फुट-ओवर ब्रिज के अभाव में रेलवे ट्रैक पार करते समय ट्रेन की चपेट में आया यात्री मुआवजे का हकदार: बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
17 Oct 2022 10:40 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि फुट ओवर ब्रिज की अनुपस्थिति के कारण यात्री रेलवे ट्रैक पार करने के लिए मजबूर हो जाता है और ट्रेन की चपेट में आ जाता है, उसे लापरवाही नहीं कहा जा सकता। उसके आश्रित रेलवे अधिनियम, 1989 के तहत मुआवजे के हकदार होंगे।
अदालत ने कहा,
"व्यक्ति जो नौकरी की तलाश में गांव से आता है, वैध यात्रा टिकट वाली यात्री ट्रेन में चढ़ता है, ट्रेन से उतरता है और ओवरब्रिज के अभाव में रेलवे स्टेशन से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है और पटरियों के साथ चलने के लिए मजबूर हो जाता है और किसी अन्य ट्रेन हिट हो जाता है और मर जाता है, इसे जानबूझकर लापरवाह नहीं कहा जा सकता।"
जस्टिस अभय आहूजा की नागपुर बेंच की पीठ ने रेलवे ट्रैक पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से मारे गए व्यक्ति की विधवा, बेटे और मां द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया और अपीलार्थी को आठ लाख रुपये का मुआवजा दिया।
मृतक ने वैध टिकट पर गोंदिया से रेराल की यात्रा की। रेराल में ट्रेन से उतरने के बाद वह रेलवे ट्रैक के साथ चल रहा था, जब वह दूसरी ट्रेन की चपेट में आ गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
रेलवे दावा न्यायाधिकरण, नागपुर ने उनके परिवार के सदस्यों द्वारा दायर मुआवजे के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मृतक की मृत्यु उसकी अपनी लापरवाही के कारण हुई और वह ट्रेन से उतरने के बाद वास्तविक यात्री नहीं था। इसके अलावा, यह घटना रेलवे अधिनियम की धारा 123(c)(2) के तहत कोई अप्रिय घटना नहीं है।
अपीलकर्ताओं के वकील आर जी बागुल ने प्रस्तुत किया कि घटना की तारीख में रेलवे स्टेशन पर कोई फुट ओवर ब्रिज नहीं था। फुटओवर ब्रिज खुलने से पहले यात्रियों को स्टेशन से बाहर निकलने के लिए प्लेटफॉर्म पर उतरकर रेलवे ट्रैक के किनारे चलना पड़ता है या उसे पार करना पड़ता है। यह स्पष्ट रूप से रेलवे अधिकारियों की लापरवाही को दर्शाता है। घटना में मृतक की कोई गलती नहीं थी।
रेलवे की ओर से एडवोकेट नीरजा चौबे ने दलील दी कि उसकी लापरवाही के कारण ही मृतक ट्रेन की चपेट में आया। समझदार व्यक्ति रेलवे ट्रैक को पार करते समय अधिक सतर्क रहेगा, खासकर तब जब कोई ओवर ब्रिज न हो।
अदालत ने रेलवे अधिनियम की धारा 2(29) के तहत 'यात्री' की परिभाषा का उल्लेख किया और कहा कि परिभाषा यह नहीं बताती कि यात्री ट्रेन से उतरने और दुर्घटना का शिकार होने के बाद यात्री नहीं रह जाता। अदालत ने कहा कि रेलवे अधिनियम इस अवधारणा पर विचार या मान्यता नहीं देता।
अदालत ने राकेश सैनी बनाम भारत संघ पर भरोसा किया, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी तरह के मामले में कहा कि मृतक को लापरवाह नहीं माना जा सकता, लेकिन रेलवे प्रशासन लापरवाह है और आश्रित मुआवजे के हकदार हैं।
अदालत ने कहा कि घटना के बाद ही रेलवे स्टेशन पर फुटओवर ब्रिज यात्रियों के लिए खोला गया। इससे पहले यात्रियों के पास पटरियों पर चलने या उन्हें पार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
अदालत ने कहा कि मृतक ने कल्पना भी नहीं की थी कि कोई ट्रेन आ रही होगी और उसे टक्कर मार देगी।
अदालत ने आगे कहा कि रेलवे अधिनियम लाभकारी कानून है और प्रावधानों को उदार व्याख्या दी जानी चाहिए न कि शाब्दिक या अति तकनीकी व्याख्या दी जानी चाहिए।
अदालत ने भारत संघ बनाम प्रभाकरन विजय कुमार पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे अधिनियम की धारा 124 ए रेलवे दुर्घटनाओं के मामले में सख्त दायित्व निर्धारित करती है।
अदालत ने कहा कि यह अप्रासंगिक है कि रेल अधिनियम की धारा 124-ए की बात करते समय गलती किसकी है।
यह देखा गया कि वर्तमान मामले में रेलवे अधिकारियों द्वारा कोई सबूत या दावा भी नहीं किया गया कि यह स्वयं को चोट पहुंचाने का मामला है।
अदालत ने अपीलकर्ताओं को मुआवजे को खारिज करने के रेलवे दावा न्यायाधिकरण के फैसले को खारिज करते हुए कहा,
"इस न्यायालय का विचार है कि मृतक वास्तविक यात्री था, जो अप्रिय घटना के कारण मर गया। अपीलकर्ता मृतक के आश्रित होने के कारण रेलवे अधिनियम की धारा 124-ए के तहत मुआवजे के हकदार होंगे।"
केस नंबर- पहली अपील संख्या 419/2019
केस टाइटल- सुनीता मनोहर गजभिये बनाम भारत संघ
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