पत्नी का कथित सहज चरित्र उसके पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का संकेत नहीं, उकसावे के लिए आपराधिक मनःस्थिति आवश्यक तत्व पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 Jan 2022 10:45 AM GMT

  • पत्नी का कथित सहज चरित्र उसके पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का संकेत नहीं, उकसावे के लिए आपराधिक मनःस्थिति आवश्यक तत्व  पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है और कोई मृत्युपूर्व बयान या सुसाइड नोट नहीं है, तो केवल यह तथ्य कि वह कथित रूप से सहज चरित्र की महिला है, पत्नी द्वारा अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने और सहयोग देने का संकेत नहीं हैै।

    वर्तमान मामले में एक पति ने आत्महत्या कर ली थी और अपने बेटे का जीवन भी खत्म कर दिया था। उसने मरने से पहले अपनी पत्नी के अवैध संबंधों के बारे में एक नोट भी लिखा था। इसी मामले पर विचार करते हुए जस्टिस विकास बहल ने कहा है कि भले ही पत्नी पर सहज चरित्र होने का आरोप लगाया गया हो, परंतु यह उसके द्वारा अपने पति को आत्महत्या के अपराध के लिए उकसाने या उसका सहयोग करने का संकेत नहीं है।

    ''यहां 'उकसाना' शब्द का अर्थ कुछ कठोर या अनुचित कार्रवाई करने के लिए उकसाना या आग्रह करना है और आपराधिक मनःस्थित (mens rea)की उपस्थिति जांच की एक आवश्यक सहवर्ती वस्तु है।''

    मामला आवेदक-याचिकाकर्ता पत्नी के बयान पर दर्ज प्राथमिकी के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें उसने अपने पति द्वारा जहरीले पदार्थ का सेवन करने के बारे में संदेह व्यक्त किया था। आवेदक-याचिकाकर्ता ने संदेह जताया था कि उसका पति उससे नाराज था क्योंकि उसने पति के पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी दी थी। इसलिए उसने जहरीला पदार्थ खा लिया और 2 नवंबर 2020 को आत्महत्या कर ली।

    याचिकाकर्ता के वकील ने जोरदार तर्क दिया कि पूरी प्राथमिकी संदेह पर आधारित है और प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता को मृतक की आत्महत्या से जोड़ने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है।

    न तो मृतक ने अपनी पत्नी के खिलाफ उसकी कथित धमकी के बारे में कोई शिकायत की थी, और न ही उसके पास कोई सुसाइड नोट मिला था। उसकी मृत्यु से पहले दिया गया कोई बयान भी नहीं है। इतना ही नहीं एसपी (डी) जांच में इस आत्महत्या में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं पाई गई है। इसलिए वकील ने आग्रह किया कि याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत की प्रार्थना कृपया मंजूर की जाए।

    प्रतिवादी के वकील ने जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि हालांकि एसपी (डी) ने मामले की जांच की थी और याचिकाकर्ता के पक्ष में निष्कर्ष निकाला है, लेकिन वह अभी भी एसएसपी के समक्ष लंबित है और इस प्रकार, इस स्तर पर जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

    अदालत ने पंजाब राज्य बनाम कमलजीत कौर उर्फ भोली व अन्य के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का उल्लेख किया। इस मामले में आरोपी पर अपने पति को आत्महत्या को उकसाने का आरोप लगाया गया था और उसने भी अपने बेटे की जान ले ली थी। अदालत ने इस मामले में कहा था कि यद्यपि आरोप केवल संदेह के आधार पर तय किए जा सकते हैं और सबूतों को सावधानी से देखने की आवश्यकता नहीं है, हालांकि, यदि अभियुक्त के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है और भारतीय दंड संहिता की धारा 107 के प्रावधान भी पूरे नहीं हो रहे हैं तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है।

    उपरोक्त निर्णय पर विचार करते हुए, हाईकोर्ट ने वर्तमान मामले में कहा कि आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध के लिए, आईपीसी की धारा 107 में निर्धारित सामग्री को पूरा किया जाना चाहिए। 'उकसाना' प्रोत्साहन देने या बढ़ावा देने को दर्शाता है और वर्तमान मामले में उकसाने का कोई सबूत नहीं मिला है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि ''एक महिला एक बुरी पत्नी हो सकती है लेकिन उसका आचरण मृतक को आत्महत्या करने के लिए उकसाने के उद्देश्य से नहीं था।''

    एक अन्य फैसले, माया बनाम पंजाब राज्य का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दी गई कथित धमकियों के संबंध में मृतक ने कोई शिकायत नहीं की थी,कोई सुसाइड नोट या कोई मृत्युपूर्व दिया गया बयान नहीं है। इसलिए प्रथम दृष्टया, पत्नी के खिलाफ कोई मामला नहीं है।

    अदालत ने वर्तमान याचिका को अनुमति दे दी और याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देते हुए निर्देश दिया है कि वह जांच अधिकारी की संतुष्टि के लिए व्यक्तिगत बांड और सीआरपीसी की धारा 438 (2), के तहत शर्तों को पूरा करें।

    केस का शीर्षक- माम गुर्जर उर्फ माम हुसैन बनाम पंजाब राज्य

    केस उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (पीएच) 13

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story