'उसने आरोपी के साथ अपने प्रेम संबंध को स्पष्ट रूप से वर्णित किया है': बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के आरोपी को बरी किया
LiveLaw News Network
29 Jan 2021 8:00 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के मामले में दोषी ठहराए गए एक 27 वर्षीय ड्राइवर को राहत देते हुए उसको दी गई सजा को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नजर नहीं आ रही है। अपराध के समय पीड़िता की उम्र 17 साल और 9 महीने थी।
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 376 (2) (एन) (एक ही महिला से बार-बार बलात्कार करना) और पाॅक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय धारा 5 (नाबालिग पर आक्रामक यौन हमला) के तहत किए गए अपराध के लिए दस साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।
ट्रायल कोर्ट के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि यौन उत्पीड़न के संबंध में नाबालिग पीड़िता के बयान के अलावा, अभियोजन पक्ष के बलात्कार के आरोप का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है।
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने कहा, ''केवल कई अवसरों पर संभोग करने के संबंध में लगाए गए आरोपों के आधार पर अपीलकर्ता/अभियुक्त को 10 साल की कैद की सजा देना अत्यधिक तर्कहीन होगा।''
आदेश में कहा गया हैः
''पीड़िता की गवाही का एक पहलू यह दर्शाता है कि उसने अपीलकर्ता/ अभियुक्त के साथ अपने प्रेम संबंधों के बारे में स्पष्ट रूप से वर्णन किया है।
गर्भावस्था के संबंध में, पीड़िता ने अपने बयान में कुछ नहीं कहा। रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं आया,जो यह दर्शा सकें कि उसकी गर्भावस्था का क्या हुआ?
उसके बालिग होने में सिर्फ तीन महीने की कमी थी ...
पीड़िता के उपरोक्त कथन को छोड़कर, जिसमें उसने अपीलार्थी/ अभियुक्त की बहन के घर पर संभोग करने की बात कही है,अभियोजन पक्ष के बलात्कार के आरोप को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।''
पीठ ने कहा कि नाबालिग पीड़िता ने अदालत के विश्वास को प्रेरित नहीं किया क्योंकि उसने पुलिस के समक्ष बलात्कार के आरोपों का खुलासा नहीं किया था, और न ही इस बारे में चर्चा की थी कि कैसे उसे और अपीलार्थी/ अभियुक्त को गोपनीयता मिली और किन परिस्थितियों में उसने शारीरिक स्थापित करने के लिए मजबूर किया गया।
न्यायाधीश ने कहा कि,
''यह चूक प्रकृति में इतनी अधिक महत्वपूर्ण है,जो इस मामले के भाग्य का फैसला करने की ताकत रखती है। उसने पुलिस के सामने यह नहीं बताया कि उसकी बहन के घर पर उनके बीच यौन संबंध बने थे। प्रेगेंनसी टेस्ट पाॅजिटिव आने के बाद ही बलात्कार का अपराध जोड़ा गया था।''
पृष्ठभूमि
नाबालिग पीड़िता अभियुक्त से परिचित थी क्योंकि वे हिंगनघाट में एक ही मकान मालिक के यहां किरायेदार थे। मामले के तथ्यों में, यह आरोप लगाया गया है कि जब पीड़िता अपने गृहनगर से हिंगनघाट लौटी थी तो उसी समय आरोपी उसे अपने माता-पिता के घर ले गया और कुछ दिनों तक वह वहीं रहे। इसके बाद,वह आरोपी की बहन के घर पर भी गए और उन्होंने यौन संबंध बनाए।
आरोपी को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने आईपीसी की धारा 376 (2) (एन) और पाॅक्सो एक्ट 2012 की धारा 6 के तहत दंडनीय धारा 5 में दोषी ठहराया गया था।
अपील में, नाबालिग के साथ संभोग के स्पष्ट आरोपों के बावजूद, न्यायाधीश ने पर्याप्त सबूत न होने के आधार पर आरोपी को बरी कर दिया।
न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि अभियोजन पक्ष पितृत्व को साबित करने के लिए अभियुक्त की डीएनए रिपोर्ट रिकॉर्ड पर नहीं लाया, इसलिए अदालत सिर्फ पीड़िता के एक मात्र बयान पर आगे नहीं बढ़ सकती है। कोर्ट ने कहा कि,
''इसमें कोई शक नहीं, पीड़िता की गवाही अपीलकर्ता/ अभियुक्त की सजा के लिए पर्याप्त है, हालांकि इस गवाही को अदालत का आत्मविश्वास जीतना होगा। यह गवाही स्टर्लिंग गुणवत्ता की होनी चाहिए।
मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, न्यायालय की राय है कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपीलार्थी/ आरोपी के खिलाफ बलात्कार का अपराध साबित नहीं कर पाया।''
इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि नाबालिग की सहमति संभोग के मामलों में महत्वहीन होती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक पुरुष को बलात्कार का आरोपी कहा जाएगा यदि वह किसी ऐसी महिला के साथ संभोग करता है,जो अठारह वर्ष से कम उम्र की हो,फिर ऐसे संबंध बनाने के लिए भले ही उसने सहमति दी हो या ना दी हो।
वास्तव में, यह विभिन्न न्यायालयों द्वारा माना गया है कि नाबालिग लड़की की सहमति को सजा के मामलों में 'सजा कम करने वाला कारक' भी नहीं माना जा सकता है।
नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना 'यौन हमला' नहीं है- इसी जज द्वारा दिया गया दूसरा फैसला
5 साल की नाबालिग बलात्कार पीड़िता से संबंधित एक अन्य मामले में, इसी न्यायाधीश ने कहा था कि एक नाबालिग लड़की के हाथ को पकड़ना और पैंट की जिप खोलने का कार्य पाॅक्सो एक्ट के तहत ''यौन हमले'' की परिभाषा में नहीं आएगा(लिब्नस बनाम महाराष्ट्र राज्य)। 15 जनवरी को दिए गए फैसले में, न्यायाधीश ने कहा था कि इस तरह के कृत्य आईपीसी की धारा 354-ए (1) (i) के तहत ''यौन उत्पीड़न'' के समान होंगे।
न्यायालय ने कहा था कि 'यौन उत्पीड़न' की परिभाषा के अनुसार, 'पेनिट्रेशन के बिना यौन इरादे के साथ शारीरिक संपर्क' अपराध के लिए आवश्यक घटक है।
चूंकि मामले में शरीर के निजी हिस्सों का कोई वास्तविक स्पर्श नहीं हुआ था, इसलिए हाईकोर्ट ने माना कि यह कृत्य अधिनियम की परिभाषा के तीसरे भाग के दायरे में आएगा- ''यौन इरादे के साथ किया गया कोई अन्य कृत्य, जिसमें पेनिट्रेशन के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है।''
पाॅक्सो के तहत यौन उत्पीड़न के लिए त्वचा से त्वचा का स्पर्श आवश्यक- इसी जज द्वारा दिया गया एक और निर्णय
एक अन्य फैसले में,इसी न्यायाधीश ने कहा था कि पाॅक्सो के तहत 'यौन उत्पीड़न' के लिए प्रत्यक्ष रूप से त्वचा से त्वचा का स्पर्श आवश्यक था। यह एक ऐसा मामला था, जिसमें आरोपी ने एक बारह साल की लड़की के कपड़े (सतीश बनाम महाराष्ट्र राज्य) निकाले बिना ही उसके स्तनों को छुआ था।
19 जनवरी, 2021 को दिए गए फैसले में, अदालत ने यौन उत्पीड़न/यौन हमले की परिभाषा के संबंध में ''शारीरिक संपर्क'' शब्द की व्याख्या की थी, जिसका अर्थ है ''प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क-प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क यानी पेनिट्रेशन के बिना यौन के इरादे से त्वचा का त्वचा से संपर्क।''
कोर्ट ने कहा कि,''इस न्यायालय की राय में, अपराध (पाॅक्सो के तहत) के लिए प्रदान किए गए दंड की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, सख्त सबूत और गंभीर आरोपों की आवश्यकता है। 12 वर्ष की आयु के बच्चे के स्तन को दबाने का कार्य, किसी भी विशिष्ट विवरण के अभाव में कि क्या कुर्ता निकाला गया था या उसने अपने हाथ को कुर्ते के अंदर डाला था और उसके बाद स्तन को दबाया था, 'यौन हमले' की परिभाषा में नहीं आएगा।''
हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को आईपीसी की धारा 354 के तहत 'महिला की सुशीलता भंग करने' के अपराध के लिए दोषी ठहराया, जिसमें पाॅक्सो की धारा 8 की तुलना में कम सजा का प्रावधान है। आईपीसी की धारा 354 के तहत एक महिला की सुशीलता भंग करने के मामले में न्यूनतम सजा एक वर्ष है,जबकि इसकी तुलना में पाॅक्सो एक्ट की धारा 8 के तहत ''यौन हमला'' करने के मामले में कम से कम तीन साल की सजा का प्रावधान है। हालांकि दोनों अपराधों में अधिकतम पांच साल की कैद होती है।
इस फैसले से व्यापक आलोचना और सार्वजनिक आक्रोश फैल गया है। बुधवार (28 जनवरी) को भारत के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस फैसले के बारे में सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया।
एजी ने कहा कि निर्णय ''अभूतपूर्व'' है और ''खतरनाक मिसाल''स्थापित करेगा। एजी द्वारा किए गए उल्लेख के आधार पर, भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले के अनुसार पाॅक्सो एक्ट के तहत बरी किए जाने पर रोक लगा दी है।
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