बॉम्बे हाईकोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार बेघर व्यक्तियों के वैक्सीनेशन के लिए उठाए गए कदमों के बारे में राज्य को बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
13 Sept 2021 8:13 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह मानसिक रूप से बीमार बेघर लोगों को COVID-19 के खिलाफ वैक्सीनेशन के कदमों के बारे में "बेहतर हलफनामा" दायर करे।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश उसके द्वारा केवल मनोरोग संस्थानों में वैक्सीनेशन करने वाले कैदियों की संख्या बताए जाने पर दिया।
जुलाई में दायर एक हलफनामे में राज्य सरकार ने प्रस्तुत किया कि जुलाई में लगभग 20,930 बेघर व्यक्तियों की पहचान की गई। इनमें से 8,000 को COVID-19 वैक्सीन दी गई। इसके अलावा, उस महीने मानसिक रूप से बीमार 1,761 लोगों का वैक्सीनेशन किया गया।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य ने उन संस्थानों में 1,761 लोगों का वैक्सीनेशन किया है, जहां उनके परिवार वैक्सीन के लिए सहमति हैं।
हालाँकि, कार्यकर्ता टीजे भानु की जनहित याचिका उन लोगों से संबंधित है जो वैक्सीनेशन कराए जाने पर निर्णय नहीं ले सकते हैं।
इस पर अदालत ने स्थानीय नागरिक निकाय (बीएमसी) को याचिका में प्रतिवादी के रूप में जोड़ने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई में पहचाने गए और वैक्सीनेट किए गए व्यक्तियों की संख्या बताने के लिए कहा।
इससे पहले, हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य से मानसिक रूप से बीमार बेघर व्यक्तियों, भिखारियों की 'अस्थायी आबादी' का वैक्सीनेशन करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) पर पुनर्विचार करने को कहा था।
पीठ ने वैक्सीनेशन के बाद ऐसे व्यक्तियों के लिए स्थायी टैटू (चिन्ह) का भी सुझाव दिया था।
सोमवार को केंद्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इसी तरह की याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
उन्होंने कहा,
"हम उन्हें सड़क पर वैक्सीन नहीं लगा सकते। उन्हें एक आश्रय में ले जाया जाता है और फिर वहां वैक्सीन लगाई जाती है।"
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसके लिए सहमति की आवश्यकता होगी।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा,
"मानसिक रूप से बीमार लोगों के मामले को लें। अगर हम उसे निर्णय लेने की अनुमति देते हैं, तो वह समाज के लिए खतरा हो सकता है। यह एक नीतिगत मामला है। तो आप मानसिक रूप से बीमार लोगों को वैक्सीनेट करने की योजना बनाने की नीति के साथ क्यों नहीं आते हैं।"
सिंह की दलीलों के जवाब में कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम की धारा 100 पुलिस अधिकारियों पर ऐसे मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की पहचान करने और उन्हें उनके परिवारों के साथ रखने को कहती है, अदालत ने जानना चाहा कि क्या इसे लागू किया जा रहा है।
पीठ ने राज्य से अपने हलफनामे में विस्तार से बताने को कहा,
"क्या ये कदम उठाए जा रहे हैं?"
उन्होंने कहा कि नगर निगमों और पुलिस के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है।
राज्य की ओर से पेश हुई वकील गीता शास्त्री ने कहा कि अधिकारियों को बेघर और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों की चिंताओं को दूर करने के निर्देश जारी किए गए।
अदालत ने कहा,
"हम देखते हैं कि हलफनामा मानसिक रूप से बीमार उन व्यक्तियों की बात पर मौन है जो या तो बेघर हैं या समुदाय में घूमते हुए पाए जाते हैं।"
केस टाइटल: टीजे भानु बनाम महाराष्ट्र राज्य