नागरिकों को जंगली जानवरों के हमलों से बचाना राज्य का दायित्व, किसी भी तरह की दुर्घटना सरकार की विफलता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

27 Sep 2022 10:10 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि जंगली जानवरों की रक्षा करना और उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्र से बाहर नहीं भटकने देना राज्य सरकार का कर्तव्य है, सोमवार को कहा कि यह राज्य के लिए भी अनिवार्य है कि वह नागरिकों को जंगली जानवरों द्वारा किसी भी चोट से बचाएं।

    अदालत ने फैसला सुनाया,

    "राज्य सरकार के संबंधित अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वे जंगली जानवरों की रक्षा करें और उन्हें प्रतिबंधित सुरक्षा क्षेत्र से बाहर न भटकने दें। इसी तरह कोरोलरी ड्यूटी के रूप में संबंधित अधिकारियों पर यह दायित्व भी डाला जाता है कि वे नागरिकों को जंगली जानवरों द्वारा किसी भी चोट से बचाने के लिए प्रयास करें। इस प्रकार, यह राज्य सरकार का दोहरा दायित्व है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "अगर कोई जंगली जानवर किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाता है तो यह वास्तव में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार की रक्षा करने में राज्य सरकार की विफलता है।"

    जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने महिला द्वारा दायर रिट याचिका में यह फैसला सुनाया, जिसमें जंगली सूअर द्वारा हमला किए गए अपने पति की मौत के लिए उसे मुआवजा देने से राज्य के इनकार को चुनौती दी गई।

    याचिकाकर्ता के पति की फरवरी, 2019 में जंगली सूअर के हमले के कारण सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। स्थानीय पुलिस स्टेशन ने एफआईआर दर्ज की और दुर्घटना के दिन मौके पर पंचनामा किया। मौके पर पंचनामा दर्ज किया गया कि जंगली सूअर ने हमला किया और पीड़ित के दोपहिया वाहन से टकरा गया, जिसके परिणामस्वरूप एक घातक दुर्घटना हुई।

    सरकारी प्रस्ताव दिनांक 11 जुलाई, 2018 के तहत 10 लाख रुपये के मुआवजे के उनके आवेदन को क्षेत्रीय वन अधिकारी ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि घटना के 48 घंटों के भीतर जानकारी नहीं दी गई। उन्हें यह भी बताया गया कि वन अधिकारी की मौजूदगी में तीन दिन के भीतर पंचनामा नहीं कराया गया।

    राज्य के वन मंत्री द्वारा उनके प्रतिनिधित्व का जवाब देने में विफल रहने के बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट आरएस आप्टे ने कहा कि हमला और दुर्घटना विवादित नहीं है।

    आप्टे ने तर्क दिया,

    "मुआवजा नहीं देना अनुचित है। इसके अलावा, राज्य मशीनरी होने के नाते पुलिस स्टेशन को निकटतम वन कार्यालय को सूचित करना चाहिए था।"

    राज्य के अतिरिक्त सरकारी वकील मिलिंद मोरे ने कहा कि मुआवजा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि मौत सड़क दुर्घटना में सिर में चोट लगने से हुई, न कि जंगली सूअर के हमले से।

    अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने उसके सामने किसी भी सरकारी प्रस्ताव की प्रति पेश नहीं की, जिसमें कहा गया कि दुर्घटना की जानकारी 48 घंटों के भीतर दी जानी चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "किसी भी मामले में जहां तक ​​याचिकाकर्ता द्वारा किए गए दावे का संबंध है, 48 घंटे की समय-सीमा अप्रासंगिक है। किसी भी स्थिति में यह राज्य सरकार को मुआवजे का भुगतान करने के अपने दायित्व से मुक्त नहीं करेगा।"

    पीठ ने यह भी कहा कि दुर्घटना के बारे में संबंधित निकटतम वन कार्यालय को सूचित करना स्थानीय पुलिस स्टेशन का कर्तव्य है।

    पीठ ने कहा,

    "प्रतिवादी नंबर दो द्वारा दिया गया दूसरा कारण यह है कि सरकारी संकल्प के अनुसार, दुर्घटना के तीन दिनों के भीतर स्थानीय पुलिस अधिकारी और निकटतम वन अधिकारी द्वारा पंचनामा करना अनिवार्य है। प्रतिवादी नंबर दो द्वारा दर्ज याचिकाकर्ता के आवेदन को अस्वीकार करने का कारण यह है कि वर्तमान मामले में पंचनामा का संचालन करने वाला अधिकारी पुलिस उपाधीक्षक और रेंज वन अधिकारी के पद से नीचे है। इस कारण का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया गया।

    अदालत ने कहा कि पंचनामा से पता चलता है कि जंगली सूअर के हमले के अलावा दुर्घटना का कोई अन्य कारण नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के आवेदन को अस्वीकार करने के कारण अनुचित हैं, क्योंकि राज्य ने इस बात पर विवाद नहीं किया कि जंगली सूअर के हमले में मानव जीवन की हानि होती है।

    अदालत ने कहा कि वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 राज्य सरकार के लिए जंगली जानवरों की रक्षा का दायित्व बनाता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत नागरिकों के जीवन की रक्षा करना राज्य सरकार का दायित्व है।

    अदालत ने कहा कि 2018 जीआर के बिना भी याचिकाकर्ता मुआवजे का हकदार होगा, क्योंकि मौत राज्य मशीनरी की विफलता के कारण हुई।

    अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को 2018 जीआर के अनुसार ब्याज सहित मुआवजा दिया जाए। कोर्ट ने मुकदमेबाजी की लागत के लिए 50,000 और एक लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा भी दिया, क्योंकि राज्य ने याचिकाकर्ता को अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर करने के लिए अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया।

    केस नंबर- रिट याचिका नंबर 3116/2022

    केस टाइटल- अनुजा अरुण रेडिज बनाम महाराष्ट्र राज्य

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