सूरत की सेशन कोर्ट ने मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार किया, कहा- उन्हें शब्दों के चयन में अधिक सावधान रहना चाहिए था
Avanish Pathak
20 April 2023 5:12 PM IST
सूरत की सेशन कोर्ट ने 'मोदी उपनाम' मानहानि मामले में दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से दायर अर्जी को खारिज कर दिया। कोर्ट ने फैसले में कहा, राहुल गांधी को शब्दों के चयन में अधिक सावधान रहना चाहिए था, जिसका लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सेशन जज रॉबिन मोगेरा ने कहा कि गांधी के मुंह से निकला कोई भी निंदात्मक शब्द व्यथित व्यक्ति को मानसिक पीड़ा देने के लिए पर्याप्त है। मौजूदा मामले में ऐसे व्यक्तियों, जिनके 'मोदी' उपनाम हैं, की तुलना चोरों से करने से निश्चित रूप से शिकायतकर्ता यानि भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी को मानसिक पीड़ा होगी और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान होगा।
इसके साथ, न्यायालय ने कहा कि गांधी यह प्रदर्शित करने में विफल रहे कि दोषसिद्धि पर रोक न लगाने से और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8(3) के तहत अयोग्यता के आधार पर उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने पर उन्हें अपरिवर्तनीय अपूरणीय क्षति होने की संभावना है।
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि संसद सदस्य के रूप में निष्कासन या अयोग्यता को गांधी को अपरिवर्तनीय या अपूरणीय क्षति नहीं कहा जा सकता है।
"माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई घोषणाओं में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 389 (1) के तहत दोषसिद्धि को निलंबित/रोकने के लिए दी गई शक्तियों को सावधानी और एहतियात के साथ प्रयोग करने की आवश्यकता है
और यदि ऐसी शक्ति का प्रयोग आकस्मिक और यंत्रवत तरीके से किया जाता है तो न्याय वितरण प्रणाली पर जनता की धारणा पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा और इस तरह के आदेश से न्यायपालिका में जनता का विश्वास हिल जाएगा। इसलिए, मेरा विचार है कि अपीलकर्ता के खिलाफ दर्ज दोषसिद्धि को निलंबित करने के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया है।"
उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दिया।
गौरतलब है कि 23 मार्च को सूरत की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाई थी, जिसके बाद उन्हें लोकसभा के सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था। आदेश के खिलाफ उन्होंने 3 अप्रैल को सत्र न्यायालय में अपील दायर की, जिसने उन्हें अपील के निस्तारण तक जमानत दे दी। हालांकि, दोषसिद्धि पर रोक लगाने के उनके आवेदन को सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया।
अपने 27 पन्नों के आदेश में, सत्र न्यायालय ने शिकायत की विचारणीयता के खिलाफ गांधी की ओर से पेश वकील के तर्कों को भी खारिज कर दिया।
वकील की ओर से दी गई क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी के कारण परीक्षण के खराब होने के संबंध में की गई आपत्ति को भी खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने यह नोट किया कि परीक्षण के दरमियान उक्त विवाद नहीं उठाया गया था और इसलिए, इस तरह की आपत्ति मौजूदा चरण में स्वीकार नहीं की जा सकती है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट ने गांधी को गवाहों से जिरह करने के सभी अवसर दिए थे और इसलिए, यह तर्क गलत था कि ट्रायल कोर्ट उनके साथ अनफेयर था।
गांधी की ओर से अधिकतम सजा दिए जाने के तर्क पर सत्र अदालत ने कहा कि गांधी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे, सांसद थे, जो सार्वजनिक जीवन से जुड़े थे और उनके द्वारा बोले गए किसी भी शब्द का लोगों के दिमाग पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता था।