जमानत| भाग तीनः नियमित जमानत| सवाल और जस्टिस वी रामकुमार के जवाब
Avanish Pathak
30 Dec 2022 1:54 PM IST
प्रश्नः गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में क्या अदालत पर जमानत देने के मामले में आदेश के समर्थन में कारण देने का कोई दायित्व है, ?
उत्तरः हां, भले ही मामले के गुणों पर विस्तृत चर्चा की जरूरत नहीं है, मगर अदालत को आदेश के समर्थन में प्रथम दृष्टया कारण देना होगा। ( पैरा 5, अजय कुमार शर्मा बनाम यूपी राज्य, (2005) 7 एससीसी 507 = 2005 केएचसी 1414 एससी - 3 - जज-वाई के सभरवाल, बीएन श्रीकृष्ण, सीके ठक्कर - जेजे
पैरा 8, लोकेश सिंह बनाम यूपी राज्य (2008) 16 एससीसी 753 = एआईआर 2009 एससी 94 - डॉ. अरिजीत पसायत, सीके ठक्कर - जे जे;
पैरा 13 , विनोद सिंह नेगी बनाम यूपी राज्य, (2019) 8 एससीसी 13 = एआईआर 2019 एससी 3911 - एएम सप्रे, आर सुभाष रेड्डी - जेजे)।
हाईकोर्ट या सेशन कोर्ट को भलीभांती स्थापित सिद्धांतों के बाद न्यायिक विवेक के प्रयोग के बाद जमानत देना चाहिए, न कि गुप्त या यांत्रिक तरीके से।
प्रश्नः क्या अंतरिम जमानत देने के दरमियान अदालत को याचिकाकर्ता एक निश्चित राशि जमा करने और शिकायतकर्ता के साथ विवाद का निस्तारण करने के लिए निर्देश देने की अनुमति नहीं है?
उत्तरः नहीं, अदालत केवल योग्यता पर जमानत आवेदन का निस्तारण कर सकती है। पैरा 2 और 3, जी सेल्वाकुमार बनाम तमिलनाडु राज्य (आपराधिक अपील संख्या: 4202 - 4203/2020 (एससी) - एल. नागेश्वर राव, अजय रस्तोगी - जेजे.
प्रश्नः सत्र अदालत द्वारा विशेष रूप से ट्रायल के मामलों में मजिस्ट्रेट को जमानत पर आरोपी को रिहा करते हुए उसे सत्र अदालत के सामने पेश होने की बाध्यता तय करनी चाहिए और जब आवश्यक हो तो उसे पेश होना बाध्यकारी होना चाहिए?
उत्तरः हां, धारा 209 (बी) और 441 (3) सीआरपीसी देखें। नि: शुल्क कानूनी सहायता समिति बनाम बिहार राज्य (AIR 1982 SC 1463) भी देखें।
प्रश्न 14: धारा 56 सीआरपीसी के अनुसार गिरफ्तारी के बाद आरोपी को पुलिस अधिकारी मामले में अधिकार क्षेत्र रखने वाले मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा। हालांकि, धारा 167 (1) सीआरपीसी का जनादेश है कि कि गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट को भेज दिया जाएगा कि चाहे उसके पास अधिकार क्षेत्र है या नहीं। इस स्पष्ट संघर्ष के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित करें?
उत्तरः धारा 56 गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी पर लागू होती है। गिरफ्तारी के बाद, उसके पास दो विकल्प होते हैं या तो वह गिरफ्तार व्यक्ति को क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट या थाने के प्रभारी अधिकारी (SHO) के पास ले जाए या भेजे। आमतौर पर गिरफ्तार व्यक्ति को ही एसएचओ के पास भेजा जाता है। धारा 167 (1) Cr.P.C. एसएचओ पर लागू होता है जो गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी (जिसे गिरफ्तार और हिरासत में लिया गया है) को निकटतम मजिस्ट्रेट के पास भेजने के लिए बाध्य है, चाहे ऐसे मजिस्ट्रेट के पास मामले का ट्रायल करने का अधिकार क्षेत्र हो या न हो। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 (2) के जनादेश के अनुरूप है।
प्रश्नः जमानत पर अभियुक्त को रिहा करने के लिए, क्या यह आवश्यक है कि मजिस्ट्रेट के पास मामले को ट्रायल करने या मामले को सुपुर्द करने के लिए अधिकार क्षेत्र होना चाहिए?
उत्तर. हां। जो न्यायालय जमानत देने के लिए सक्षम है, केवल वही न्यायालय है जो मामले को ट्रायल करने या सुपुर्द करने के लिए सक्षम है। निकटतम मजिस्ट्रेट जिसके पास आरोपी को धारा 167(1) सीआरपीसी के तहत भेजा गया है। केवल अभियुक्त को हिरासत में लेने का आदेश दे सकता है और जमानत नहीं दे सकता जब तक कि उसके पास मामले की कोशिश करने या मामले को अंजाम देने का अधिकार नहीं है।
सीआरपीसी की धारा 167 (2) में प्रावधान है कि ऐसे निकटतम मजिस्ट्रेट यदि मामले का ट्रायल करने या सुपुर्द करने के लिए सक्षम नहीं हैं, तो समय-समय पर आरोपी को एक समय में 15 दिनों तक हिरासत में रखने का आदेश दे सकते हैं और उसके बाद यदि उसके पास मामले की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र नहीं है और वह अतिरिक्त निरोध को अनावश्यक समझता है तो अभियुक्त को उस मजिस्ट्रेट के पास अग्रेषित करें, जिसके अधिकार क्षेत्र हो। (धारा 167 (2) सीआरपीसी; खालिक वार बनाम स्टेट (1974 Crl. L.J. 526 (J&K) – एस. वसीउद्दीन – जे और सिंगेश्वर सिंह बनाम बिहार राज्य 1976 Crl.L.J. 1511 – एस सरवर अली, एनपी सिंह - जेजे।