भीमा-कोरेगांव आयोग ने सीएम देवेंद्र फडणवीस को गवाह के तौर पर बुलाने से किया इनकार
Shahadat
20 Dec 2024 10:15 AM IST
2018 में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच कर रहे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त दो सदस्यीय आयोग ने बुधवार को एडवोकेट प्रकाश अंबेडकर के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को गवाह के तौर पर बुलाने की मांग की थी।
दलित नेता अंबेडकर अपनी पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) का प्रतिनिधित्व करते हुए मामले में अपनी अंतिम दलीलें दे रहे थे।
जस्टिस (रिटायर) जय नारायण पटेल और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव सुमित मलिक वाला आयोग पुणे के भीमा-कोरेगांव इलाके में डॉ. बीआर अंबेडकर के अनुयायियों और दक्षिणपंथी समूहों के बीच हुई हिंसा की जांच कर रहा है, जबकि पूर्व में पेशवाओं पर समुदाय की जीत की 200वीं वर्षगांठ मनाई जा रही।
लाइव लॉ से बात करते हुए अंबेडकर ने पुष्टि की कि उन्होंने आयोग से फडणवीस को बुलाने का अनुरोध किया, जिससे वे इस मुद्दे पर गवाही दे सकें कि क्या और क्यों पुणे ग्रामीण पुलिस की ओर से तत्कालीन सीएम (फडणवीस) को हिंसा के बारे में सूचित करने में देरी हुई, जो गृह मंत्री का प्रभार भी संभाल रहे थे।
अंबेडकर ने कहा,
"मैंने जून 2023 में फडणवीस, मलिक और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (पुणे ग्रामीण) सुवेज हक को गवाह के रूप में बुलाने के लिए आधिकारिक आवेदन किया। बुधवार को मैं अपने अंतिम प्रस्तुतीकरण के लिए आयोग के समक्ष उपस्थित हुआ। ऐसा करते समय मैंने आयोग को अपने आवेदन की याद दिलाई और उनसे फडणवीस सहित तीनों को पूछताछ के लिए गवाह के रूप में बुलाने का अनुरोध किया।"
हालांकि, आयोग के सूत्रों ने बताया कि आयोग के सदस्यों ने राय दी कि फडणवीस और अन्य को इस स्तर पर गवाह के रूप में बुलाना उचित नहीं होगा, खासकर राज्य विधानसभा में फडणवीस द्वारा दिए गए बयान के मद्देनजर। गौरतलब है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सदन में 1 जनवरी, 2018 को जातिगत हिंसा के स्थान पर भगवा झंडे थामे और नारे लगाते हुए करीब 200-300 लोगों की मौजूदगी के बारे में बात की थी।
एक सूत्र ने बताया,
इसके अलावा, आयोग विशेष लोक अभियोजक शिशिर हिरय से इस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है।
यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि भीमा-कोरेगांव आयोग का गठन 2018 में ही किया गया, जिसका काम हिंसा के बारे में तथ्य जुटाना और भविष्य में ऐसी हिंसा से बचने के लिए सिफारिशें देना था। पिछले सात वर्षों से आयोग को कई बार विस्तार मिला है, जिसमें इस साल अगस्त में सबसे नया विस्तार मिला है।
आयोग वर्तमान में मामले में अंतिम दलीलें सुन रहा है और 2025 में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने की संभावना है।