विषय है, यानी पुलिस स्टेशन में किए गए कार्य जैसे पुलिस स्टेशन में चर्चा, पुलिस स्टेशन के भीतर तस्वीरें लेना और वीडियोग्राफी करना आदि पर एक्ट के तहत कार्रवाई, विशेष रूप से जब 'पुलिस स्टेशन' निषिद्ध स्थान नहीं है।"
ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 की धारा 3 (जासूसी के लिए दंड) एक्ट की धारा 2(8) के तहत 'निषिद्ध स्थान' पर जासूसी करने के लिए सजा का प्रावधान करती है। यह राज्य की सुरक्षा या हित के खिलाफ कार्य करने पर लागू होता है।
अदालत ने रवींद्र शीतलराव उपाध्याय बनाम महाराष्ट्र राज्य पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि पुलिस स्टेशन के भीतर मोबाइल फोन पर बनाई गई वीडियो रिकॉर्डिंग एक्ट की धारा 3 के दायरे में नहीं आएगी। कोर्ट ने जहां घटना हुई वहां ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के प्रावधानों को लागू करने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि वह स्थान निषिद्ध स्थान होना चाहिए', जैसा कि एक्ट की धारा 2(8) में परिभाषित किया गया है।
पीठ ने कहा कि एक्ट की धारा 3 को लागू करने से उस व्यक्ति पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसके खिलाफ इसे लागू किया गया है।
पीठ ने आगे कहा,
"यह किसी की प्रतिष्ठा, नौकरी, करियर आदि को प्रभावित कर सकता है। किसी के जीवन और करियर को खतरे में डालने के लिए इसे हल्के ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है और इसे व्यक्तियों को परेशान करने के टूल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। लोगों की सुरक्षा करना और कानून के अनुसार कार्य करना पुलिस का कर्तव्य है।"
पिछले साल अकलुज पुलिस स्टेशन, सोलापुर में व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाले मामले में उक्त निर्देश पारित किए। आरोपी ने थाने के बाहर फोटो खींची थी, तभी उसके खिलाफ एफआईआर के सिलसिले में उसे वहां बुलाया गया था।
अदालत ने कहा,
"हम स्तब्ध और हैरान हैं कि कैसे संबंधित पुलिस अधिकारी ने ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत बाहर से पुलिस स्टेशन की तस्वीर लेने के कथित कृत्य के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध दर्ज किया होगा।"
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया एक्ट की धारा 3 को पुलिस ने दुर्भावनापूर्ण तरीके से लागू किया। अदालत ने कहा कि एक्ट की धारा 2(8) के तहत 'निषिद्ध स्थान' की परिभाषा विस्तृत है और इसमें पुलिस स्टेशन शामिल नहीं है।
आदेश में कहा गया,
"माना जाता है कि अभियोजन पक्ष के अनुसार भी याचिकाकर्ता ने पुलिस स्टेशन के बाहर खड़े लोगों की केवल तस्वीर (जो याचिका के पृष्ठ 35 पर है) ली थी।"
याचिकाकर्ता के अनुसार, उन्होंने यह दिखाने के लिए तस्वीर क्लिक की कि "पुलिस कर्मी और वे व्यक्ति जिनके साथ पारिवारिक विवाद था और जिन्होंने सीमांकन की कार्यवाही का विरोध किया था, वे एक दूसरे के साथ दोस्ताना तरीके से संवाद कर रहे थे।"
अदालत ने कहा कि वह समझ नहीं पा रही है कि ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 के तहत गंभीर अपराध के लिए उक्त तस्वीर के आधार पर एफआईआर कैसे दर्ज की जा सकती है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 के तहत अपराध दर्ज करना, जैसा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ है, तथ्यों में स्पष्ट रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और यदि इसे रद्द नहीं किया जाता है तो न्याय का गंभीर गर्भपात होगा, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
पुलिस द्वारा दायर की गई एफआईआर और आरोप पत्र रद्द करते हुए अदालत ने राज्य को चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये के जुर्माना का भुगतान करने का निर्देश दिया। इसने राज्य को यह निर्देश दिया कि एक्ट की धारा 3 को लागू करने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के वेतन से यह राशि वसूल की जाए।
अदालत ने कहा,
"जुर्माना के भुगतान के अनुपालन और दोषी अधिकारियों से जुर्माना की वसूली के लिए उठाए गए कदमों को दर्ज करने के लिए मामले को 15 फरवरी, 2023 को रखा जाना चाहिए।"
केस नंबर- रिट याचिका [स्टाम्प] नंबर 20054/2022
केस टाइटल- रोहन तुकाराम @ अप्पासाहेब काले बनाम सोमनाथ हरिभाऊ कोली और अन्य।
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