एक वकील के खिलाफ शिकायत को अनुशासनात्मक समिति को संदर्भित करते हुए बार काउंसिल उसकी प्रैक्टिस का लाइसेंस निलंबित नहीं कर सकतीः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट | Bar Council Cannot Suspend Licence To Practice While Referring Complaint Against Lawyer To Disciplinary Committee: Punjab & Haryana HC

एक वकील के खिलाफ शिकायत को अनुशासनात्मक समिति को संदर्भित करते हुए बार काउंसिल उसकी प्रैक्टिस का लाइसेंस निलंबित नहीं कर सकतीः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 Nov 2020 12:26 PM

  • एक वकील के खिलाफ शिकायत को अनुशासनात्मक समिति को संदर्भित करते हुए बार काउंसिल उसकी प्रैक्टिस का लाइसेंस निलंबित नहीं कर सकतीः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा बार काउंसिल द्वारा पारित एक प्रस्ताव को रद्द कर दिया है, जिसमें न्यायपालिका और वकीलों के बारे में कथित रूप से फेसबुक पर अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोपी वकील की प्रैक्टिस का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया था।

    न्यायालय ने कहा कि एडवोकेट्स एक्ट और बीसीआई रूल्स के प्रावधान स्टेट बार काउंसिल को यह शक्ति प्रदान नहीं करते हैं, कि वह अपनी अनुशासनात्मक समिति को एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत का हवाला देते हुए उसका प्रैक्टिस करने का लाइसेंस निलंबित कर सकती है।

    इस मामले में, स्टेट बार काउंसिल ने फेसबुक पर एडवोकेट विजय भारत वर्मा द्वारा कथित तौर पर की गई कुछ टिप्पणियों का संज्ञान लिया था। उन्हें व्हाट्सएप और स्पीड पोस्ट के माध्यम से कारण बताओ नोटिस दिया गया था। चूंकि वकील की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी, इसलिए बार काउंसिल ने एक अनुशासनात्मक समिति को शिकायत का हवाला देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया और इस बीच, एक वकील के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए उनका लाइसेंस निलंबित कर दिया गया। इस प्रस्ताव के खिलाफ, वकील ने रिट याचिका के जर‌िए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

    रिट याचिका में यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या बार काउंसिल, ‌शिकायतकर्ता द्वारा दायर शिकायत पर या स्वतः संज्ञान से, अनुशासनात्मक समिति को शिकायत संदर्भित करते हुए एक अधिवक्ता के प्रैक्टिस के लाइसेंस को निलंबित करने का आदेश पारित कर सकती है?"

    जस्टिस अलका सरीन ने कहा कि एक अधिवक्ता की प्रैक्टिस का लाइसेंस निलंबित करने का आदेश न केवल वर्तमान पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्‍कि एक ऐसा दाग भी लगाता है, जो बहुत दूर तक फैला होता है और जो उसके पेशेवर करियर की मौत की घंटी बजा सकता है, जिसे एक नागरिक मौत के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

    बीसीआई रूल्‍स और एडवोकेट्स एक्ट का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा, "1961 अधिनियम या बीसीआई रूल्‍स में कोई प्रावधान नहीं है जो स्टेट बार काउंसिल (प्रतिवादी) को सजा का आदेश पारित करने का अधिकार देता है, यहां तक ​​कि एक अधिवक्ता के खिलाफ, अंतरिम आदेश भी। 1961 अध‌िनियम की धारा 35 (3) फटकारने, प्रैक्टिस से निलंबित करने या स्टेट रोल से एक एडवोकेट का नाम हटाने की शक्ति केवल अनुशासनात्मक समिति को देती है। यहां तक ​​कि बीसीआई नियम भी स्टेट बार काउंसिल (प्रतिवादी) को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करते हैं।"

    अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा के साथ‌याबल बनाम बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी और अन्य, [2016(3) MLJ 714] में पारित व‌िचार से असहमति जताई, जिसमें यह माना गया कि चूंकि अनुशासनात्मक समिति स्टेट बार काउंसिल की कठपुतली है, इसलिए ऐसी अनुशासनात्मक समिति जो कर सकती है, वह स्टेट बार काउंसिल द्वारा हमेशा किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा, "यह एक अच्छी तरह से स्वीकार किया गया सिद्धांत है कि एक कानून द्वारा बनाए गए निकाय को विनियमित करने वाले कानून के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए। वर्तमान मामले में, 1961 अधिनियम की धारा 35 के तहत एक वकील के खिलाफ किसी भी दुराचार के लिए दंडात्मक कार्रवाई करने की शक्ति केवल स्टेट बार काउंसिल (प्रतिवादी) की अनुशासनात्मक समिति के पास होगी। बीसीआई नियमों में इस तरह की कार्रवाई करने की प्रक्रिया विस्तृत रूप से दी गई है। यह एक घिसा-प‌िटा कानून है कि किसी कानून द्वारा बनाए गए निकाय के पास कानून में केवल स्पष्ट रूप से या निहित रूप से दी गई शक्तियां हैं। 1961 के अधिनियम के तहत स्टेट बार काउंसिल के पास एक अधिवक्ता के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने के लिए कोई विशिष्ट या निहित शक्ति नहीं है....."

    अदालत ने इस मुद्दे का जवाब नहीं दिया कि क्या एक वकील द्वारा सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने को कदाचार कहा जा सकता है। अदालत ने कहा कि अगर यह सलाह दी जाती है तो वकील के खिलाफ नए सिरे से कार्यवाही शुरू करने के लिए का विकल्प स्टेट बार काउंसिल के लिए हमेशा खुला है।

    केस: विजय भारत वर्मा बनाम बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा [CWP-13235-2020]

    कोरम: जस्टिस अलका सरीन

    प्र‌तिनिधित्व: सीनियर एडवोकेट सुहैल दत्त, एडवोकेट सीएम मुंजाल

    जजमेंट को पढ़ने / डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story