बेंगलुरु कोर्ट ने जालसाजी मामले में रजनीकांत की पत्नी को बरी करने से किया इनकार, कहा- प्रथम दृष्टया मामला बनता है
Shahadat
15 Oct 2025 10:30 PM IST

बेंगलुरु कोर्ट ने हाल ही में सुपरस्टार रजनीकांत की पत्नी लता रजनीकांत द्वारा दायर बरी करने की अर्जी खारिज की। लता चेन्नई स्थित विज्ञापन कंपनी द्वारा फिल्म कोचादइयां से संबंधित कथित जालसाजी से जुड़े एक आपराधिक मामले में आरोपी हैं।
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ज्योति शांतप्पा काले ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 239 के तहत दायर बरी करने की अर्जी खारिज करते हुए कहा,
"अभियोजन पक्ष के दस्तावेज़ और बयान से पता चलता है कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इस प्रकार, आरोपी नंबर 1 ने कथित अपराधों से खुद को बरी करने का कोई उचित आधार नहीं बनाया।"
मामले की पृष्ठभूमि
शिकायतकर्ता मेसर्स एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड ने मेसर्स मीडियावन ग्लोबल एंटरटेनमेंट लिमिटेड, जिसका प्रतिनिधित्व इसके निदेशक जे. मुरली मनोहर कर रहे थे, उनके साथ एक वित्तीय लेनदेन किया था, जिसके कारण कोचादियां नामक तमिल सिनेमा को लेकर विवाद हुआ।
यह कहा गया कि समाचार एजेंसियां मीडियावन ग्लोबल एंटरटेनमेंट लिमिटेड के बीच उपरोक्त विवाद पर व्यापक रूप से रिपोर्टिंग कर रही थीं, क्योंकि याचिकाकर्ता, जो फिल्म के नायक, एक्टर रजनीकांत की पत्नी हैं, उन्होंने शिकायतकर्ता के पक्ष में मीडियावन ग्लोबल एंटरटेनमेंट लिमिटेड की ओर से एक गारंटी दी थी और फिल्म के घाटे में जाने के कारण वह इसे पूरा करने में विफल रहीं।
इसके बाद उन्होंने सभी समाचार एजेंसियों के खिलाफ बैंगलोर के सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने और अपने परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर समाचार प्रकाशित करने पर रोक लगाने की मांग की। दिसंबर 2014 में निषेधाज्ञा दी गई।
हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि ऐसा करते समय याचिकाकर्ता ने "पब्लिशर्स एंड ब्रॉडकास्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन ऑफ इंडिया" नामक काल्पनिक संस्था बनाई और उसके नाम से पत्र जारी किया ताकि प्रतिवादी पर दबाव बनाया जा सके और एक अस्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त की जा सके।
इसके कारण IPC की धारा 195 (झूठे साक्ष्य), 199 (झूठा बयान), और 420 (धोखाधड़ी) के तहत कार्यवाही शुरू हुई।
फरवरी, 2015 में क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के अभाव में वाद वापस कर दिया गया, जिसके बाद वर्तमान निजी शिकायत दर्ज की गई। इसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा एक निजी शिकायत दर्ज की गई, जिसे जांच के लिए हलासुरु पुलिस स्टेशन भेजा गया और जहां FIR दर्ज की गई।
इसके बाद आरोपी ने शिकायत रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में, अंततः इसे सुनवाई योग्य मामला माना गया।
आरोपी ने आरोपमुक्ति की मांग करते हुए तर्क दिया कि वह निर्दोष है और उसने कोई अपराध नहीं किया। यह कहा गया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप कथित अपराधों को बनाने के लिए आवश्यक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं। आरोपी ने जालसाजी के आरोप लगाने के लिए जिस दस्तावेज़ का सहारा लिया गया, उसके वैध अस्तित्व पर सवाल उठाया। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि केवल यह तथ्य कि आरोपी नंबर 1 प्रश्नगत पत्र का लाभार्थी है, आपराधिक दायित्व लगाने का आधार नहीं हो सकता।
इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया कि पक्षों के बीच विवाद पूरी तरह से सिविल प्रकृति का है और आरोप पत्र में दिए गए निष्कर्षों को समग्रता में नहीं लिया जा सकता है, जिसमें आपराधिक दायित्व का अभाव है।
Case Title: State by Halsur Gate Police Station AND Latha Rajanikanth

