'मनमाना और अवैध' - लोक सेवा आयोग की परीक्षा के मद्देनजर राजस्थान में इंटरनेट सेवाएं निलंबित करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

8 Nov 2021 6:09 AM GMT

  • मनमाना और अवैध - लोक सेवा आयोग की परीक्षा के मद्देनजर राजस्थान में इंटरनेट सेवाएं निलंबित करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    राजस्‍थान प्रशासनिक सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा के मद्देनजर जयपुर समेत राजस्‍थान के कई जिलों में इंटरनेट बंद किए जाने के ‌खिलाफ एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वकील ने कहा है कि जब भी कोई परीक्षा आयोजित होती है तब इंटरनेट को बंद करने की 'मनमानी कार्रवाई' को राजस्‍थान सरकार ने एक निश्चित प्रथा बना लिया है। एडवोकेट विशाल तिवारी ने 27 अक्टूबर, 2021 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा मद्देनजर संभागीय आयुक्त कार्यालय, जयपुर संभाग की ओर से 26 अक्टूबर 2021 जारी आदेश को चुनौती दी है। एक जनहित याचिका में उन्होंने इंटरनेट बंद करने को मनमाना और अवैध बताया है।

    याचिकाकर्ता ने राजस्थान राज्य और अन्य प्रतिवादियों को निर्देश देने की मांग की है कि भविष्य में इंटरनेट सेवाओं को बंद करके न्यायिक सेवाओं, वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई/मामलों की ई-फाइलिंग को बाध‌ित न किया जाए।

    याचिका में कहा गया है कि परीक्षा के कारण आक्षेपित आदेश पारित किया गया कि परीक्षा में नकल या नकल की संभावना को कम करने के लिए इंटरनेट सुबह 9 बजे से दोपहर एक बजे तक बंद रहेगा। भरतपुर, धौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर जैसे विभिन्न जिलों में इंटरनेट सुबह 8 बजे से निलंबित कर दिया गया और दोपहर 1:20 बजे तक निलंबित रहा।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी कि परीक्षा के दौरान धोखाधड़ी और कदाचार को रोकने के लिए इंटरनेट बंद करना राजस्थान सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग की अक्षमता को दर्शाता है।

    याचिका में कहा गया है,

    "आदेश में धोखाधड़ी और कदाचार की आशंका प्रकट की गई थी और इस प्रकार की अस्पष्ट और मनमानी की आशंका के आधार पर जनता के एक बड़े हिस्से के मौलिक अधिकार मुख्य रूप से अनुच्छेद 19 (1) (ए), 19 (1) (जी) और अनुच्छेद 21 को दांव पर लगा दिया गया।"

    याचिकाकर्ता के अनुसार, इंटरनेट बंद करने के ऐसे आदेश को थोपना स्पष्ट रूप से दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा नियम), 2017 के खिलाफ है और ऐसा आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में निर्धारित आदेश के खिलाफ है।

    याचिकाकर्ता ने कहा है कि एक मामूली आशंका के कारण इस प्रकार मनमाने ढंग से इंटरनेट बंद करने से नागरिकों को अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत पेशे, व्यवसाय और व्यापार के अभ्यास के अधिकार से वंचित किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने बीकानेर में बने परीक्षा केंद्र के प्रवेश द्वारा पुरुष सुरक्षा गार्ड द्वारा एक महिला उम्मीदवार की आस्तीन काटने के समाचार का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि प्रतिवादियों की अक्षमता के कारण महिला का अपमा‌नित होना पड़ा। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को निर्देश देने की मांग की है कि वे अपने-अपने राज्यों में किसी भी परीक्षा के आयोजन के दौरान महिला उम्मीदवारों और अन्य उम्मीदवारों के साथ अभद्र तरीके से पेश न आएं।

    याचिका में कहा गया है,

    "संभागीय आयुक्त कार्यालय ने 26 अक्टूबर, 2021 को परीक्षा में धोखाधड़ी और कदाचार की आशंकाओं के मद्देनजर इंटरनेट निलंबन का आदेश जारी किया था। यह आदेश प्रकृति में प्रथम दृष्टया शून्य है, क्योंकि दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा नियम), 2017 के नियम 2 (1) के अनुसार दूरसंचार सेवाओं को निलंबित करने का निर्देश भारत सरकार के मामले में गृह सच‌िव और राज्य सरकार के मामले में गृह विभाग के प्रभारी सचिव दे सकते हैं। अपरिहार्य और आपातकालीन स्थितियों में ऐसा आदेश भारत सरकार के संयुक्त सचिव के पद से नीचे के अधिकारी जारी कर सकता है, हालाकि आदेश केंद्रीय गृह सचिव या राज्य के गृह सचिव ने विधिवत अधिकृत किया हो।"

    केस शीर्षक: विशाल तिवारी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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