अपनी नाबालिग सौतेली बेटियों के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बॉम्बे हाईकोर्ट ने ज़मानत दी

LiveLaw News Network

18 July 2020 9:57 AM GMT

  • अपनी नाबालिग सौतेली बेटियों के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बॉम्बे हाईकोर्ट ने ज़मानत दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक मकरंद बपरडेकर की ज़मानत याचिका स्वीकार कर ली। अंधेरी पुलिस थाने में उसकी पत्नी ने उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करवाई है, जिसमें उस पर अपनी सौतेली बेटियों जिनमें एक नाबालिग है, के यौन उत्पीड़न का आरोप है।

    न्यायमूर्ति संदीप के शिंदे की पीठ ने बपरडेकर की ज़मानत याचिका की सुनवाई की। आरोपी पर आईपीसी की धारा 354, 354A और POCSO अधिनियम की धारा 8, 9 (n) और 10 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    शिकायत में कहा गया है कि अपने पहले पति के मर जाने के बाद पत्नी ने आवेदक के साथ जून 2013 में शादी की और अपनी दो बेटियों के साथ उसके घर रहने लगी। इन दोनों की एक बेटी 11 जून 2019 को पैदा हुई। शिकायत में कहा गया है कि आवेदक के झगड़े से परेशान होकर शिकायतकर्ता पत्नी उसका घर छोड़कर अपनी मां के पास रहने आ गयी।

    बाद में उसकी पहली शादी से पैदा हुई छोटी बेटी ने आवेदक, जो उसका सौतेला बाप था, के द्वारा यौन उत्पीड़न की बात बतायी। महिला ने भगवती महिला विकास मंडल में 2019 में इस बारे में शिकायत दर्ज करवाई। इसके अलावा उसने अंधेरी पुलिस थाने में भी आईपीसी की धारा 504, 506 के तहत दो शिकायतें दर्ज करवाई। फिर महिला ने अपने पति के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा के तहत भी मामला दायर कर दिया।

    आवेदक आरोपी की पैरवी में वक़ील अनिकेत निकम ने कहा कि एफआईआर कथित घटना के छह माह बाद दर्ज करवाई गई है। निकम ने अदालत का ध्यान शिकायतकर्ता पत्नी की बड़ी बेटी की एक चिट्ठी की ओर दिलाया जो उसने वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक को भेजी थी और जिसमें उसने अपनी मां पर उसे वेश्यावृत्ति की ओर धकेलने का आरोप लागाया था।

    अंत में कोर्ट ने कहा,

    "…आरोपी को ज़मानत पर छोड़ा जाता है। वैसे भी इस मामले में जांच पूरी हो चुकी है। अगर आईपीसी की धारा 354, 354A और POCSO अधिनियम की धारा 12 के तहत दोषी पाया जाता है तो उसे क्रमशः 5 और 3 साल तक की सज़ा हो सकती है। इस परिस्थिति में उसकी याचिका स्वीकार की जाती है।

    कोर्ट ने कहा,

    (i) आवेदक को ₹30,000 के बॉन्ड और इसी राशि की एक या अधिक ज़मानतदार पेश करने पर ज़मानत पर छोड़ने का आदेश दिया जाता है।

    (ii) वह जांच अधिकारी को अपनी रिहाई की तिथि के सात दिन के भीतर अपना स्थाई पता बताएगा और संपर्क का विवरण देगा।

    (iii) आवेदक साक्ष्य से छेड़छाड़ नहीं करेगा न ही शिकायतकर्ता गवाही या इस मामले से जुड़े किसी व्यक्ति से सम्पर्क करेगा और न ही उसे प्रभावित करने की कोशिश करेगा।"

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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