"पहले हम यह सुनिश्चित करें कि महाराष्ट्र के गांवों को पानी मिले": बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्रिकेटर द्वारा सार्वजनिक मैदानों में पानी की आपूर्ति की मांग वाली जनहित याचिका पर कहा

Shahadat

21 July 2022 11:15 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को जिला स्तरीय क्रिकेट खिलाड़ी को फटकार लगाई, जिसने जनहित याचिका दायर कर मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए), बीसीसीआई और नगर निकायों के खिलाफ सभी सार्वजनिक मैदानों पर शौचालय, पानी और मेडिकल सहायता जैसी स्वच्छता सुविधाओं के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

    चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने कहा कि "क्रिकेट हमारा खेल नहीं है" और गांवों में पानी सुनिश्चित करना प्राथमिकता होनी चाहिए।

    जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता से यह बताने को कहा कि क्या एमसीए और बीसीसीआई जैसी संस्थाएं उनके खिलाफ निर्देश देने के लिए राज्य की परिभाषा के तहत आएंगी।

    सीजे ने कहा,

    "क्या आप जानते हैं कि औरंगाबाद को सप्ताह में एक बार पानी मिलता है। आप अपने घर से पानी क्यों नहीं लाते? आप क्रिकेट खेलना चाहते हैं, जो भारत में हमारा मूल खेल नहीं है। पहले हम सुनिश्चित करें कि महाराष्ट्र के गांवों को पानी मिले।"

    याचिकाकर्ता राहुल राजेंद्र प्रसाद तिवारी ने कहा कि एमसीए और बीसीसीआई दोनों ही पैसा खर्च कर रहे हैं, जबकि ये सुविधाएं प्रदान करना उनका वैधानिक कर्तव्य है। इसके अलावा, ड्रेसिंग रूम भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "क्या ये विलासिता नहीं हैं? कई गांवों को पानी नहीं मिल रहा है। आप भाग्यशाली हैं कि आपके माता-पिता जैज़ी क्रिकेट बैट, पेट गार्ड खरीद सकते हैं ... अगर वे आपको ये सब खरीद सकते हैं, तो कई लीटर पानी भी खरीद सकते हैं। इस तरह की जनहित याचिकाओं को दायर करके लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश मत करो। यदि आप क्रिकेटर हैं तो अच्छा खेलें। इन चीजों को स्वयं प्रबंधित करें।

    पीठ ने कहा कि वह लोगों के जीने के मौलिक अधिकार से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है, जैसे अनधिकृत निर्माण, चिपलून बाढ़ आदि। फिर भी इस मामले को सुनवाई के लिए लिया गया।

    अदालत ने तब याचिकाकर्ता से व्यक्तिगत रूप से पूछा कि क्या उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन किया है।

    कोर्ट ने पूछा,

    "आप मौलिक अधिकारों की बात कर रहे हैं, आपने संविधान के 51ए के तहत अपने मौलिक कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए क्या किया है?"

    सीजे ने पूछा कि आपने औरंगाबाद के लोगों के लिए क्या किया, जबकि यह सरकार के लिए सूची में सबसे नीचे है।

    पीठ ने कहा कि यह एमसीए की जिम्मेदारी है, लेकिन याचिकाकर्ता से यह दिखाने के लिए कहा कि यह अदालत के रिट अधिकार क्षेत्र में आता है।

    पीठ ने याचिकाकर्ता को सीनियर एडवोकेट से परामर्श करने का सुझाव दिया।

    सीजे ने कहा,

    "आप हमारे सवालों को नहीं समझ रहे हैं।"

    याचिकाकर्ता का मामला यह है कि जब भी अभ्यास के लिए मैदान बुक किया जाता है तो क्रिकेट संघ या नागरिक निकाय द्वारा शुल्क लिया जाता है, इसलिए सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।

    जस्टिस एके मेनन और जस्टिस एमएस कार्णिक की हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने बीसीसीआई, एमसीए और नगर निकायों से यह कहते हुए जवाब दाखिल करने को कहा कि बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए।

    पिछले आदेश में केवल एक तथ्यात्मक त्रुटि को ठीक करने के लिए मामले को गुरुवार को सीजे की पीठ के समक्ष लाया गया।

    अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था,

    'आपका अगला बड़ा सितारा सार्वजनिक मैदान से आ सकता है। इतने होनहार बच्चे सार्वजनिक मैदान पर खेल रहे हैं।'

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