संशोधित पैरोल नियम, जिसकी पूर्व शर्त यह है कि दोषी पिछली दो रिहाई पर समय पर जेल लौटा हो, तभी लागू होगी जब दोषी दो बार र‌िहा किया गया होः बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

17 July 2020 11:10 AM GMT

  • संशोधित पैरोल नियम, जिसकी पूर्व शर्त यह है कि दोषी पिछली दो रिहाई पर समय पर जेल लौटा हो, तभी लागू होगी जब दोषी दो बार र‌िहा किया गया होः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कोल्हापुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक के एक आदेश को रद्द कर दिया। जेल अधीक्षक ने अपने आदेश में तीन आवेदक दोषियों की पैरोल को खारिज का दिया था। आदेश में कहा गया था कि संशोधित पैरोल नियम में कहा गया है कि जिन दोषियों की अधिकतम सजा 7 साल से अधिक है, उन्हें आपातकालीन पैरोल पर रिहाई के लिए विचार किया जाएगा, यदि दोषी पिछले 2 रिहाइयों पर समय पर जेल में वापस आ गया है। यह नियम तभी लागू होता है, जब अपराधी को पैरोल या फर्लो पर दो बार रिहा किया गया हो।

    जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस माधव जामदार की खंडपीठ कोल्हापुर सेंट्रल जेल में बंद मिलिंद अशोक पाटिल, निशांत माने और अक्षय कोंडेकर (मृतक) की आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    तीनों याचिकाकर्ताओं और अन्य तीन सह-अभियुक्तों को 23 अप्रैल, 2018 को दोषी ठहराया गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कोल्हापुर ने उन्हें धारा 302, 307, 143, 147, 148, 323, 504, 506, 149 और आईपीसी की धारा 120-बी के साथ पढ़ें, के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया था, और आजीवन कारावास की सजा दी थी। उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 307, धारा 149 के साथ पढ़ें, के तहत दंडनीय अपराध के लिए भी छह साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    सभी छह दोषियों को कोल्हापुर जेल में रखा गया था। उन्होंने दोष सिद्धी और दंड के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, और वह लंबित है। इस बीच, एक सह-अभियुक्त अपीलकर्ता अक्षय कोंडेकर की जेल में मौत हो गई। याचिका में कहा गया है कि 15 जुलाई को, महाराष्ट्र में कुल 631 कैदियों को COVID-19 पॉजीटिव पाया गया, जिनमें 4 की मौत हो गई।

    याचिकाकर्ताओं ने शुरू में COVID-19 की महामारी, 25 मार्च, 2020 और 8 मई, 2020 को दिए गए राज्य उच्च शक्ति समिति के निर्णय और संशोधित महाराष्ट्र कारागार (मुंबई फर्लो और पैरोल) नियम, 1959 के मद्देनजर इमर्जेंसी पैरोल पर रिहाई की मांग की।

    15 जून को दिए एक आदेश में, कोर्ट ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं के पैरोल आवेदन पर फैसला करें और कोर्ट को 19 जून, 2020 को फैसलों से अवगत कराएं । जेल प्राधिकरण ने 16 जून को अलग-अलग तीन आदेशों के जर‌िए आपातकालीन पैरोल आवेदनों पर फैसला किया और तीनों याचिकाकर्ताओं के आवेदनों को खारिज कर दिया।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार, आपातकालीन पैरोल आवेदनों को 16 जून को अलग-अलग आदेशों के जर‌िए खारिज किया गया था, जिसका आधार यह था कि, अशोक और निशांत को एक बार फर्लो की छुट्टी पर छोड़ा गया था और वे समय पर वापस जेल लौट आए थे, हालांकि, संशोधित नियम 19 (i) (c) (ii) की शर्त यह है कि दोषी को अंतिम दो रिहाइयों (पैरोल या फर्लो) पर समय पर जेल में वापस लौटना होगा। मौजूदा मामले में दोनों समय पर वापस आ गए थे, लेकिन उन्हें केवल एक बार र‌िहा किया गया था, इसलिए, आपातकालीन पैरोल आवेदन को खारिज कर दिया गया।

    जहां तक ​​अक्षय की बात है, तो उन्हें कभी रिहा नहीं किया गया और / या उन्हें कभी भी फर्लो या पैरोल की छुट्टी नहीं मिली और इसलिए, उनका आवेदन खारिज कर दिया गया। इस बीच, मामले में दो अन्य दोषियों, प्रमोद शिंदे और महेश पाटिल, जो अशोक पाटिल के भाई हैं, को आपातकालीन पैरोल पर रिहा कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने नए संशोधित पैरोल नियम में रखी शर्त पूरी की ...

    याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट सतीश तालेकर और एडवोकेट माधवी अय्यप्पन ने दलील दी कि उत्तरदाता उक्त संशोधित पैरोल नियम की गलत व्याख्या कर रहे हैं और इस तरह की व्याख्या से न केवल गैरबराबरी पैदा होगी, बल्कि उक्त संशोधित पैरोल नियम को लागू करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

    संशोधित पैरोल नियम का हवाला देते हुए कहा, "यह बहुत स्पष्ट है कि उक्त संशोधित खण्ड (c) छोटी अवधि के लिए किया गया एक प्रावधान है। जिसका मकसद COVID-19 के संक्रमण को रोकने और कैदियों के स्वास्थ्य और कल्याण को ध्यान में रखना है। संशोधन का लक्ष्य जेलों में कैदियों के बीच अधिकतम संभव दूरी सुनिश्चित करना है, और COVID-19 के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करना है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि उक्त संशोधित प्रावधान कम अवधि के लिए किया गया है और जेल में भीड़ को कम करने के मकसद से किया गया है। "

    पीठ ने कहा कि आपातकालीन पैरोल देते हुए यह देखना है कि जेल में भीड़ कम हो, उसी समय, यह भी सुनिश्चित करना है कि आदतन अपराधी या कैदी, जिनके फरार होने की आशंका है, आपातकालीन पैरोल से वंचित रहें, इसलिए, पूर्वोक्त संशोधित नियम प्रभाव में लाया गया।जस्टिस जामदार ने कहा, "ऐसी शाब्दिक व्याख्या मुर्खता का कारण बन सकती है, और उक्त घटना में, संशोधित पैरोल नियम की शर्त को लागू करने का कोई मौका नहीं है।"

    कोर्ट ने कोल्हापुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक आदेश को रद्द कर दिया और उन्हें दो सप्ताह के भीतर नए सिरे से फैसला लेने का निर्देश दिया।

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