सीआरपीसी की धारा 427 के तहत लाभ का दावा केवल उसी कोर्ट के समक्ष किया जा सकता है, जो बाद वाले अपराध की सुनवाई कर रहा हो : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 July 2020 5:00 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 427 के तहत लाभ का दावा केवल उसी कोर्ट के समक्ष किया जा सकता है, जो बाद वाले अपराध की सुनवाई कर रहा हो : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    “पहले मामले में दोषसिद्धि से निपटने वाले कोर्ट के समक्ष इस तरह की राहत की मांग रखना पूरी तरह अनुचित है।”

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 427 के तहत लाभ का दावा केवल बाद के अपराधों की सुनवाई करने वाले कोर्ट के समक्ष ही किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता की मुख्य दलील थी कि उसे उसी कोर्ट ने बाद में मादक द्रव्य एवं नशीले पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दूसरे अपराध के लिए दोषी ठहराया था, और इसलिए वह इस लाभ का हकदार है कि उसकी सजा साथ-साथ चले। मौजूदा अपील में अपीलकर्ता ने 2013 में ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के आदेश को चुनौती दी है।

    न्यायमूर्ति के. हरिपाल ने सीआरपीसी की धारा 427 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस प्रावधान का लाभ लेने के लिए निम्नांकित शर्तों का पालन होना चाहिए :-

    1. यदि पहले से ही जेल की सजा काट रहा व्यक्ति दोषी ठहराया जाता है,

    2. पहले से ही ऐसी सजा भुगतने वाला व्यक्ति बाद में भी दोषी ठहराया जाता है और उसे आजीवन कारावास सहित जेल की सजा सुनायी जाती है।

    3. सश्रम आजीवन कारावास की सजा उस सजा की समाप्ति पर शुरू होगी, जो पहले मामले में सुनायी गयी हो तथा,

    4. यदि अदालत निर्देश देती है कि बाद की सजा पहली सजा के साथ-साथ चलेगी।

    कोर्ट ने अपीलकर्ता की वह दलील खारिज कर दी कि पहले किसी समय सुनायी गयी सजा उसे बहुत बाद में सुनायी गयी सजा के साथ-साथ चल सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 427 के प्रावधानों का लाभ असंबद्ध मामलों के लिए नही दिया जा सकता। ऐसे मामलों में सजा एक के बाद दूसरी चलेगी।

    बेंच ने अपील खारिज करते हुए कहा :

    "यह कानून के वास्तविक उद्देश्य के विरुद्ध है। यह दूसरी तरह से होना चाहिए था। जब बाद वाले मामले में फैसला सुनाया गया था, तभी अपीलकर्ता को पहले मामले में दोषसिद्धि के बारे में कोर्ट को बताया जाना चाहिए था और सजा को एक साथ चलाये जाने का अनुरोध किया जाना चाहिए था, क्योंकि यदि यह अनुरोध मंजूर कर लिया जाता तो अपीलकर्ता की सजा के चार साल बच जाते। यह अधिकार बाद के अपराधों की सुनवाई करने वाली अदालत या अपीलीय अदालत के पास ही होता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "सजा को साथ-साथ चलाये जाने के अनुरोध को मंजूरी प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर निर्भर करती है और सीआरपीसी की धारा 427 के लाभ का दावा बाद के अपराधों की सुनवाई करने वाले कोर्ट के समक्ष ही किया जा सकता है। साथ-साथ सजा चलाने का निर्देश केवल बाद के अपराधों के लिए सजा सुनाने वाली अदालत द्वारा उचित मामलों में दिया जा सकता है। बाद के मामलों में दोषसिद्धि की सुनवाई कर रही अपीलीय अदालत भी इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है। हाईकोर्ट भी सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अंतर्निहित अधिकारों का इस्तेमाल करके उचित मामलों में इस तरह का लाभ दे सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, पहली दोषसिद्धि से संबंधित अदालत के समक्ष इस तरह की राहत की मांग करना पूर्णतया अनुचित है।"

    केस का नाम : मुस्तफा बनाम पुलिस सब-इंस्पेक्टर

    केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 992/2013

    कोरम : न्यायमूर्ति के हरिपाल

    वकील : एडवोकट सन्नी मैथ्यू एवं पीपी डी. चंद्रसेनन

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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