SIR (Special Intensive Revision) क्या है? – अर्थ और पृष्ठभूमि

Praveen Mishra

25 Aug 2025 6:00 PM IST

  • SIR (Special Intensive Revision) क्या है? – अर्थ और पृष्ठभूमि

    SIR का मतलब और कानूनी आधार

    SIR यानी Special Intensive Revision (विशेष गहन पुनरीक्षण), यह एक विशेष प्रक्रिया है जिसे भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) चलाता है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची को अधिक सटीक और अद्यतन करना होता है।

    इस प्रक्रिया में:

    मृत, स्थान बदल चुके या फर्जी नाम हटाए जाते हैं।

    नए योग्य मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं।

    डुप्लीकेट प्रविष्टियों को ठीक किया जाता है।

    कानूनी आधार:

    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को चुनाव कराने और मतदाता सूची तैयार करने की संपूर्ण जिम्मेदारी देता है।

    Representation of the People Act, 1950 की धारा 21(3) में प्रावधान है कि आयोग विशेष परिस्थितियों में SIR जैसी प्रक्रिया कर सकता है।

    आयोग के अनुसार, SIR का मकसद पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है।

    बिहार में SIR क्यों शुरू हुआ?

    बिहार में लंबे समय से यह शिकायत रही कि मतदाता सूची में:

    बड़ी संख्या में मृतक मतदाताओं के नाम बने हुए हैं।

    राज्य के अंदर और बाहर बड़े पैमाने पर आंतरिक और बाहरी प्रवास (Migration) के कारण लोग अपनी जगह बदल चुके हैं।

    कई डुप्लीकेट और फर्जी प्रविष्टियां दर्ज हैं।

    आयोग का कहना है कि अगर इस समस्या को ठीक नहीं किया गया, तो चुनाव में फर्जी वोट और गड़बड़ी की आशंका बढ़ सकती है। इसी कारण बिहार में **2025 की शुरुआत में SIR प्रक्रिया शुरू की गई।

    SIR पर विवाद और राजनीतिक तूफान

    65 लाख नाम हटाए गए:

    ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी होने पर यह सामने आया कि करीब 65 लाख नाम सूची से हटाए गए हैं। इस पर बिहार में भारी राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।

    विपक्ष के आरोप:

    राजद (RJD), कांग्रेस और वाम दलों का आरोप है कि SIR का इस्तेमाल करके दलित, अल्पसंख्यक और गरीब तबके के वोटरों के नाम जानबूझकर हटाए गए।

    विपक्ष का कहना है कि यह "जनता की आवाज दबाने" और "चुनाव से पहले मतदाताओं को टारगेट" करने की साजिश है।

    विपक्ष का यह भी आरोप है कि जिन क्षेत्रों में विपक्ष का पारंपरिक वोट बैंक है, वहां नाम ज्यादा हटाए गए।

    राजनीतिक आंदोलन:

    राहुल गांधी ने "वोटर अधिकार यात्रा" शुरू की, जिसमें 1300 किमी का पैदल मार्च शामिल है। इसका मकसद SIR विवाद को जनता तक ले जाना है।

    बिहार के बाहर भी विपक्षी दलों के नेताओं ने चिंता जताई कि अगर यह मॉडल बिहार में लागू हुआ, तो अन्य राज्यों में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है।

    सत्तारूढ़ दल का पक्ष:

    बिहार सरकार और चुनाव आयोग का कहना है कि SIR पूरी तरह कानूनी और पारदर्शी है।

    आयोग के मुताबिक, सभी नाम हटाने की प्रक्रिया में नियमों का पालन हुआ और लोगों को आपत्ति दर्ज कराने का पूरा मौका दिया गया।

    सत्तारूढ़ दल का कहना है कि विपक्ष बिना सबूत के आरोप लगा रहा है।


    कानूनी मोर्चा: सुप्रीम कोर्ट में SIR

    पहली याचिका (जुलाई 2025):

    विपक्षी दलों और कुछ संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि SIR प्रक्रिया रोकी जाए।

    10 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने SIR रोकने से इनकार किया**, लेकिन चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि:

    पहचान के लिए सिर्फ एक या दो दस्तावेज पर निर्भर न रहें।

    लोगों को नाम जोड़ने में आसानी के लिए ज्यादा पहचान पत्र स्वीकार किए जाएं।

    अहम आदेश (14 अगस्त 2025):

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा:

    1. आधार कार्ड, EPIC (मतदाता पहचान पत्र) और राशन कार्ड को वैध पहचान पत्र माना जाए।

    2. हटाए गए 65 लाख नामों की पूरी लिस्ट और कारण चुनाव आयोग की वेबसाइट व नोटिस बोर्ड पर सार्वजनिक किए जाएं।

    3. जिनका नाम हटा है, उन्हें पुनः आवेदन कर नाम जोड़ने का पूरा मौका** दिया जाए।

    4. आधार कार्ड के जरिए भी नाम जोड़ने की सुविधा हो।

    आयोग की कार्रवाई:

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने हटाए गए नामों की लिस्ट वेबसाइट पर डाल दी।

    ऑनलाइन आवेदन और फिजिकल फॉर्म दोनों के जरिए नाम जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई।

    नाम हटाने के लिए दिए गए कारण भी सार्वजनिक किए गए।


    राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया:

    कांग्रेस और विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि इससे "लोकतंत्र की रक्षा हुई है।"

    विपक्ष का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर नाम हटाना पहले ही गलत था, और आयोग को यह प्रक्रिया चुनाव के इतने करीब नहीं करनी चाहिए थी।

    वहीं, सत्तारूढ़ दल और आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया जनहित में और कानूनी है।



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