"यह ब्लैकमेलिंग टाइप का मुकदमा है": दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित अनधिकृत निर्माण के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज की, 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

24 Sep 2021 7:14 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 50,000 रुपये जुर्माने के साथ एक जनहित याचिका को खार‌िज़ कर दिया है। याचिका में बिना किसी जानकारी के संपत्तियों पर कथित अनधिकृत निर्माण का आरोप लगाया गया ‌था। कोर्ट ने इसे ' ब्लैकमेलिंग टाइप का मुकदमा' करार दिया।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसे कथित अवैध निर्माण के बारे में आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों से पता चला है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस अमित बंसल की खंडपीठ ने असहमत होते हुए कहा कि याचिका "बिना किसी होमवर्क के" दायर की गई थी और केवल "राह चलते कुछ व्यक्तियों" के कहने पर दायर की गई है।

    पीठ ने कहा, "यह ऐसा तरीका नहीं है, जिसमें याचिकाकर्ता जनहित याचिका दायर कर सके।"

    "यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जब भी किसी अधिरचना को ध्वस्त किए जाने का मामला हो, भले ही वह प्रकृति में अवैध हो, याचिकाकर्ता को एक पक्ष प्रतिवादी के रूप में अधिरचना के मालिकों/कब्जाधारियों में शामिल होना चाहिए। कोई भी निर्माण अधिरचना के मालिक/ कब्जेदार की सुनवाई के बिना ध्वस्त नहीं किया जा सकता है।"

    फाइट फॉर राइट सोशल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा दायर याचिका में दिल्ली के शास्त्री नगर इलाके की कुछ संपत्तियों को चुनौती दी गई थी और आरोप लगाया गया था कि वे अनधिकृत और अवैध निर्माण हैं और उन्हें संबंधित प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा ध्वस्त नहीं किया जा रहा है।

    फिजिकल हियरिंग के दौरान, चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, " इस कोर्ट रूम का आकार क्या है? क्या आप इसे देख सकते हैं और हमें बता सकते हैं? "

    वकील ने आकलन करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की, जिसके बाद न्यायालय ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "आप उस कमरे का आकार नहीं बता सकते, जिसमें आप खड़े हैं लेकिन आप एक इमारत को देख कर बता सकते हैं कि यह अधिकृत है या नहीं? "

    तब याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत किया गया कि आसपास रहने वाले व्यक्तियों ने निर्माण की अवैधता के बारे में सूचित किया था।

    कोर्ट ने कहा, "जब हमने याचिकाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता से यह प्रश्न उठाया कि क्या याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत उक्त 13 भवनों के बारे में कभी कोई सूचना प्राप्त की है, तो उत्तर नकारात्मक रहा। इस प्रकार, इस याचिकाकर्ता ने यह प्रयास नहीं किया है कि संबंधित प्रतिवादी अधिकारियों या किसी सक्षम प्राधिकारी से निर्माण के नक्शे आदि के बारे में कोई भी जानकारी प्राप्त करें।"

    कोर्ट ने जोड़ा, "ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक जनहित याचिका नहीं है। यह एक ब्लैकमेलिंग टाइप का मुकदमा है।"

    जिसके बाद कोर्ट ने याचिका को 50,000 रुपये जुर्माने के साथ निस्तारित किया। याचिकाकर्ता को दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास चार सप्ताह के रुपए जमा करने का निर्देश दिया गया।

    पीठ ने कहा, "उपरोक्त राशि का उपयोग 'न्याय तक पहुंच' कार्यक्रम के लिए किया जाएगा।"

    केस टाइटल: फाइट फॉर राइट सोशल वेलफेयर सोसाइटी बनाम वाइस चेयरमैन दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी कम चेयरपर्सन स्पेशल टास्क फोर्स और अन्य

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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