[असम फेक एनकाउंटर] सरकार उचित कार्रवाई कर रही है, बिना पूर्ण तथ्यों की पुष्टि किए मीडिया रिपोर्ट के आधार पर जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती: हाईकोर्ट
Shahadat
28 Jan 2023 6:51 PM IST
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने शुक्रवार को असम में कथित 'फर्जी मुठभेड़ों' से संबंधित जनहित याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि याचिका में दिए गए बयान मुख्य रूप से बिना किसी पूर्ण तथ्यों के सत्यापन के विभिन्न वेबसाइटों से समाचार पत्रों की रिपोर्ट पर आधारित हैं।
याचिकाकर्ता की दलील थी कि असम पुलिस द्वारा मई, 2021 से रिट याचिका दायर करने की तारीख तक की अवधि के दौरान 80 से अधिक फर्जी एनकाउंटर किए गए, जिसके परिणामस्वरूप 28 से अधिक आरोपी व्यक्तियों की मौत हो गई और 48 से अधिक घायल हो गए।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि पुलिस एनकाउंटर के मामलों में कुछ स्थानों पर की गई मजिस्ट्रियल जांच भी पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य ने (2014) 10 एससीसी 635 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने अदालत से मई, 2021 से जनवरी, 2022 की अवधि के दौरान पुलिस एनकाउंटर मामलों से जुड़े सभी प्रासंगिक एफआईआर और दस्तावेजों की प्रतियों के साथ अधिकारियों को निर्देश देने का भी अनुरोध किया।
असम के एडवोकेट जनरल डी सैकिया ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वह इस मामले से जुड़ा नहीं है और याचिका में लगाए गए आरोप सही तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि राज्य पिछले कुछ महीनों में असम में पुलिस एनकाउंटर की घटनाओं से इनकार नहीं कर रहा है, लेकिन असम सरकार पुलिस कार्रवाई के ऐसे सभी मामलों को देख रही है, जो पुलिस हिरासत में व्यक्तियों की मृत्यु या चोट के कारण हैं और यदि यह पाया जाता है कि पुलिस कर्मी किसी भी गलत काम के दोषी हैं, उनके खिलाफ निश्चित रूप से कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी।
जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस सुष्मिता फुकन खांड की खंडपीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने इस तथ्य पर भी विवाद नहीं किया कि पुलिस कार्रवाई/एनकाउंटर मामलों में पूछताछ की गई है, लेकिन उसके अनुसार, राज्य द्वारा की गई जांच कानून के अनुसार नहीं है और पीयूसीएल और अन्य (सुप्रा) के मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रही है। हालांकि, उक्त दावे की पुष्टि करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है।”
अदालत ने कहा कि पुलिस मुठभेड़ों के कई मामलों से संबंधित कार्यवाही में याचिकाकर्ता रिकॉर्ड में लाई गई सामग्री के आधार पर इनमें से किसी भी कार्यवाही में अपनाई गई प्रक्रिया में किसी भी तरह की दुर्बलता को इंगित करने में विफल रहा है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यह बताने में भी विफल रहा कि पीयूसीएल और अन्य के मामले में किस दिशा-निर्देश का उल्लंघन किया गया, किस मामले में और किस तरीके से किया गया।
खंडपीठ ने कहा,
"जब तक उचित मूलभूत तथ्यों को अदालत के संज्ञान में नहीं लाया जाता, तब तक ऐसे मामले में जनहित याचिका केवल कुछ अस्पष्ट और निराधार दावों के आधार पर सुनवाई यो्गय नहीं हो सकती।"
अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रतिवादियों द्वारा दायर किए गए हलफनामे और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से पता चलता है कि पुलिस कार्रवाई की सभी 171 घटनाओं के संबंध में एफआईआर पहले ही दर्ज की जा चुकी है और जांच चल रही है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई।
अदालत ने कहा,
"इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के संबंध में ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस कार्रवाई पर कुछ मीडिया रिपोर्टों को पढ़ने के बाद पुलिस हिरासत में कुछ आरोपी व्यक्तियों की मृत्यु/चोट लगी, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर किए बिना इस अदालत में पहुंचे हैं। उन्हें संपूर्ण तथ्यों का ठीक से सत्यापन करना चाहिए था। इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ता द्वारा इस याचिका के माध्यम से केवल कुछ प्रचार के लिए इस अदालत में जाने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है।"
हालांकि, याचिका खारिज करते हुए अदालत ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे पुलिस कार्रवाई के सभी 171 मामलों के संबंध में एफआईआर/अंतिम रिपोर्ट की प्रतियों सहित रिट याचिकाकर्ता को कानूनी रूप से अनुमेय सभी दस्तावेज उपलब्ध कराएं, यदि निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके इसके लिए आवेदन किया जाता है।
केस टाइटल: आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर बनाम असम राज्य और 4 अन्य।
कोरम : जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस सुष्मिता फुकन खांड
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