"अर्नब गोस्वामी अपना एजेंडा चला रहे हैं", पूर्व पुलिसकर्मी ने मुकदमा दायर कर कहा, रिपब्‍ल‌िक टीवी को मुंबई पुलिस को बदनाम करने से रोका जाए

LiveLaw News Network

20 Oct 2020 10:22 AM GMT

  • अर्नब गोस्वामी अपना एजेंडा चला रहे हैं, पूर्व पुलिसकर्मी ने मुकदमा दायर कर कहा, रिपब्‍ल‌िक टीवी को मुंबई पुलिस को बदनाम करने से रोका जाए

    मुंबई की अदालत में एक मुकदमा दायर किया गया है, जिसमें रिपब्लिक टीवी, आर भारत और न्यूज एंकर अर्नब गोस्वामी को टीआरपी घोटाले के मामले में हुई एफआईआर की चर्चा करने या जिक्र करने से रोकने की मांग की गई है।

    मुंबई के पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त, इकबाल शेख की ओर से दायर मुकदमे में मुंबई पुलिस के खिलाफ "अवमाननापूर्ण रपटों" के कारण वादी को हुई मानसिक पीड़ा के लिए 5 लाख रुपये की क्षति की भी मांग की गई है।

    एडवोकेट आभा सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि रिपब्लिक टीवी और आर भारत ने मुंबई पुलिस को बदनाम करने का "अभियान" शुरू किया है, जिससे वादी को पीड़ा हुई है, जिसे "मुंबई पुलिस विरासत पर गर्व है।"

    वादी ने कहा है, "..जब प्रतिवादी एक (अर्नब गोस्वामी), व्यक्तिगत रूप से इच्छुक पार्टी के रूप में, उग्र स्वर में मुंबई पुलिस के खिलाफ बयानबाजी करता है, मुंबई पुलिस को बेईमान अधिकारियों का संगठन कहता है, और यह बिना किसी आधार के कहता है, तो यह वादी को इससे बहुत पीड़ा होती है, जिसके लिए मुंबई पुलिस उसका दिल और आत्मा रही है। वादी, जिसने अपनी सेवा के लिए राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार जीता है। "

    वादी ने कहा कि जब एक मामला वैधानिक प्रावधानों के तहत जांच के अधीन है, तो प्रतिवादी संख्या एक (अर्नब गोस्वामी) को खुद के मामले पर चर्चा करने, मुंबई पुलिस को बदनाम करने और अपने ही टीवी चैनलों में अपने ही मामले में पंच बनने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती है।

    दलील दी गई है कि चैनलों की खबरें और श्री अर्नब गोस्वामी द्वारा आयोजित बहस पत्रकारीता की नैतिकता का उल्लंघन है।

    वादी कि अनुसार, प्रतिवादी श्री गोस्वामी, रिपब्‍ल‌िक टीवी को चलाने वाली कंपनी के मालिक हैं, उस चैनल के मुख्य संपादक हैं और उस चैनल की टीवी डिबेट्स के मुख्य एंकर हैं। वादी का तर्क है कि यह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा जारी दिशानिर्देशों की "खुली अवमानना" है, जिसके अनुसार मालिक/प्रबंधन और संपादक अलग-अलग होना चाहिए।

    वादी का कहना है कि अर्नब गोस्वामी व्यक्तिगत रूप से एआरजी आउटलायर मीडिया लिमिटेड में 82 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं, जो कि रिपब्लिक टीवी और आर भारत की माल‌िक है।

    "वादी ने कहा कि प्रतिवादी संख्या एक ने दो टीवी चैनलों के मालिक के रूप में अपनी सीमा को लांघ गया है और प्रमुख संपादक के रूप में खुद का एजेंडा चला रहा है, और अपने ही मामले में, जिसमें कानूनी जांच चल रही है, बड़े-बड़े धर्मोपदेश दे रहा है।"

    यह दलील दी गई है कि टीआरपी घोटाला मामले की जांच को गिराने के लिए- जिसमें मुंबई पुलिस को संदेह है कि रिपब्लिक टीवी को लाभ हुआ है - प्रतिवादियों ने जानबूझकर मुंबई पुलिस के खिलाफ अवमाननापूर्ण अभियान चलाया है।

    वादी ने चैनल की बहस में मुंबई पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह के खिलाफ गोस्वामी द्वारा दिए गए बयानों का हवाला भी दिया है।

    "वादी ने कहा कि रिपब्लिक टीवी चैनल इस मामले में एक वैधानिक जांच के अधीन है और कानूनी मंचों पर अपना पक्ष रखने के सभी वैध तरीके उन्हें उपब्ध हैं। हालांकि, कानून के तहत निर्धारित तरीके का पालन करने के बजाय, वे कानून को अपने हाथों में लेने की कोशिश कर रहे हैं और...मुंबई पुलिस को बदनाम कर सकते हैं। यह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट, 1965 के तहत प्रेस काउंसिल द्वारा जारी किए गए पत्रकारीय आचरण के मानदंडों का खुलेआम और घोर उल्लंघन है।

    उल्लेखनीय है कि रिपब्लिक टीवी ने कल घोषणा की थी कि वह चैनल को टीआरपी घोटाले से जोड़ने के लिए मुंबई पुलिस पर मुकदमा करने जा रहा है। चैनल ने कहा कि मुंबई पुलिस ने खुद के प्रेस बयानों का खंडन किया, जब उसने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि रिप‌िब्‍ल‌िक टीवी को प्राथमिकी में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है।

    इस संबंध में, वादी का कहना है कि यह विचार कि किसी व्यक्ति को मामले में सिर्फ इसलिए आरोपी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उसका नाम एफआईआर में उल्लेखित नहीं था, गलत है।

    "वादी ने कहा कि एक एफआईआर सिर्फ एक प्रथम सूचना है, जो जांच शुरू करने का एक आधार है। जैसे जांच आगे बढ़ती है, आगे की संस्थाओं को साक्ष्य के आधार पर जांच के अधीन किया जा सकता है।

    हालांकि, प्रत‌िवादी संख्या एक निरंतर अवमाननपूर्ण अभियान चलाकर जांच को पहले ही रोकना चाहता है। इस कारण से, यह आवश्यक है कि प्रतिवाद संख्या एक के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी कर उसके दो टीवी चैनलों ओर वेब पोर्टल को इस मामले पर चर्चा नहीं करने के लिए निर्देशित किया जाए...."।

    इस मामले की सुनवाई 21 अक्टूबर को सुबह 11 बजे सिटी सिविल कोर्ट में अतिरिक्त सेशन जज मराठे के कोर्ट रूम नंबर 4 में होगी।

    उल्लेखनीय है कि 8 अक्टूबर को, मुंबई के पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह ने एक ऐसे रैकेट का भंडाफोड़ करने का दावा किया था, जिसकी सहायता से निजी टेलीविजन चैनलों ने अपनी टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स या टीआरपी में हेरफेर किया था।

    मुंबई पुलिस ने एक बयान में कहा कि "जांच से पता चलता है कि रिपब्लिक टीवी, फक्थ मराठी और बॉक्स सिनेमा इस प्रकार की गतिविधियों में लिप्त है।"

    पुलिस आयुक्त ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता के तहत विश्वासघात (धारा 409), धोखाधड़ी (420) और आपराधिक साजिश (120B) के अपराधों के तहत कांदिवली पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की गई है।

    एआरजी आउटलायर लिमिटेड और गोस्वामी ने एफआईआर को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और उन्हें पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा।

    उच्च न्यायालय, जिसने कल याचिका पर विचार किया, ने गोस्वामी को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने का आदेश देने के वरिष्ठ एडवोकेट हरीश साल्वे के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    कोर्ट ने कहा कि इस तरह का आदेश जरूरी नहीं है क्योंकि एफआईआर में गोस्वामी को आरोपी नहीं बनाया गया है।

    अदालत ने कहा कि यदि अर्नब गोस्वामी को अभियुक्त के रूप में जोड़ा जाना आवश्यक है तो मुंबई पुलिस को जांच एजेंसियों के सामने पेश होने के लिए गोस्वामी को समन जारी करे। अदालत ने कहा कि समन प्राप्त होने पर गोस्वामी को पेश होना चाहिए और जांच में सहयोग करना चाहिए।

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