एकपक्षीय रूप से नियुक्त मध्यस्थ की ओर से पारित अवॉर्ड मान्य नहींः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Avanish Pathak

4 March 2023 12:04 PM GMT

  • एकपक्षीय रूप से नियुक्त मध्यस्थ की ओर से पारित अवॉर्ड मान्य नहींः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले मे माना कि एकतरफा नियुक्त मध्यस्थ की ओर से की गई मध्यस्थता की कार्यवाही आरंभ से ही शून्य ( void ab initio) है और परिणाम स्वरूप पारित अवॉर्ड मान्य (non-est) नहीं है।

    जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की पीठ ने कहा कि एकतरफा नियुक्त एकमात्र मध्यस्थ की ओर से पारित मध्यस्थता निर्णय एएंडसी एक्‍ट की धारा 36 के तहत प्रवर्तनीय नहीं है। कोर्ट ने कहा कि धारा 12(5), 2015 के संशोधन के प्रभावी होने से पहले किए गए मध्यस्थता समझौते पर भी लागू होगी।

    इसके अलावा, यह माना गया कि अयोग्य मध्यस्थ के समक्ष मध्यस्थता की कार्यवाही में शामिल होने का कोई परिणाम नहीं होगा।

    तथ्य

    पार्टियों ने रेज़िन निष्कर्षण और ‌‌वितरण के लिए 20 मार्च 2012 को एक समझौता किया। कथित रूप से प्रतिवादी जब रेजिन की प्रासंगिक मात्रा नहीं निकाल पाया तब दोनों पक्षों के बीच विवाद पैदा हो गया।

    याचिकाकर्ता ने मुआवजे की मांग की, हालांकि, जब प्रतिवादी ने मांग की गई राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया तो याचिकाकर्ता की ओर से मध्यस्थता का आह्वान किया गया और एकतरफा रूप से मध्यस्थ नियुक्त किया।

    मध्यस्थ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में अवॉर्ड पारित किया। तदनुसार, याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 36 के तहत प्रवर्तन के लिए अवॉर्ड पेश किया। हालांकि, निष्पादन न्यायालय ने इस आधार पर अवॉर्ड को लागू करने से इनकार कर दिया कि यह एक अयोग्य मध्यस्थ द्वारा पारित किया गया है और वैध निर्णय नहीं है।

    निष्पादन न्यायालय के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    चुनौती

    याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित आधारों पर आक्षेपित आदेश को चुनौती दी,

    -धारा 12(5) पार्टियों के बीच मध्यस्थता पर लागू नहीं होगी क्योंकि 2015 के संशोधन से पहले पार्टियों के बीच मध्यस्थता समझौता हुआ था।

    -प्रतिवादी ने मध्यस्थता की कार्यवाही में भाग लिया था, इसलिए, निर्णय वैध था।

    निष्कर्ष

    न्यायालय ने माना कि एकतरफा नियुक्त मध्यस्थ की ओर से की गई मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू से ही शून्य है और परिणामी अवॉर्ड मान्य नहीं है। न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत के आदेश में कोई कमी नहीं थी। उसका शून्य मध्यस्थता अवॉर्ड को लागू करने से इनकार करना उचित था।

    तदनुसार, अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: मंडल प्रबंधक बनाम प्रेम लाल, सीएमएमपीओ नंबर 58/2023

    आदेश पढ़ने और डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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