बीरभूम नरसंहार| कलकत्ता हाईकोर्ट ने केस डायरी का निरीक्षण किए बिना दो नाबालिग आरोपियों की जमानत रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा
Shahadat
10 May 2022 3:02 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुई हिंसा से संबंधित मामले में आरोपी दो नाबालिगों की जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। इस मामले में स्थानीय अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता भादु शेख की हत्या के प्रतिशोध में कथित रूप से दस लोग मारे गए थे। फिलहाल इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) कर रही है।
अदालत ने इससे पहले स्थानीय टीएमसी नेता भादु शेख की हत्या की जांच सीबीआई को हस्तांतरित कर दी थी। इसके बाद बोगतुई गांव, रामपुरहाट, बीरभूम में आगजनी हुई, जिसमें दो बच्चों सहित दस लोग मारे गए थे।
चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ को सुनवाई की पिछली तारीख पर अवगत कराया गया था कि मामले के दो नाबालिग अभियुक्तों को अनुचित तरीके से जमानत दी गई है। इसलिए अदालत से अनुरोध किया गया कि वह इस पर सुनवाई करे।
मंगलवार को सीबीआई की ओर से पेश वकील ने अदालत को अवगत कराया कि सूरी में किशोर न्याय बोर्ड ने पिछली बार दो नाबालिगों को केस डायरी के बिना और सीबीआई को कोई नोटिस दिए बिना जमानत दे दी थी। अदालत को आगे बताया गया कि पीड़िता के मृत्युपूर्व बयान में जमानत पाने वाले आरोपियों में से एक का नाम बताया गया है।
तद्नुसार, संबंधित किशोर बोर्ड को नोटिस जारी करने के लिए प्रार्थना की गई थी कि वह जांच से संबंधित केस डायरी को बुलाए बिना जमानत देने वाले आक्षेपित आदेश कैसे पारित कर सकता है।
सीबीआई की ओर से पेश वकील ने आगे तर्क दिया कि आक्षेपित आदेशों में 'विकृतता स्पष्ट है' और तदनुसार न्यायालय से आग्रह किया कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके आक्षेपित आदेशों पर रोक लगा दे।
चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,
"हम मुद्दों की जांच करेंगे और आदेश पारित करेंगे।"
संबंधित घटनाक्रम में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में भड़की हिंसा के पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा और सरकारी नौकरी देने में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आचरण पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है। आरोप लगाया गया कि मुख्यमंत्री ने गवाहों को 'प्रभावित' करने का प्रयास किया था।
मामले की पृष्ठभूमि
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के पंचायत नेता भादू शेख की कथित हत्या के बाद बीरभूम के बोगटुई गांव में हिंसा हुई थी। 21 मार्च को बदमाशों द्वारा कथित तौर पर उन पर बम फेंकने के बाद उनकी मौत हो गई थी।
उनकी मौत के घंटों बाद हिंसा भड़क उठी और शेख की हत्या के आरोपी पुरुषों के दो लोगों सहित कई घरों पर कथित रूप से हमला किया गया। घरों को आग लगा दी गई, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित आठ लोगों की मौत हो गई।
पुलिस ने बोगतुई गांव में जले हुए घरों से मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों के आठ जले हुए शव बरामद किए। तीन घायलों को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस नरसंहार में 25 प्रतिशत झुलसी एक महिला ने रविवार को दम तोड़ दिया। फिलहाल मरने वालों की संख्या दस है।
हिंसा का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (CID), ज्ञानवंत सिंह की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था। हालांकि, बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार जांच सीबीआई को सौंप दी गई।
अपनी जांच के हिस्से के रूप में सीबीआई ने कथित तौर पर टीएमसी नेता अनारुल हुसैन सहित मामले में गिरफ्तार आठ लोगों पर पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति लेने के लिए स्थानीय अदालत का रुख किया है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक, पश्चिम बंगाल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसमें मामले में रजिस्टर्ड एफआईआर में गांव में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम और राज्य सरकार द्वारा प्रदान की गई कोई राहत या पुनर्वास की स्थिति भी शामिल है।
केस टाइटल: कोर्ट ऑन इट्स मोशन इन री: द क्रूर इंसीडेंट ऑफ बोगटुई गांव, रामपुरहाट, बीरभूम