पुलिस का तर्क कि पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था, स्वीकार नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

8 Dec 2020 12:47 PM GMT

  • पुलिस का तर्क कि पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था, स्वीकार नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    यह देखते हुए कि "सीसीटीवी प्रणाली पुलिस स्टेशन में लाए जाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ अत्याचार जैसी गतिविधियों को नियंत्रित करती है", बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) ने देखा कि पुलिस द्वारा दिया गया यह तर्क
    कि पुलिस स्टेशन में स्थापित सीसीटीवी सिस्टम काम नहींं कर रहा था, ' स्वीकार नहीं किया जाएगा।

    न्यायमूर्ति टी. वी. नालावाडे और न्यायमूर्ति एम. जी. सेवलीकर की खंडपीठ ने कहा,

    "ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि जब इस तरह की प्रस्तुतियाँ स्वीकार की जाएंंगी तो इससे सीसीटीवी प्रणाली स्थापित करने के पीछे का उद्देश्य पराजित हो जाएगा।"

    अदालत एक याचिकाकर्ता वाजिद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पुलिस द्वारा हिरासत में उत्पीड़न का आरोप लगाया था और जब उसने पुलिस स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज के लिए कहा, तो पुलिस ने इनकार कर दिया और इसलिए उसने हाईकोर्ट में गुहार लगाई।

    न्यायालय के समक्ष लोक अभियोजक ने पुलिस इंस्पेक्टर, उमरगा पुलिस उप-विभाग के अस्सिटेंट के संचार को पेश किया, जिसमें कहा कि संबंधित दिन के पुलिस स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं थे, क्योंकि उस समय की सीसीटीवी प्रणाली काम नहीं कर रही थी।

    इस पर, अदालत ने कहा कि यह पहला उदाहरण नहीं था जब संबंधित पुलिस स्टेशन ने सूचित किया था कि सीसीटीवी प्रणाली काम नहीं कर रही थी।

    कोर्ट ने आगे कहा कि इस सीट पर और प्रिंसिपल सीट पर इस कोर्ट द्वारा कुछ विशिष्ट निर्देश दिए गए हैं, जिनमें कहा गया है कि हर पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी सिस्टम स्थापित हैं और इसमें लॉकअप और पुलिस स्टेशन के अन्य हिस्से शामिल होने चाहिए।

    इस पर कोर्ट ने कहा,

    "इस तरह की प्रणाली उन लोगों के खिलाफ अत्याचार जैसी गतिविधियों को नियंत्रित करती है जिन्हें पुलिस स्टेशन में लाया जाता है। यह आश्चर्यजनक है कि कई मामलों में प्रस्तुत किया जाता है कि उस विशेष दिन में सीसीटीवी प्रणाली काम नहीं कर रही थी।"

    कोर्ट ने यह भी कहा,

    "जब ऐसी प्रणाली स्थापित की जाती है, तो कुछ अधिकारी को सिस्टम के काम की निगरानी के लिए नियुक्त करने की आवश्यकता होती है और हर दिन रिकॉर्डिंग को किसी अधिकारी द्वारा देखा जाना चाहिए और इसके बारे में प्रविष्टि को कुछ रजिस्टर में बनाने की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया का पालन पुलिस स्टेशन द्वारा किया जाना चाहिए।"

    उच्च न्यायालय ने आगे संबंधित पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी प्रणाली के संबंध में बनाए गए रजिस्टरों को प्रस्तुत करने के लिए कहा कि उस दिन सीसीटीवी प्रणाली काम नहीं कर रही थी।

    यह देखते हुए कि लोक अभियोजक द्वारा कोई रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया है, अदालत ने कहा कि "ये परिस्थितियां गंभीर संदेह पैदा करती हैं।"

    इस संदर्भ में न्यायालय ने जिला पुलिस अधीक्षक, उस्मानाबाद को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने और मामले की जांच करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "जब यह अदालत को सूचित किया जाता है कि उस दिन पर सीसीटीवी प्रणाली काम नहीं कर रही थी, यह स्वीकार्य नहींं किया जा सकता, क्योंकि इस तरह के सबमिशन स्वीकार किए जाने पर सीसीटीवी प्रणाली को स्थापित करने के पीछे का उद्देश्य पराजित हो जाएगा।"

    अंत में कोर्ट ने जिला पुलिस अधीक्षक, उस्मानाबाद, इस मामले की जांच करने के लिए और पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी प्रणाली के काम करने और सीसीटीवी प्रणाली के रिकॉर्ड के रखरखाव के बारे में अपनाई गई प्रक्रिया को देखने के निर्देश जारी किए।

    यह रिपोर्ट 18 दिसंबर 2020 से पहले प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है और इस मामले को आगे की सुनवाई के लिए 18 दिसंबर 2020 को पोस्ट किया गया है।

    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अधीन कार्य करने वाले प्रत्येक पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे स्थापित हों।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि इन निर्देशों को अक्षरश: जल्द से जल्द लागू किया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को सीबीआई, एनआईए आदि केंद्रीय एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने का भी निर्देश दिया है।

    केस का शीर्षक - वाजिद बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य [2020 की आपराधिक याचिका याचिका संख्या 1111]

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