अंतरिम जमानत के लिए दायर आवेदन को नियमित जमानत के एक उपाय के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता : राजस्थान हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
3 July 2020 10:45 AM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने बुधवार को एक 51 वर्षीय हत्या के आरोपी की अंतरिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि ऐसे कोई बाध्यकारी कारण नहीं हैंं, जिनके आधार पर बीमार मां और पत्नी की देखभाल करने के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक हो जाए।
जमानत याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की एकल पीठ ने कहा कि-
''अंतरिम जमानत के लिए दायर आवेदन को नियमित जमानत के एक विकल्प या उपाय के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। खासतौर पर जब याचिकाकर्ता की छह अंतरिम जमानत अर्जी पहले ही खारिज हो चुकी हों।''
याचिकाकर्ता-अभियुक्त ने अपने परिवार की देखभाल के लिए अंतरिम जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने बताया था उसकी पत्नी गंभीर रूप से एनीमिक है और उसे खून चढ़वाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, उनकी 90 साल की बूढ़ी मां अवसाद और दिल की बीमारियों से पीड़ित है। उसे भी उचित चिकित्सा की आवश्यकता है।
उसने अदालत को यह भी बताया कि जब भी उसे अंतरिम जमानत दी गई थी, उसने अच्छा आचरण पेश किया था और समय पर रिपोर्ट/ आत्मसमर्पण किया था।
इन तर्कों को खारिज करते हुए एकल पीठ ने कहा कि-
''याचिकाकर्ता ने पहले भी अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद समय पर रिपोर्ट/आत्मसमर्पण किया था,सिर्फ इस तथ्य के आधार पर याचिकाकर्ता को फिर से अंतरिम जमानत नहीं दी जा सकती है। विशेषकर जब इस अदालत को मजबूर करने वाला कोई ऐसा कारण नजर नहीं आ रहा है,जिसके आधार पर यह कहा जा सकें कि उसकी माँ और पत्नी की देखभाल करने के लिए उसकी उपस्थिति अनिवार्य है।''
अदालत ने कहा कि कोई भी ऐसी सामग्री या साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं रखे गए,जिनके आधार पर यह कहा जा सकें कि उसकी पत्नी और माँ किसी भी ''गंभीर बीमारी'' से पीड़ित हैं या वह साक्ष्य इस तरफ इशारा करते हों।
''रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेज किसी ऐसी गंभीर चिंता को नहीं दर्शा रहे हैं,जिसके आधार यह कहा जा सकें कि जीवन के लिए खतरनाक बीमारी है और उसके उचित उपचार को सुनिश्चित करने के लिए याचिकाकर्ता की उपस्थिति आवश्यक है।''
पीठ ने यह भी कहा कि कुछ बीमारी उम्र बढ़ने से जुड़ी होती हैं,जिनसे याचिकाकर्ता की मां पीड़ित हैं। ऐसे में उसकी मां की देखभाल उसका बेटा या उसके अन्य रिश्तेदार कर सकते हैं।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त 7 साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में है और छह मौकों पर उसकी तरफ से दायर अंतरिम जमानत याचिका खारिज हो चुकी हैं। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बाध्यकारी कारणों के बिना और विशेषकर जब जमानत के लिए दायर आवेदन पहले भी कई बार खारिज हो चुका हो, याचिकाकर्ता को कानून के प्रावधानों के उपाय खोजने या उनसे छल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- पारसराम विश्नोई बनाम निदेशक, सीबीआई
केस नंबर-आपराधिक मिश्रित जमानत आवेदन संख्या 3681/2020
कोरम- जस्टिस दिनेश मेहता
प्रतिनिधित्व- एडवोकेट हेमंत नाहटा और संजय बिश्नोई (याचिकाकर्ता के लिए) और स्पेशल पीपी पन्नेय सिंह (प्रतिवादी के लिए)