बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला की 15 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बावजूद उसके पति को ढूंढ़ने में नाकाम रहने पर राज्य को फटकार लगाई, 50 हजार रूपये का मुआवजे देने का आदेश दिया

LiveLaw News Network

7 Nov 2021 10:06 AM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में पिछले 15 वर्षों से गुम अपने पति को खोजने की मांग करने वाली एक महिला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas corpus) याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य मशीनरी के उसके पति का पता लगाने में विफल रहने पर सरकार को फटकार लगाई और उक्त महिला को 50,000/- रूपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

    न्यायमूर्ति वी. के. जाधव और न्यायमूर्ति श्रीकांत डी. कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि यह बहुत दुखद है कि पिछले 15 वर्षों से मुकदमेबाजी करने के बावजूद महिला को अपने प्रयासों का फल नहीं मिला।

    कोर्ट ने कड़े शब्दों में राज्य सरकार की खिंचाई भी की और जिस तरह से राज्य मशीनरी ने मामले की जांच कर रही है उस पर नाराजगी भी व्यक्त की।

    कोर्ट ने कहा,

    "स्टेट सिस्टम याचिकाकर्ता के पति के जीवन को सुरक्षित करने में विफल रहा है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन का एक स्पष्ट मामला है। जिस तरह से राज्य मशीनरी ने मामले की जांच कर रही है ,उस पर हम अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं।"

    संक्षेप में मामला:

    कमलबाई नाम की एक महिला ने 2005 में अपने पति को तलाश करने की मांग करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। उसने हाईकोर्ट में दावा किया कि उसके पति गंगाधर पाटिल एक व्यवसाय चला रहे थे। वह कृषक के रूप में अपने पेशे के अलावा कपास का व्यवसाय भी चलाते थे।

    उसने आगे प्रस्तुत किया कि एक विट्ठल गायकवाड़/डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर मगसवर्गीय सहकारी सूत गिरनी, पालम, जिला के अध्यक्ष परभणी (प्रतिवादी नंबर आठ) पर उसके पति की कुछ राशि बकाया थी।

    कथित तौर पर, प्रतिवादी नंबर आठ ने अध्यक्ष और एमएलए होने के चलते उसके बेटे राजेश गायकवाड़ और करीबी रिश्तेदारों ने याचिकाकर्ता के पति को बकाया बिल की मांग करने पर जान से मारने की धमकी दी।

    गौरतलब है कि 2005 में उनके पास बकाया बिल के संबंध में एक फोन आया। पति फोन करने वाले से मिलने गया और वापस नहीं आया।

    याचिकाकर्ता ने यह आशंका व्यक्त करते हुए पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई कि प्रतिवादी नंबर आठ और नौ ने शायद उसके पति को अगवा कर लिया है। हालांकि, चूंकि पुलिस उसके पति का पता लगाने में विफल रही इसलिए उसने हाईकोर्ट का रुख किया।

    उसके वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार कोई कारण बताने में विफल रही है कि समय पर प्रतिवादी नंबर आठ और उसके अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई।

    यह भी तर्क दिया गया कि राज्य सरकार और पुलिस अधिकारियों ने यह स्पष्ट नहीं किया कि आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई।

    कोर्ट को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता यह मुकदमा वर्ष 2005 से लड़ रही है, लेकिन जांच में कोई प्रगति नहीं हुई।

    दूसरी ओर, राज्य सरकार ने तर्क दिया कि पुलिस अधिकारियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है जबकि उन्होंने याचिकाकर्ता के पति का पता लगाने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं और यह अनुकरणीय मुआवजे देने का मामला नहीं है।

    कोर्ट की टिप्पणियां:

    यह रेखांकित करते हुए कि राज्य मशीनरी एक दशक के बाद भी याचिकाकर्ता के पति को खोजने में विफल रही है और यह राज्य मशीनरी की ओर से एक दुखद स्थिति है, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता-महिला ने अनुकरणीय मुआवजे का मामला बनाया है।

    इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि याचिकाकर्ता के पति की उपस्थिति को सुरक्षित करने की कोई संभावना नहीं है, कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को बनाए रखने से अब कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा और उसे अनुकरणीय मुआवजे के रूप में 50 हजार रूपये देने का आदेश दिया।

    केस शीर्षक - कमलबाई डब्ल्यू/ओ गंगाधर (पाटिल) बिरदार बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य

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