बॉम्बे हाईकोर्ट ने शॉर्ट स्कर्ट पहनने और उत्तेजक डांस करने को अश्लीलता मानने से किया इनकार, कहा- अश्लीलता पर "प्रगतिशील" दृष्टिकोण अपनाना चाहिए
Shahadat
13 Oct 2023 10:13 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महिलाओं का छोटे कपड़ों में उत्तेजक नृत्य करना या इशारे करना "अश्लील" या "अनैतिक" कृत्य नहीं है, जो किसी को परेशान कर सकता है।
जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी मेनेजेस की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 294 और सार्वजनिक रूप से अभद्रता के लिए महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धाराओं और महाराष्ट्र निषेध अधिनियम, 1949 के तहत आरोपी पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी।
पुलिस ने एक रिसॉर्ट और वाटर पार्क के बैंक्वेट हॉल में छापेमारी के बाद एफआईआर दर्ज की, जहां छह महिलाएं कथित तौर पर शॉर्ट स्कर्ट में नृत्य करती पाई गईं और आवेदक उन पर पैसे बरसा रहे थे। मामले में पुरुषों और महिलाओं दोनों पर मामला दर्ज किया गया।
खंडपीठ ने कहा,
“हमारी सुविचारित राय है कि शिकायत/एफआईआर में उल्लिखित अभियुक्त नंबर 13 से 18 (महिला नर्तकियों) के कृत्यों, अर्थात् शॉर्ट स्कर्ट पहनना, उत्तेजक नृत्य करना या इशारे करना जिन्हें पुलिस अधिकारी अश्लील मानते हैं, उसको अश्लील नहीं कहा जा सकता। अपने आप में अश्लील हरकतें हों, जिससे जनता के किसी भी सदस्य को परेशानी हो सकती है।''
खंडपीठ ने कहा कि वह वर्तमान भारतीय समाज में प्रचलित नैतिकता के सामान्य मानदंडों के प्रति सचेत है, लेकिन "वर्तमान समय में यह काफी सामान्य और स्वीकार्य है कि महिलाएं ऐसे कपड़े पहन सकती हैं, या तैराकी पोशाक या ऐसे अन्य दिखावटी पोशाक पहन सकती हैं।"
खंडपीठ ने आगे कहा,
“हम अक्सर सेंसरशिप से गुजरने वाली फिल्मों में या किसी भी दर्शक को परेशान किए बिना व्यापक सार्वजनिक दृश्य में आयोजित सौंदर्य प्रतियोगिताओं में इस तरह की पोशाक देखते हैं। निश्चित रूप से आईपीसी की धारा 294 के प्रावधान इस सभी स्थिति पर लागू नहीं होंगे।'
अदालत ने माना कि वह इस मामले में प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाएगी और यह निर्णय छोड़ने को तैयार नहीं थी कि पुलिस अधिकारियों के हाथों में अश्लीलता क्या होगी।
अदालत ने कहा,
"...हम ऐसी स्थिति का सामना करने में असमर्थ हैं, जहां एफआईआर में उल्लिखित कृत्यों का मूल्यांकन पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाएगा, जो अपनी व्यक्तिगत राय में उन्हें जनता के किसी भी सदस्य को परेशान करने के लिए अश्लील कृत्य मानता है।"
आवेदकों के वकील अक्षय नाइक ने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 294 नहीं बनाई गई, क्योंकि किसी भी व्यक्ति या शिकायतकर्ता को नाचती हुई लड़कियों को देखकर झुंझलाहट महसूस होने का कोई उल्लेख नहीं है। इसके अलावा, केवल इसलिए कि पुलिस अधिकारी को लगा कि उसने जो देखा वह अश्लील था, इस कृत्य को अपराध नहीं माना जाएगा।
याचिकाकर्ताओं और अदालत ने इंडियन होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन (अहार) और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य में सुप्रीम कोर्ट के मामले पर बहुत अधिक भरोसा किया।
राज्य के अतिरिक्त लोक अभियोजक एस.एस. डोइफोडे ने पुलिस का हलफनामा प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि नृत्य से नाराज जनता के सदस्य की गुप्त सूचना के आधार पर छापेमारी की गई थी।
अदालत ने आईपीसी की धारा 294 के तहत अपराध करने के लिए कहा - i) कोई कार्य सार्वजनिक स्थान पर किया गया हो; ii) उक्त कृत्य अश्लील होना चाहिए; और iii) इससे दूसरों को परेशानी होनी चाहिए।
जबकि कृत्य सार्वजनिक स्थान पर किया गया, पीठ ने माना कि यह न तो अश्लील था, न ही किसी को परेशान करने वाला।
खंडपीठ ने कहा,
“हम अतिरिक्त पीपी द्वारा की गई दलीलों को अस्वीकार करने के लिए बाध्य हैं। दोनों ने शिकायतकर्ता के उस दावे के सवाल पर कि छोटे कपड़ों में नाचती हुई पाई गईं लड़कियां अश्लील या अनैतिक कृत्यों में लिप्त थीं और साथ ही इस दलील पर भी कि एफआईआर से यह खुलासा हो जाएगा कि ऐसे कृत्य दूसरों को परेशान करने वाले थे।''
केस नंबर - आपराधिक आवेदन (एपीएल) नंबर 817/2023
केस टाइटल- ललित पुत्र नंदलाल बैस बनाम महाराष्ट्र राज्य
अपीयरेंस- ए. ए. नाइक, आवेदकों के वकील। एस.एस. डोईफोडे, गैर-आवेदक/राज्य के लिए अतिरिक्त पी.पी
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