एपोस्टिल कन्वेंशन | सरकार को हस्ताक्षरकर्ता देशों की ओर से जारी दस्तावेजों को अस्वीकार नहीं करना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

8 Sep 2023 10:57 AM GMT

  • एपोस्टिल कन्वेंशन | सरकार को हस्ताक्षरकर्ता देशों की ओर से जारी दस्तावेजों को अस्वीकार नहीं करना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    Allahabad High Court

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारत सरकार चेतावनी दी है कि वो एपोस्टिल कन्वेंशन, 1961 की भावना को कायम रखे। भारत एपोस्टिल कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता है। यह कन्वेंशन एक हस्ताक्षरकर्ता देश के विदेशी सार्वजनिक दस्तावेजों को अन्य हस्ताक्षरकर्ता देशों में वैध बनाने की आवश्यकता को समाप्त कर देता है।

    कोर्ट बुधवार को गुयाना सरकार की ओर से जारी कुछ दस्तावेजों के आधार पर ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड देने की मांग करने वाले एक अमेरिकी नागरिक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    इस मामले में याचिकाकर्ता ने यह साबित करने के लिए गुयाना के जनरल रजिस्ट्रार के कार्यालय से प्राप्त दस्तावेज पेश किए थे कि उसके दादा-दादी अप्रवासी भारतीय थे।

    एक विदेशी नागरिक जो 26 जनवरी 1950 को भारत का नागरिक बनने के लिए पात्र था या 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद किसी भी समय भारत का नागरिक था या ऐसे क्षेत्र से संबंधित था जो 15 अगस्त 1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया और उसके बच्चे और पोते-पोतियां ओसीआई के रूप में पंजीकरण के लिए पात्र हैं।

    हालांकि, यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से पेश वकील ने दस्तावेजों पर जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा।

    जिसके बाद जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ को चेतावनी देने के ‌‌लिए मजबूर होना पड़ा, चूंकि भारत और गुयाना दोनों एपोस्टिल कन्वेंशन के पक्षकार हैं, इसलिए संघ को दस्तावेजों पर अविश्वास नहीं करना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा, यदि अन्य देशों के सरकारी अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेजों को अस्वीकार करने की प्रथा अपनाई जाती है, तो अन्य देश भारत सरकार द्वारा जारी दस्तावेजों को अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके दादा-दादी भारत के नागरिक थे और इलाहाबाद के थे। उन्हें कलकत्ता से जहाजों के माध्यम से गुयाना (ब्रिटिश गुयाना) भेज दिया गया। नगर निगम प्रयागराज ने अपने पूर्वजों से संबंधित दस्तावेज के लिए याचिकाकर्ता के अनुरोध को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उनके पास वर्ष 1900 से पहले का कोई दस्तावेज नहीं था। हालांकि, जौनपुर के ग्राम प्रधान ने एक पत्र जारी किया था, जिसमें पुष्टि की गई थी कि उनके दादा को अंग्रेज लेकर गए थे।

    याचिकाकर्ता ने अपने पति, जो एक भारतीय नागरिक हैं, के माध्यम से ओसीआई कार्ड और ओसीआई कार्ड के लिए वीजा रूपांतरण के लिए भी आवेदन किया था। हालांकि, इसे पूरी तरह से इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि विवाह सत्यापित नहीं किया जा सका।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ओसीआई कार्ड के लिए दस्तावेज प्राप्त करने के लिए उसे इलाहाबाद और जौनपुर के बीच दौड़ाया जा रहा था, हालांकि, अधिकारी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे। केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली में अपनी शिकायत दर्ज करने पर, उन्हें गृह मंत्रालय द्वारा राज्य अधिकारियों से संपर्क करने का निर्देश दिया गया था।

    याचिकाकर्ता ने यह साबित करने के लिए गुयाना के जनरल रजिस्ट्रार के कार्यालय से प्राप्त दस्तावेज अदालत के समक्ष पेश किए कि वास्तव में उसके दादा-दादी भारतीय अप्रवासी थे। इसने तर्क दिया कि चूंकि गुयाना और भारत दोनों, एपोस्टिल कन्वेंशन (5 अक्टूबर 1961 का कन्वेंशन जो विदेशी सार्वजनिक दस्तावेजों के लिए वैधीकरण की आवश्यकता को समाप्त करता है) के सदस्य हैं, गुयाना द्वारा जारी किया गया कोई भी दस्तावेज भारत में कानूनी रूप से मान्य होगा। ओसीआई कार्ड जारी करने के उद्देश्य से इसे मंत्रालय द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए था।

    कोर्ट ने तब मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राज्य गुयाना के राज्य दस्तावेजों पर या तो विश्वास कर सकता है या अविश्वास कर सकता है। कोर्ट ने कहा, कोई बीच का रास्ता नहीं है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों को जल्द से जल्द सुलझाया जाना चाहिए और राज्य के पदाधिकारियों को ओसीआई कार्ड देने के लिए लोगों को एक जिले से दूसरे जिले में नहीं दौड़ाना चाहिए।

    सुनवाई पूरी करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि सरकारी वेबसाइटें दस्तावेज़ अपलोड करने के लिए पर्याप्त डेट स्पेश प्रदान नहीं करती हैं, संपूर्ण दस्तावेज अपलोड करने के लिए प्रदान की गई 15KB बहुत कम है।

    कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश वकील को लिस्टिंग की अगली तारीख से पहले जरूरत पड़ने पर दूतावास के माध्यम से दस्तावेजों को सत्यापित करने का निर्देश दिया है।

    केस टाइटल: नारोमाटी देवी गणपत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 4 अन्य

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