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एएसजी और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को अपील दायर करने पर राय देने का अधिकार दिया जाए, कलकत्ता हाईकोर्ट ने 'अत्यधिक देरी' पर अंकुश लगाने के लिए सीबीआई परिपत्र में बदलाव का सुझाव दिया

Avanish Pathak
10 Jun 2022 11:32 AM GMT
कलकत्ता हाईकोर्ट
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कलकत्ता हाईकोर्ट 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने सुझाव दिया है कि सीबीआई एड‌िसनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) और पब्ल‌िक प्रॉसिक्यूटर को अदालत के आदेशों के खिलाफ अपील दायर करने पर प्रॉसिक्यूशन डारेक्टर को राय देने का अधिकार देने के लिए एक नया सर्कूलर जारी करे, ताकि देरी को कम किया जा सके।

जस्टिस विवेक चौधरी ने समय सीमा समाप्त होने के बाद अपील दायर करने के कारण एजेंसी के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की थी। अदालत ने कहा था कि सीबीआई अधिकारी सीबीआई मैनुअल का पालन करने में विफल रहे हैं, जिसमें देरी से बचने और सीमित अवधि के भीतर अपील और संशोधन दाखिल करना सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत प्रावधान हैं।

जिसके बाद अदालत ने राय दी थी कि सीबीआई निदेशक को सुने बिना इस मुद्दे पर फैसला नहीं किया जा सकता है और इस तरह उनकी वर्चुअल उपस्थिति की मांग की थी।

बुधवार को जस्टिस चौधरी ने अपना प्रस्ताव तब दोहराया जब सीबीआई के महानिदेशक एस के जायसवाल सुनवाई के दौरान वर्चुअल मोड के जरिए मौजूद थे। यह कहते हुए कि सीबीआई द्वारा अपील दायर करने वाले सभी मामलों में अत्यधिक देरी होती है, जज ने कहा कि यदि अदालत देरी की क्षमा के लिए उसकी सभी प्रार्थनाओं की अनुमति देती है, तो यह आम वादी को यह सोचने के लिए प्रेरित कर सकता है कि एजेंसी विशेषाधिकार प्राप्त है।

सीबीआई-महानिदेशक और एएसजी एस वी राजू को संबोधित करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसी लगभग सभी अपीलों में, सीआरपीसी की धारा 378(4) के तहत अपील करने के लिए विशेष अनुमति के लिए आवेदन सीबीआई द्वारा ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्णय देने की तारीख से लगभग एक वर्ष या उससे अधिक के बाद दायर किया जाता है।

एएसजी ने जवाब दिया था कि सीबीआई द्वारा जारी 4 मार्च, 2020 के परिपत्र संख्या 10/2020 ने अपील की प्रक्रिया के लिए समय सीमा निर्धारित की है और उल्लंघन होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है। इस प्रकार, एएसजी ने कहा कि परिपत्र के अनुसार सीबीआई के निदेशक की अंतिम राय प्राप्त करने में लगभग 26 दिन लगते हैं कि क्या सीबीआई द्वारा बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर की जानी चाहिए या नहीं।

हालांकि, जस्टिस चौधरी ने कहा कि मार्च 4, 2020 के इस तरह के सर्कूलर को केवल कागजों तक ही सीमित रखा जाता है और वास्तव में इसे लागू नहीं किया जाता है। अदालत के आदेशों को चुनौती देने वाली अपील दायर करने पर एएसजी और लोक अभियोजक की राय मांगने के प्रस्ताव को दोहराते हुए कोर्ट ने कहा,

"इस न्यायालय के अनुभव से पता चलता है कि 4 मार्च, 2020 के परिपत्र को केवल कागज में रखा गया है। इसका पालन नहीं किया जा रहा है और आज तक सीबीआई द्वारा सीमा की अवधि समाप्त होने के बाद बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है।

इसके बाद, यह न्यायालय सीबीआई द्वारा अपने प्रशासनिक पक्ष पर विचार करने के अपने प्रस्ताव को फिर से दोहराता है ताकि इस तथ्य पर एक नया परिपत्र जारी किया जा सके कि बरी करने के आदेश के खिलाफ जोनल लोक अभियोजक की टिप्पणियां प्राप्त करेगा और विद्वान सहायक सॉलिसिटर जनरल उक्त टिप्पणियों को सीधे अभियोजन निदेशक को उनके विचार के लिए भेजेंगे।

अभियोजन निदेशक राय प्राप्त होने की तारीख से सात दिनों के भीतर संबंधित हाईकोर्ट के विद्वान सहायक सॉलिसिटर जनरल की राय पर विचार करेगा और अंत में निर्णय करेगा कि अपील फाइल होनी चाहिए या नहीं।"

कोर्ट ने प्रस्ताव को एसिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल और सीबीआई निदेशक को संप्रेषित करने का आदेश दिया।

केस टाइटल: केंद्रीय जांच ब्यूरो (विशेष मामला संख्या 04/99) बनाम सुश्री एसआर रममणि और अन्य

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 232

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