11 साल की बेतुकी मुकदमेबाजी: बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया

Shahadat

19 July 2022 12:28 PM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अदालत के पहले के फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाले पुणे के निवासी को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और यह प्रक्रिया और कानून का दुरुपयोग है। याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाए।

    याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में तर्क और सबूत के साथ कई समान मामले दायर किए हैं।

    अदालत ने कहा,

    "2009 से अब तक याचिकाकर्ता ने तुच्छ मुकदमे दायर कर इस अदालत का कीमती समय बर्बाद किया है।"

    जस्टिस पृथ्वीराज के. चव्हाण ने अपने फैसले में कहा कि पुनर्विचार तथ्य बदलकर दायर की गई याचिका पर संभव नहीं है और याचिका खारिज कर दी।

    अदालत ने कहा,

    "दूसरी पुनर्विचार याचिका में याचिकाकर्ता ने दूसरी अपील के साथ-साथ अपनी पहली पुनर्विचार याचिका में जो कुछ भी कहा है, उसे वस्तुतः पुन: प्रस्तुत और दोहराया है, सिवाय इसके कि यह दिखाने के लिए कि दूसरी पुनर्विचार याचिका कैसे योग्य है।"

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की बढ़ती उम्र सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखने का कारण नहीं हो सकती, क्योंकि वह "पूरी तरह से जानता है कि वह हारी हुई कानूनी लड़ाई लड़ रहा है, जिसमें कोई योग्यता नहीं है।"

    अदालत ने कहा,

    "इस तरह के आचरण की अत्यधिक निंदा की जाती है, क्योंकि याचिकाकर्ता को ठीक नहीं किया जा सकता।"

    बैंक ऑफ महाराष्ट्र के पूर्व कर्मचारी आनंद प्रभाकर जोशी अपने नियोक्ता द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही के खिलाफ अपनी चुनौती को खारिज करने वाले आदेश पर दूसरी बार पुनर्विचार की मांग कर रहा था। उस पर अनुशासनात्मक कार्यवाही में करीब एक साल तक सेवा से अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने का आरोप लगाया गया था। उसने तर्क दिया कि वह बैंक की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के तहत स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का हकदार था, लेकिन उसका आवेदन स्वीकार नहीं किया गया।

    याचिकाकर्ता ने पुणे में विशेष सिविल सूट में अनुशासनात्मक प्राधिकारी के फैसले की अपील की। उसकी अपील विफल हो गई और उसने पुणे जिला न्यायालय के समक्ष दूसरी अपील दायर की। उसकी दूसरी अपील भी इस आधार पर खारिज कर दी गई कि मामले में कानून का कोई बड़ा सवाल ही नहीं उठता। उसने उसी अदालत में पहली पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि कोई नया या महत्वपूर्ण मामला या सबूत नहीं है, न ही अदालतों द्वारा कोई त्रुटि की गई है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दूसरी पुनर्विचार याचिका दायर की।

    अदालत ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 47, नियम 9 विशेष रूप से दूसरी पुनर्विचार याचिका पर रोक लगाता है, इसलिए इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ता ने इस आधार पर दूसरी बार पुनर्विचार की मांग की कि यह अदालत अपने पहले पुनर्विचार पर अपील कर रही है।"

    याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए वकील को नियुक्त करने से इनकार कर दिया कि वह किसी भी वकील से बेहतर बहस कर सकता है।

    याचिकाकर्ता ने 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष रिट याचिका भी दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था।

    अदालत ने कहा,

    "यह अदालत के साथ-साथ कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें याचिकाकर्ता ने न केवल दूसरी पुनर्विचार याचिका को प्राथमिकता देकर प्रक्रिया का दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जो कानून में मान्य नहीं है, बल्कि पहले कई कार्यवाही दर्ज करके भी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।"

    याचिकाकर्ता ने 1997 में विभागीय जांच को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की थी, जिसे उसने 2001 में वापस ले लिया था। उसने विविध आवेदनों के साथ वर्ष 2004 से 2014 तक 10 आपराधिक रिट याचिकाएं और कई सिविल रिट याचिकाएं दायर कीं।

    उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका के साथ-साथ रिट याचिका भी दायर की, दोनों को खारिज कर दिया गया।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय के समक्ष सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका की लंबितता को दबा दिया है, इसलिए उसे भौतिक तथ्यों को छिपाने का दोषी कहा जा सकता है, जो कि न्यायालय की प्रक्रिया के साथ-साथ कानून का भी दुरुपयोग है।"

    अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता तीन सप्ताह के भीतर जुर्माना जमा करे। अदालत की रजिस्ट्री को यह राशि बॉम्बे मदर्स एंड चिल्ड्रन वेलफेयर सोसाइटी को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया गया।

    अदालत ने कहा,

    "इस तरह की प्रवृत्तियों को अनुकरणीय जुर्माना लगाकर शुरू में ही खत्म करने की जरूरत है। ऐसे तत्वों को बिना योग्यता वाली कई कार्यवाही दर्ज करके और कार्यवाही को अंतहीन रूप से खींचने के लिए सिस्टम का मजाक बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

    केस नंबर: आरपीएस/3/2022

    केस टाइटल : आनंद प्रभाकर जोशी बनाम बैंक ऑफ महाराष्ट्र

    कोरम: जस्टिस पृथ्वीराज के. चव्हाण

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