[अनुच्छेद 229] राज्य हाईकोर्ट कर्मचारी सेवा शर्तों पर सीजे की सिफारिशों पर तब तक आपत्ति नहीं कर सकता जब तक कि "बहुत अच्छे कारण" मौजूद न हों: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार की निंदा की

Shahadat

13 Jan 2023 10:36 AM GMT

  • [अनुच्छेद 229] राज्य हाईकोर्ट कर्मचारी सेवा शर्तों पर सीजे की सिफारिशों पर तब तक आपत्ति नहीं कर सकता जब तक कि बहुत अच्छे कारण मौजूद न हों: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार की निंदा की

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि अनुच्छेद 229 (2) के तहत चीफ जस्टिस की शक्ति प्रकृति में सर्वोपरि है और एक बार जब चीफ जस्टिस अपने अधीन काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा शर्तों में सुधार करने के लिए प्रगतिशील कदम उठाते हैं तो राज्य सरकार आपत्ति नहीं कर सकती, जब तक बहुत अच्छे कारण न हों तब तक आपत्तियां उठाएं।

    जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस संदीप शर्मा की खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट नॉन-गजेटिड कर्मचारी/आधिकारिक कर्मचारी संघ द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में उन्होंने राज्य सरकार से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में उनके समकक्षों के साथ हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट रजिस्ट्री के कर्मचारियों के वेतनमान में समानता लाने के लिए निर्देश मांगा।

    अपनी याचिका में याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने तर्क दिया कि हिमाचल प्रदेश राज्य अपनी स्थापना के समय से ही वेतनमान, भत्ते और अन्य सुविधाओं के संबंध में पंजाब राज्य का पालन कर रहा है।

    उन्होंने प्रार्थना की कि चूंकि भारत सरकार ने 01.01.2006 से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में सेवारत कर्मचारियों के मौजूदा वेतन में 20% की वृद्धि की है, इसलिए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के कर्मचारियों के लिए भी इसी तरह का प्रावधान किया जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने पीठ के संज्ञान में यह भी लाया कि इस विषय पर 2012 में हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व पहले ही किया जा चुका है, जिस पर उसी वर्ष हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा विचार किया गया और बाद में राज्य सरकार को "अनुशंसा" की गई।

    याचिकाकर्ताओं ने आगे दलील दी कि लंबे समय तक रुकने के बाद वर्ष 2017 में राज्य के अधिकारियों ने मुख्य रूप से इस आधार पर हाईकोर्ट द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव खारिज कर दी कि हाईकोर्ट के कर्मचारियों को पहले से ही बढ़ा हुआ 01.10.2012 से प्रभावी अन्य राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतनमान के बराबर का वेतनमान (पे-बैंड और ग्रेड पे) दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इसके बाद 2019 में बैठक हुई, जहां सरकार ने चीफ जस्टिस द्वारा की गई सिफारिशों को मानने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया।

    इस मामले पर फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 229 (3) में यह विचार किया गया कि हाईकोर्ट के प्रशासनिक व्यय, जिसमें वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, जो न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में देय होंगे।

    अदालत ने कहा कि तदनुसार, राज्य के एक बहुत ही उच्च गणमान्य व्यक्ति चीफ जस्टिस जब इस तरह के नियम बनाते हैं तो इसे सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए, जब तक कि अनुमोदन न करने के लिए मजबूत और ठोस कारण न हों।

    इस मामले पर आगे विचार करते हुए पीठ ने दर्ज किया कि हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार के मुख्य सचिव को चीफ जस्टिस की सिफारिशों को हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के समक्ष अनुमोदन के लिए निचले स्तरों पर छानने के बजाय समानता के सिद्धांत पर रखना चाहिए।

    राज्य सचिवालय और हाईकोर्ट के कर्मचारियों द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की प्रकृति को अलग करने का संबंध है, यह बड़ा अंतर है।

    अदालत ने दर्ज किया,

    "राज्य सचिवालय के विपरीत हाईकोर्ट के कर्मचारियों को दिए गए कार्य को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है .... हाईकोर्ट के कर्मचारियों के कर्तव्य के घंटे सामान्य रूप से और अनिवार्य रूप से बढ़ जाते हैं और विषम घंटों तक बढ़ जाते हैं और वे अधिक हैं। अक्सर देर रात तक काम करने की आवश्यकता नहीं होती है।"

    अदालत ने आगे विस्तार से कहा कि हाईकोर्ट के कर्मचारियों को सौंपे गए अधिकांश कार्यों को पूरा करने और/या समयबद्ध तरीके से पूरा करने की आवश्यकता होती है और इसमें देरी नहीं की जा सकती है। इसलिए न्यायपालिका के कर्मचारियों से अपेक्षित कार्य की विशिष्ट प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि राज्य सचिवालय के कर्मचारियों और हाईकोर्ट के कर्मचारियों के लिए समान वेतनमान का निर्धारण उचित नहीं है।

    तदनुसार, अदालत ने राज्य सरकार का वह फैसला रद्द कर दिया, जिसमें उसने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा हाईकोर्ट के कर्मचारियों के मौजूदा वेतनमान में 20% वृद्धि के लिए की गई सिफारिशों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने आगे निर्देश दिया कि पंजाब एंड हरियाणा और दिल्ली हाईकोर्ट के कर्मचारियों द्वारा किए गए कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए फिर से सिफारिश करने से पहले याचिकाकर्ता एसोसिएशन की मांगों का आकलन करने के लिए समिति गठित करने के लिए वेतन पैर्टन की मांग वाले वर्तमान निर्णय को चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए।

    केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश नॉन-गजेटिड कर्मचारी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

    साइटेशन: लाइवलॉ (एचपी) 5/2022

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