लंबित रिट याचिका में अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील सुनवाई योग्य नहीं: केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
30 Oct 2021 4:04 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि जब मुख्य रिट याचिका जज के समक्ष लंबित हो तो सिंगल जज द्वारा पारित अंतरिम आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील नहीं की जा सकती है।
जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ अपील को खारिज करते हुए कहा, "... हमारा मानना है कि ऐसे आदेशों को अधिनियम की धारा 5 (i) के तहत अपील में नहीं आक्षेपित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यदि ऐसे आदेशों के खिलाफ अपील पर विचार किया जाता है तो अपीलीय अदालत अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को हड़प लेगी।"
आक्षेपित अंतरिम अंतरिम आदेश सिंगल जज ने तब पारित किया था, जब याचिका एडमिशन के लिए आई थी कार्रवाई का सामान्य तरीका यह है कि जब विरोधी पक्ष पारित आदेश पर आपत्ति करना चाहता है तो आदेश को रद्द कराने या बदलने के लिए उसी बेंच के समक्ष जाता है।
हालांकि मौजूदा मामले में एक असामान्य कदम में अपीलकर्ताओं ने केरल हाईकोर्ट एक्ट, 1958 की धारा 5 के तहत एक डिवीजन बेंच के समक्ष अपील दायर की।
उनकी दलील थी कि जवाबी हलफनामा दाखिल करने और पेश होने के बावजूद सिंगल जज ने आक्षेपित आदेश को आगे बढ़ाना जारी रखा। जब अपील को सुनवाई योग्य होने का औचित्य साबित करने के लिए कहा गया तो उन्होंने केएसदास बनाम केरल राज्य [1992 (2) केएलटी 358] पर भरोसा किया, जहां यह माना गया था कि एक रिट याचिका में पारित एक इंटरलोक्यूटरी ऑर्डर के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है।
हालांकि, निर्णय में विशेष रूप से जोर दिया गया कि ऐसे आदेश केवल प्रक्रियात्मक प्रकृति के आदेश या अंतरिम आदेश नहीं होने चाहिए । यहां अपीलकर्ता का तर्क था कि यदि अंतरिम आदेश कानून के विपरीत है, विकृत है या पार्टियों के लिए गंभीर पूर्वाग्रह का कारण बनता है तो निर्णय के अनुसार एक अपील सुनवाई योग्य होगी।
हालाकि, न्यायालय ने यह स्टैंड लिया कि उपरोक्त मामले को बारीकी से पढ़ने से यह संदेह से परे लगता है कि इस प्रकार के आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई करने वाली खंडपीठ अपील को स्वीकार करने, आक्षेपित आदेश को संशोधित करने या हर मामले में इसे रद्द करने के लिए बाध्य नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा, "... यह बिना किसी संदेह के देखा जा सकता है कि अधिनियम की धारा 5 (i) के तहत चुनौती योग्य होने के लिए आदेश कम से कम किसी भी अधीनस्थ मामलों के लिए निर्णायक होगा, जिसके साथ यह संबंधित है।"
मौजूदा मामले में यह स्पष्ट था कि एक अंतरिम आदेश पारित किया गया था क्योंकि सिंगल जज ने रिट याचिका में याचिकाकर्ता के हितों की रक्षा के लिए ऐसा आदेश पारित करना आवश्यक समझा। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के आदेश को किसी भी मामले में निर्णायक या मुख्य या अधीनस्थ के रूप में नहीं समझा जा सकता है।
तात्पर्य यह है, "...अंतरिम आदेश का चरित्र तब तक बना रहेगा जब तक कि न्यायालय द्वारा कोई निर्णय नहीं किया जाता है, कम से कम इंटरलोक्यूटरी उद्देश्य के लिए, इस तथ्य के बावजूद कि क्या विपरीत पक्ष ने उपस्थिति दर्ज की थी।"
यदि ऐसा है तो न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के आदेश 1958 अधिनियम की धारा 5 (i) के तहत अपील में आक्षेपित नहीं किए जा सकते हैं, क्योंकि यदि ऐसे आदेशों के खिलाफ अपील पर विचार किया जाता है तो अपीलीय अदालत अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को हड़प लेगी।
कोर्ट ने अपील को विचारणीय न मानते हुए खारिज कर दी। अपीलकर्ताओं की ओर से एडवोकेट एस निधीश और सीएस मणिलाल उपस्थित हुए, जबकि प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व एडवोकेट डेनु जोसेफ और वरिष्ठ सरकारी वकील टीके विपिनदास ने किया।
केस शीर्षक: पीटी थॉमस और अन्य बनाम बिजो थॉमस और अन्य।