बॉम्बे हाईकोर्ट ने 73 वर्षीय रिटायर्ड नर्स को पेंशन के लिए 15 साल तक मुकदमा चलाने के लिए कोल्हापुर नगर निगम पर 25 हजार जुर्माना लगाया

Shahadat

2 Sep 2023 4:42 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने 73 वर्षीय रिटायर्ड नर्स को पेंशन के लिए 15 साल तक मुकदमा चलाने के लिए कोल्हापुर नगर निगम पर 25 हजार जुर्माना लगाया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कोल्हापुर नगर निगम पर 73 वर्षीय रिटायर्ड स्टाफ नर्स को उसकी पेंशन और पेंशन लाभ के लिए 15 साल तक मुकदमा चलाने के लिए 25,000/- रुपये का जुर्माना लगाया गया।

    जस्टिस संदीप वी मार्ने ने कोल्हापुर नगर निगम के आयुक्त द्वारा 2008 में रिटायर हुई स्टाफ नर्स शशिकला विजय भोरे को देय पेंशन राशि जमा करने के औद्योगिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका खारिज कर दी।

    "यह न्यायालय याचिकाकर्ता - नगर निगम, जो सार्वजनिक निकाय और आदर्श नियोक्ता है, उसके आचरण पर ध्यान देता है...भले ही प्रतिवादी की समाप्ति/बर्खास्तगी को श्रम न्यायालय ने वर्ष 2010 में रद्द कर दिया, वह अभी भी पेंशन और पेंशन लाभ से वंचित है। उनको पुनर्विचार में औद्योगिक न्यायालय के साथ-साथ इस न्यायालय में रिट याचिका में मुकदमा करने के लिए मजबूर किया गया...30 जून 2008 में रिटायर होने की आयु प्राप्त करने के बाद प्रतिवादी लगभग 73 वर्ष की उन्नत आयु में होगी। उनको बिना किसी पेंशन के भुगतान के जीवनयापन करना पड़ता है। याचिकाकर्ता - नगर निगम के इस आचरण के लिए वर्तमान याचिका को खारिज करते समय जुर्माने का वहन करना आवश्यक है।"

    3 जनवरी, 2022 के आदेश में नगर निगम को 30 जून, 2008 को उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख से भोरे को देय पेंशन अदालत में जमा करने का निर्देश दिया गया। 2000 में भोरे को अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए समाप्त कर दिया गया था । उन्होंने इसे श्रम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी। वह उस कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान ही सेवानिवृत्त हो गईं। 2010 में श्रम न्यायालय द्वारा उनकी बर्खास्तगी रद्द कर दी गई और उन्हें एक नियमित कर्मचारी के रूप में सेवा से रिटायर मान लिया गया था।

    श्रम न्यायालय ने नगर निगम को उसकी समाप्ति तिथि से रिटायरमेंट की तिथि तक बकाया वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया था । निगम की पुनर्विचार याचिका 2016 में खारिज कर दी गई थी। 2016 में हाईकोर्ट के समक्ष दायर इसकी रिट याचिका भी खारिज कर दी गई थी।

    भोरे ने 2016 में बकाया वेतन, पेंशन, ग्रेच्युटी और निलंबन भत्ते आदि का दावा करते हुए श्रम न्यायालय में पुनर्प्राप्ति आवेदन दायर किया। शिकायत को 2018 में श्रम न्यायालय द्वारा आंशिक रूप से अनुमति दी गई, यह मानते हुए कि 2010 के श्रम न्यायालय के आदेश ने निलंबन भत्ता, पेंशन, ग्रेच्युटीस, अवकाश वेतन आदि नहीं दिया था। उन्हें केवल पिछले वेतन के संबंध में वसूली प्रमाण पत्र और 12,81,208/- रुपये जारी किए गए थे।

    भोरे ने पेंशन और पेंशन लाभ की मांग करते हुए 2020 में फिर से श्रम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जनवरी 2022 में औद्योगिक न्यायालय ने उनकी शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए नगर निगम को 01 जुलाई 2008 से दिसंबर 2021 तक देय पेंशन अदालत में जमा करने का निर्देश दिया था। इस आदेश से नाराज होकर कोल्हापुर नगर निगम ने वर्तमान रिट याचिका दायर की थी।

    याचिकाकर्ता के वकील अभिजीत अडागुले ने तर्क दिया कि औद्योगिक न्यायालय के पास पेंशन और पेंशन लाभ के लिए भोरे की शिकायत पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि पेंशन का भुगतान न करना महाराष्ट्र ट्रेड यूनियनों की मान्यता और अनुचित श्रम प्रथाओं की रोकथाम अधिनियम, 1971 (MRTU & PULP Act) की अनुसूची IV के तहत शामिल नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि भोरे, महाराष्ट्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1982 के प्रावधानों द्वारा शासित होने के कारण औद्योगिक न्यायालय से संपर्क नहीं कर सकता।

    भोरे की वकील जयश्री त्रिपाठी ने कहा कि भोरे कोल्हापुर नगर निगम की स्थायी कर्मचारी है और रिटायरमेंट की आयु प्राप्त करने पर रिटायर होने के कारण वह पेंशन और अन्य पेंशन लाभ का हकदार है।

    उन्होंने आगे कहा कि बर्खास्तगी के खिलाफ भोरे की शिकायत पर श्रम न्यायालय ने विचार किया और नगर निगम ने आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस प्रकार, नगर निगम अब औद्योगिक न्यायालय के क्षेत्राधिकार पर सवाल नहीं उठा सकता है।

    अदालत ने माना कि चूंकि भोरे की बर्खास्तगी रद्द कर दी गई, एक बार सेवानिवृत्त होने के बाद वह पेंशन नियमों के तहत पेंशन और पेंशन लाभ की हकदार हो गई। अदालत ने कहा कि एमआरटीयू और पीयूएलपी अधिनियम की अनुसूची IV का आइटम 9 किसी अवार्ड को लागू करने में विफलता के अनुचित श्रम अभ्यास को सूचीबद्ध करता है।

    अदालत ने तर्क दिया कि एक बार जब श्रम अदालत ने उसकी बर्खास्तगी रद्द करने का आदेश पारित कर दिया तो नगर निगम को उसे पेंशन और अन्य पेंशन लाभ देना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    उस अर्थ में पेंशन का भुगतान न करने को आइटम 9 के तहत कवर किया जाएगा।

    अदालत ने कहा कि यदि भोरे श्रमिक नहीं होती तो हाईकोर्ट के औद्योगिक न्यायाधिकरण ने श्रम न्यायालय का 2010 का आदेश रद्द कर दिया होता। अदालत ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि भोरे ने अपने वसूली आवेदन में गलती से पेंशन का दावा कर दिया, इससे पेंशन प्राप्त करने का उसका वैध अधिकार नष्ट नहीं हो जाएगा, जिसकी गारंटी पेंशन नियमों के तहत दी गई है।

    अदालत ने रिट याचिका खारिज कर दी और नगर निगम को भोरे की पेंशन और पेंशन लाभ के साथ-साथ 25,000 रुपये के जुर्माने का भुगतान करने का आदेश बरकरार रखा।

    केस नंबर- रिट याचिका नंबर 13641/2022

    केस टाइटल- आयुक्त, कोल्हापुर महानगरपालिका बनाम शशिकला विजय भोरे

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