बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को सभी विश्वविद्यालयों में परीक्षा पैटर्न और मोड में एकरूपता के लिए कानून की छात्रा के प्रतिनिधित्व पर विचार करने का निर्देश दिया
Avanish Pathak
31 May 2022 11:45 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह कानून के छात्रों की ओर से पेश प्रतिनिधित्व पर विचार करे, जिसमें राज्य भर के सभी विश्वविद्यालयों में स्नातक छात्रों के लिए परीक्षा के तरीके और पैटर्न में एकरूपता की मांग की गई है।
जस्टिस मिलिंद जाधव और जस्टिस अभय आहूजा की खंडपीठ ने 37 वर्षीय कानून की छात्रा भालूशा भसल को सुनने के बाद निदेशक, उच्च शिक्षा विभाग, महाराष्ट्र को छात्रा के 23 अप्रैल, 2022 के प्रतिनिधित्व पर विचार करने का निर्देश दिया।
अगली सुनवाई 16 जून 2022 को दोपहर 12 बजे होगी।
कोर्ट ने कहा कि राज्य को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए क्योंकि याचिकाकर्ता उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री, महाराष्ट्र और सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के बीच 25 अप्रैल, 2022 को हुई बैठक में लिए गए निर्णय को लागू करने की मांग कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि परीक्षा पैटर्न में एकरूपता होगी और ऑफलाइन परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विश्वविद्यालयों को बैठक के मिनट्स प्रसारित किए जाने के बावजूद, विभिन्न विश्वविद्यालय अपने-अपने परीक्षा पैटर्न के अनुसार अलग-अलग शैक्षिक पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कुछ का पैटर्न डिस्क्रिप्टिव, जबकि कई बहुविकल्पीय प्रारूप पर परीक्षाएं ले रहे हैं, जिससे भेदभाव पैदा हो रहा है और मनमानी हो रही है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट उदय वरुंजिकर ने कहा कि प्रमुख सचिव और राज्य मंत्री के समक्ष एक व्यापक प्रतिनिधित्व लंबित था। रिट याचिका में दिए गए सुझावों से सभी छात्रों को लाभ होगा। इस पर विश्वविद्यालयों के साथ-साथ राज्य सरकार को विचार करना जरूरी है।
उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि विभिन्न कॉलेजों में परीक्षाएं शुरू हो गई थीं, जिसके जवबा में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जहां परीक्षाएं होनी बाकी हैं, वहां राज्य के निर्देश पर विचार किया जा सकता है।
कोर्ट ने जिसके बाद कहा,
"इसलिए हम प्रतिवादी संख्या 2 - निदेशक, उच्च शिक्षा विभाग, मंत्रालय, मुंबई को निर्देश देते हैं कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा 23.05.2022 को दिए गए अभ्यावेदन पर सुनवाई करें और उन्हें व्यक्तिगत रूप से सुनने के बाद याचिकाकर्ताओं को एक तर्कपूर्ण और सकारक प्रतिक्रिया दें और संबंधित अधिकारियों के समक्ष विवरण रखें।"
तद्नुसार याचिका का निपटारा किया गया। सभी पक्षों की दलीलों को खुला छोड़ दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने एक एकल परीक्षा पैटर्न और परीक्षा के तरीके का पालन करने और समय पर परिणाम घोषित करने की अंतिम राहत के लिए परमादेश की मांग की थी।
याचिका में कहा गया है, "पूरे राज्य में परीक्षा के एक समान पैटर्न के साथ-साथ अकादमिक कैलेंडर के एक समान पैटर्न की आवश्यकता है।"
याचिका में कहा गया है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त हो सकते हैं लेकिन परीक्षा पैटर्न एक समान होना चाहिए।
इसमें आगे कहा गया है कि "एमसीक्यू की तुलना डिस्क्रिप्टिव पैटर्न से नहीं की जा सकती है। एमसीक्यू पैटर्न में पास छात्रों को डिस्क्रिप्टिव पैटर्न से पास छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर किया जाएगा ... तब मनमानी, अतार्किकता और भेदभाव होगा।"
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि मुंबई विश्वविद्यालय खुद पाठ्यक्रम के आधार पर ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीकों से अपनी परीक्षाएं आयोजित कर रहा है और केवल तीन विश्वविद्यालय, गोंडवाना विश्वविद्यालय, राष्ट्रसंत तुकाड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, कवयित्री बहिनाबाई चौधरी उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, और जलगांव एमसीक्यू पैटर्न पर ऑफलाइन परीक्षाएं आयोजित करने के राज्य के निर्णय का पालन कर रहे हैं।
अधिकांश अन्य विश्वविद्यालय ऑफलाइन डिस्क्रिप्टिव परीक्षाएं आयोजित कर रहे हैं।
केस टाइटल: बालूशा संतोष भसल और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।