बॉम्बे हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश, एनपीए की गणना के लिए तय अवधि से लॉकडाउन को बाहर रखें
LiveLaw News Network
13 April 2020 2:42 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया है, जिसमें कहा गया है कि लोन एकाउंट को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) घोषित करने के लिए लॉकडाउन के 90 दिन की अवधि को बाहर रखा जाना चाहिए। एक मार्च, 2020 को डिफॉल्ट हो चुके लोन एकाउंट पर COVID-19 राहत पैकेज के तहत दिया गया मोहलत का लाभ लागू होता है।
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने एक मार्च से पहले ही डिफॉल्ट हो चुके एक लोन एकाउंट को एनपीए घोषित किए जाने के संबंध में आरबीआई के राहत पैकेज के तहत पूर्ण लाभ का दावा किया गया था, हालांकि आईसीआईसीआई बैंक ने याचिका का विरोध किया।
जस्टिस जीएस पटेल ने शनिवार को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से तत्काल सुनवाई के बाद, आरबीआई परिपत्र के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों पर स्पष्ट राय दिए बिना, यथास्थिति को बनाए रखने का अंतरिम आदेश पारित किया।
कोर्ट ने आदेश में कहा है, "लॉकडाउन की एक मार्च 2020 से 31 मई 2020 तक की 90 दिनों की अवधि को एनपीए घोषणा की गणना से बाहर रखा जाएगा।"
30 पन्नों के आदेश में, जस्टिस पटेल ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को दी गई राहत सभी पर लागू नहीं होती है। साथ ही याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया गया है कि लॉकडाउन हटने के 15 दिनों के भीतर डिफॉल्ट राशि का भुगतान करें।
केस की पृष्ठभूमि
ट्रांसकॉन आइकोनिका ने मुंबई उपनगर की एक निर्माण परियोजना के लिए आईसीआईसीआई बैंक से 80 करोड़ रुपये का टर्म लोन लिया था। बैंक की ओर से 30 करोड़ रुपये का लोन दिया जा चुका था। दोनों पक्षों के बीच एक सुविधा समझौता हुआ कि, जिसमें 18 किस्तों में रीपेमेंट शेड्यूल और ब्याज किस्तों को तय किया गया था। हालांकि रीपेमेंट शेड्यूल के तहत 15 जनवरी और 15 फरवरी को देय राशियों का भुगतान नहीं किया गया।
RBI के दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि डिफॉल्ट हो चुकी राशि का भुगतान डिफॉल्ट होने के 90 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है तो खाते को एनपीए घोषित किया जाता है। हालांकि, कोरोनोवायरस के कारण सामने आने वाली जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए, पिछले महीने आरबीआई ने सभी वाणिज्यिक बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को 1 मार्च, 2020 तक बकाया लोन की किस्तों के रीपेमेंट पर तीन महीनों को की मोहलत देने की छूट दी थी।
इसलिए,न्यायालय के समक्ष सवाल यह था कि क्या 1 मार्च, 2020 से पहले देय राशियों के लिए 90-दिन की अवधि की गणना में अधिस्थगन अवधि को बाहर रखा जाए, और जो चुकाई न गई हो या डिफॉल्ट हो। ।
दलीलें
मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ.बीरेंद्र सराफ याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित हुए, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता विराग तुल्जापुरकर आईसीआईसीआई बैंक की ओर से पेश हुए। डॉ सराफ ने अनंत राज लिमिटेड बनाम यस बैंक लिमिटेड में दिल्ली उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई अधिस्थगन की सलाह उन ऋणों पर भी लागू होती है, जो 1 मार्च, 2020 तक डिफॉल्ट हो चुके हैं।
जबकि, तुल्जापुरकर ने याचिका पर ही सवाल उठाया और कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट का आदेश अन्य उधारकर्ताओं को भी अनापेक्षित रूप से प्रभावित कर सकता है।
उन्होंने चंदा दीपक कोचर बनाम आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड व अन्य के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की एक अन्य बेंच के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आईसीआईसीआई बैंक जैसे निजी बैंक के खिलाफ नहीं रिट याचिका नहीं दायर की जा सकती है।
हालांकि डॉ सराफ ने दलील दी कि चंदा कोचर मामले में दिया गया फैसला मौजूदा मामले के तथ्यों से पूरी तरह अलग है।
फैसला
दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस पटेल ने कहा -
"इस मामले एक ऐसा आदेश पारित किए जाने की आवश्यकता है जो मामले के तथ्यों तक ही सीमित रहे। साथही अन्य मामलों में आईसीआईसीआई बैंक के लिए मिसाल न बनें।"
कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित किया-
(ए) अधिस्थगन की अवधि को आईसीआईसीआई बैंक एनपीए घोषणा के लिए इस्तेमाल नहीं करेगा। 31 मई, 2020 तक दिए गए अधिस्थगन के बावजूद, यदि लॉकडाउन पहले हटा दिया जाता है तो याचिकाकर्ताओं को दी गई सुरक्षा उसी दिन से समाप्त हो जाएगी।
(बी) 31 मई 2020 से पहले लॉकडाउन हटने की स्थिति में याचिकाकर्ताओं के पास लॉकडाउन समाप्त होने के बाद 15 दिन का समय होगा, जिसमें वो 15 जनवरी 2020 को तय पहली किस्त के भुगतान को नियमित कर सकते हैं और तीन सप्ताह के भीतर दूसरी किस्त के भुगतान को नियमित कर सकते हैं।
(सी) यदि लॉकडाउन 31 मई 2020 से आगे बढ़ता है तो उसी अनुसार इन दिनों को भी स्थगित किया जाएगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश जनवरी 2020 तक स्थगन का पश्चगामी विस्तार नहीं है।
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