एक सामान्य नियम के रूप में, जेल अधीक्षक की रिपोर्ट की कॉपी जमानत आवेदक को दी जानी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 Jun 2020 10:45 AM GMT

  • एक सामान्य नियम के रूप में, जेल अधीक्षक की रिपोर्ट की कॉपी जमानत आवेदक को दी जानी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक सामान्य नियम के रूप में, जेल अधीक्षक के साथ-साथ जांच अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट की एक प्रति आवेदक को दी जानी चाहिए ताकि आरोपी उनमें दिए गए कारणों को अच्छी तरह से समझ सके और अपने मामले का बचाव कर सके।

    मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की डिवीजन बेंच ने कहा कि जेल अधीक्षक और जांच अधिकारी की प्रतियां अग्रिम रूप से अदालत और आरोपी दोनों को प्रदान की जाएंगी।

    यह आदेश श्री चिराग मदान की ओर से दायर एक रिट याचिका पर आया है, जिसमें ट्रायल अदालतों के समक्ष जमानत से संबंधित मामलों में जेल अधीक्षक और जांच अधिकारी को अपनी रिपोर्ट की प्रतियां आरोपियों को देने के‌ लिए एक निर्देश जारी करने की मांग की गई है।

    याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था:

    '... ट्रायल अदालतों के समक्ष यह चलन बन गया है कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा धारा 437 सीआरपीसी, 438 सीआरपीसी और 439 सीआरपीसी के तहत दायर की गई जमानत की अर्जी के जवाब में जेल अधीक्षक/ अभियोजन पक्ष की ओर से दायर जवाब में स्थिति रिपोर्ट / रिपोर्ट की प्रति नहीं दी जाती है, जिससे न केवल संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का भी उल्लंघन होता है।'

    जेल अधिकारियों की ओर से पेश श्री राहुल मेहरा ने कहा कि उक्त रिपोर्टों की प्रतियां कुछ असाधारण मामलों को छोड़ दिया जाए तो, जिनमें कॉपी नहीं देने के कारण लिखित रूप में दर्ज किए जाते हैं, हमेशा ही दूसरे पक्ष को दी जाती हैं।

    श्री मेहरा ने आगे कहा कि आम तौर पर रिपोर्ट को एक विशेष उद्देश्य के लिए अदालत को दी जाती है।

    दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि:

    'आमतौर पर, एक सामान्य नियम के रूप में, न्यायालयों को ध्यान में रखना चाहिए कि जब भी किसी रिपोर्ट के लिए जेल अधीक्षक को कॉल किया जाता है और सीधे या एपीपी के माध्यम से अदालत को दिया जाता है, तो जमानत अर्जी के आवेदक को कॉपी दी जानी चाहिए। जब भी इस तरह की कॉपी आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत, विशेष रूप से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437, 438 और 439 के तहत, आवेदन किए ‌हुए आवेदक को नहीं दी जाती है, तब कारणों को न्यायालय द्वारा आदेश में दर्ज किया जाएगा। '

    इन टिप्पणियों की रोशनी में, अदालत ने इस आदेश की एक प्रति मुख्य सचिव, दिल्ली सरकार, महानिदेशक (जेल); सभी जिला न्यायालयों के जिला और सत्र न्यायाधीश; सदस्य सचिव, दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) और सभी जेल प्राधिकरण को भेजे जाने का निर्देश दिया।

    इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के साथ-साथ अधिवक्ता सुश्री रावलीन सभरवाल, श्री चैतन्य मदन, श्री साई कृष्णा, श्री अक्षय सहगल और श्री सैफ शम्स ने किया।

    केस टाइटल: W.P. (CRL) 986/2020

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें



    Next Story