हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा ,जमानत स्वीकार न करना सजा के तरीके के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

LiveLaw News Network

8 Jun 2020 11:21 AM GMT

  • हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा ,जमानत स्वीकार न करना सजा के तरीके के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

    हिमाचल प्रदेश उच्‍च न्यायालय ने दोहराया है कि चूंकि अभियुक्त का अपराध केवल मुकदमे के समापन पर स्थापित होता है, इसलिए जमानत स्वीकार न करना सजा के एक तरीके के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    याचिकाकर्ता-अभियुक्त की नियमित जमानत अर्जी की अनुमति देते हुए, जिन्होंने जांच में आवश्यकतानुसार सहयोग किया था, जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा,

    "जमानत का उद्देश्य मुकदमे में अभियुक्त की उपस्थिति को सुनिश्‍चित करना है और यह सुनिश्च‌ित करने के लिए कि जमानत दी जानी चाहिए या इनकार किया जाना है, उचित परिक्षण यह है कि यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि क्या यह संभावित है कि पार्टी ट्रायल में शामिल होगी, अन्यथा, जमानत स्वीकार नहीं करने को सजा के रूप में इस्तेमाल नहीं करना है।"

    मामले में संजय चंद्र बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, (2012) 1 एससीसी 49 पर भरोसा कायम किया गया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "जमानत का उद्देश्य उचित जमानत राश‌ि के जरिए ट्रायल में अभियुक्त की उपस्थिति सु‌निश्‍चित करना है।

    जमानत का उद्देश्य न तो दंडात्मक है और न ही निवारक है। स्वतंत्रता से वंचित किए जाना ‌को सजा माना जाना चाहिए, जब तक कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक न हो कि एक आरोपी व्यक्ति बुलाए जाने पर ट्रायल में उप‌स्थित होगा। प्रत्येक व्यक्ति तब तक निर्दोष है जब तक कि विधिवत ट्रायल के जरिए उसे विधिवत दोषी न पाया किया हो, आदलतों का उक्त सिद्धांत के प्रति मौखिक सम्मान से दा‌‌‌यित्व है।"

    याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 509, 354, 354-ए, 323 और 504 और एससी/ एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (1) (10) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    चूंकि राज्य की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल ने अदालत को बताया था कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त जांच में शामिल हुए थे और उन्हें हिरासत में रखकर पूछताछ की आवश्यकता नहीं है, इसलिए पीठ ने जमानत याचिका को अनुमति दे दी।

    ऐसा करते समय, पीठ ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रशांत कुमार सरकार बनाम आशीष चटर्जी व अन्य (2010) 14 एससीसी 496 के मामले में तय किए गए जमानत देने के कारकों की चर्चा की और कहा, "जेल नहीं बल्‍कि जमानत सामान्य नियम है। अदालत को आरोपों की प्रकृति, सबूतों की प्रकृति, सजा की गंभीरता, अभियुक्तों के चरित्र, परिस्थितियों को ध्यान में रखना होता है।"

    अदालत ने इसके बाद आदेश दिया कि याचिकाकर्ता संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/ ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 20,000/ - रुपए की राशि, स्थानीय जमानत के साथ, निजी बांड रुप में जमा कर सकता है।

    मामले का विवरण:

    केस शीर्षक: रजनीश कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

    केस नं : Cr MP(M)No. 678/2020

    कोरम: जस्टिस संदीप शर्मा

    प्रतिनिधित्व: एडवोकेट नितिन ठाकुर (याचिकाकर्ता के लिए); एएजी सुधीर भटनागर

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