गिरफ्तारी वारंट व्हाट्सएप मैसेज के जरिए नहीं दिया जा सकता: मध्य प्रदेश राज्य पुलिस ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को बताया

Avanish Pathak

9 Nov 2022 10:57 AM GMT

  • गिरफ्तारी वारंट व्हाट्सएप मैसेज के जरिए नहीं दिया जा सकता: मध्य प्रदेश राज्य पुलिस ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को बताया

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश राज्य पुलिस ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को बताया कि सीआरपीसी की धारा 71 के तहत संबंधित व्यक्ति को व्हाट्सएप मैसेज के जर‌िए गिरफ्तारी वारंट जारी करने की कोई प्रक्रिया नहीं है। जमानत की अर्जी पर सुनवाई कर रही जस्टिस जीएस अहलूवालिया की पीठ के समक्ष यह दलील दी गई।

    मामले के तथ्य यह थे कि आवेदक पर आईपीसी की धारा 302, 34 के तहत दंडनीय अपराध का मुकदमा चल रहा था। उन्होंने जमानत के लिए अपना पांचवां आवेदन इस आधार पर दायर किया था कि उनके मुकदमे में देरी हो रही है।

    रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को देखने पर अदालत को पता चला कि अभियोजन पक्ष के गवाह के पेश न होने के कारण, ट्रायल कोर्ट ने उसका गिरफ्तारी वारंट जारी किया था, जिससे पुलिस को उसे सुनवाई की अगली तारीख पर पेश करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, सुनवाई की अगली तारीख पर गवाह पेश नहीं किया गया।

    संबंधित अधिकारी ने यह कहते हुए इसे सही ठहराया कि उक्त गवाह को व्हाट्सएप मैसेज के माध्यम से नोटिस दिया गया था। निचली अदालत ने औचित्य को अस्वीकार्य करते हुए संबंधित अधिकारी से जवाब मांगा था कि पुलिस नियमन संख्या 29 के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाए।

    यह देखते हुए कि निचली अदालत के निर्देशों के अनुसार संबंधित अधिकारी द्वारा कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया था, हाईकोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि वह उठाए गए प्रश्नों के स्पष्टीकरण प्रदान करने के लिए अपना जवाब रिकॉर्ड पर लाए।

    "तदनुसार, राज्य के वकील ने प्रार्थना की और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, ग्वालियर का जवाब दाखिल करने के साथ-साथ एसएचओ, थाना हजीरा, जिला ग्वालियर के जवाब दाखिल करने के लिए एक दिन का समय दिया गया कि केवल व्हाट्सएप अकाउंट पर मैसेज भेजकर गिरफ्तारी वारंट कैसे निष्पादित किया जा सकता है और क्या पुलिस गवाह को गिरफ्तार करने और ट्रायल कोर्ट के समक्ष गवाह को पेश करने के लिए बाध्य थी या नहीं?

    थाना हजीरा, जिला ग्वालियर के एसएचओ यह भी स्पष्ट करेंगे कि उन्होंने ट्रायल कोर्ट में कोई जवाब दाखिल किया है या नहीं?"

    अपने जवाब में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने न्यायालय को सूचित किया कि व्हाट्सएप मैसेजों के माध्यम से धारा 71 सीआरपीसी के तहत गिरफ्तारी वारंट की तामील करने की कोई प्रक्रिया नहीं है और यह कि अपराध के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।

    कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि निचली अदालत के स्पष्ट निर्देश के बावजूद संबंधित एसएचओ ने अपना जवाब नहीं दिया कि उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए।

    कोर्ट ने कहा,

    यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि ट्रायल कोर्ट की ओर से 9/9/2022 को दिए स्पष्ट निर्देश के बावजूद, जिसके द्वारा एसएचओ, पुलिस स्टेशन हजीरा, जिला ग्वालियर को अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था कि उसके खिलाफ पुलिस विनियम की धारा 29 के तहत कार्रवाई क्यों नहीं की जा सकती है, फिर भी एसएचओ, थाना हजीरा, जिला ग्वालियर ने कोई जवाब दाखिल नहीं किया। जहां तक ​​यह निवेदन है कि थाना हजीरा, जिला ग्वालियर के एसएचओ ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष मौखिक प्रस्तुत‌िकरण दिया था, यह स्पष्ट रूप से गलत है क्योंकि ट्रायल कोर्ट के बाद के आदेश-पत्र ऐसा नहीं दर्शाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि थाना हजीरा, जिला ग्वालियर के एसएचओ ने न केवल अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही बरती बल्कि ट्रायल कोर्ट के 9/9/2022 के आदेश का भी जवाब नहीं दिया।

    उपरोक्त टिप्पणी करते हुए, न्यायालय ने एसएचओ को निचली अदालत के समक्ष अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसने ट्रायल कोर्ट को एसएसपी द्वारा कोर्ट के समक्ष दायर जवाब के साथ उक्त जवाब पर विचार करते हुए एक आदेश पारित करने का निर्देश दिया। इसने एसएसपी को दोषी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के संबंध में रजिस्ट्रार के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

    अदालत ने तब अभियोजन पक्ष के गवाह के खिलाफ उसकी गैर-मौजूदगी के लिए जांच का निर्देश दिया, यह देखते हुए कि उसकी कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के अधिकार का उल्लंघन है। आवेदन के गुण-दोष पर विचार करते हुए, न्यायालय ने पाया कि आवेदक की पिछली जमानत अर्जी गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दी गई थी और उसके बाद से परिस्थितियों में एकमात्र बदलाव आया है।

    आवेदन के गुण-दोष पर विचार करते हुए, न्यायालय ने पाया कि आवेदक की पिछली जमानत अर्जी गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दी गई थी और उसके बाद से परिस्थितियों में एकमात्र बदलाव मुकदमे में देरी थी। यह देखते हुए कि देरी करने वाले अभियोजन पक्ष के गवाह से निपटा गया था, जमानत आवेदन बिना योग्यता के था। इस प्रकार आवेदन खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: दीपू कौरव बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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