यौन उत्पीड़न के आरोप बढ़ रहे हैं; जमानत याचिका पर विचार करते समय एफआईआर दर्ज करने में अत्यधिक देरी पर विचार किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Brij Nandan

24 Feb 2023 4:43 AM GMT

  • यौन उत्पीड़न के आरोप बढ़ रहे हैं; जमानत याचिका पर विचार करते समय एफआईआर दर्ज करने में अत्यधिक देरी पर विचार किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक विवाहित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने के आरोपी दो पुरुषों को जमानत दे दी। कोर्ट ने जमानत देते हुए इस बात पर जोर दिया कि जमानत याचिका पर विचार करते समय प्राथमिकी दर्ज करने में अत्यधिक देरी पर विचार किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने ये भी देखा कि यौन अपराधों में झूठे आरोप बढ़ रहे हैं।

    जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने आगे कहा कि 1983 के एक मामले (भारवाड़ा भोगिनभाई हिरजीभाई बनाम गुजरात राज्य) में सर्वोच्च न्यायालय की राय के बाद से गंगा में बहुत पानी बह चुका है कि गैर-अनुमतिहीन भारतीय समाज में बदनाम होने से बचने के लिए कोई भी लड़की किसी भी व्यक्ति के खिलाफ यौन उत्पीड़न का झूठा मामला दर्ज नहीं कराएगी।

    क्या है पूरा मामला?

    अभियुक्तों ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि पीड़िता, शिकायतकर्ता और आवेदक 'जनेऊ क्रांति अभियान' के नाम से चलाए जा रहे एक ही संगठन में कार्यरत थे। दरअसल, पीड़िता संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष थी और उसका पति/शिकायतकर्ता कोषाध्यक्ष था।

    आरोपियों पर आरोप है कि उन्होंने 1 जुलाई 2019 को कथित पीड़िता के साथ वाराणसी में उसके कमरे में दुष्कर्म किया। हालांकि, कथित पीड़िता ने घटना की जानकारी अपने पति (शिकायतकर्ता) को 3 अगस्त, 2019 को ही दी, जब वह मेरठ (वाराणसी से) पहुंची।

    इसके बाद, 5 अगस्त, 2019 को पुलिस स्टेशन में शिकायतकर्ता द्वारा आरोपों से युक्त आवेदन दिया गया और धारा 376-डी, 342, 506 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया।

    उस प्राथमिकी को वाराणसी पुलिस द्वारा एस.एस.पी. मेरठ द्वारा भेजे गये पत्र पर जांच के लिए भेजा गया था क्योंकि मामला जिला वाराणसी के अधिकार क्षेत्र में आता है। एफआईआर 9 सितंबर, 2019 को दर्ज किया गया था। आरोपियों को फरवरी-मार्च 2020 में मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था और इसलिए, उन्होंने मामले में जमानत के लिए तत्काल याचिका दायर की।

    न्यायालय के समक्ष दी गईं दलीलें

    अभियुक्त/आवेदक ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि उन्हें मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है क्योंकि उन्होंने पीड़िता और आश्रम के अन्य कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही अवैध गतिविधियों के बारे में पूछताछ की थी।

    ये प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन पक्ष ने नए गवाह पेश करके अतिरिक्त सबूत बनाए थे और एस.एस.पी., मेरठ के समक्ष उनके हलफनामे दायर किए थे, जो कानून में स्वीकार्य नहीं हैं।

    महत्वपूर्ण रूप से, आवेदक ने आगे कहा कि आवेदक-चंदन कुमार द्वारा संगठन के संस्थापक (भगवान चंद्र मोहन) की अवैध गतिविधियों से संबंधित एक व्हाट्सएप ग्रुप में कई मैसेज पोस्ट करने के तुरंत बाद आवेदक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। यह भी कहा गया कि घटना का कथित चश्मदीद भी संगठन का सदस्य है।

    अंत में यह प्रस्तुत किया गया कि सभी के पास मोबाइल है और पीड़िता अपने पति को मोबाइल पर ही घटना के बारे में बता सकती थी और अंकित या खुद के माध्यम से वाराणसी में प्राथमिकी दर्ज करवा सकती थी और प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए मेरठ जा सकती थी। एफआईआर दर्ज करने में देऱी शिकायतकर्का के दुर्भावनापूर्ण इरादे की बात करता है जो कि तांत्रिक चंद्र मोहन के इशारे पर आवेदकों को फंसाने के लिए है।

    दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि आवेदकों ने पीड़िता के साथ गैंगरेप का जघन्य कृत्य किया है और भारतीय समाज में यह संभव नहीं है कि एक महिला पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया जाए।

    यह भी तर्क दिया गया कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी स्वाभाविक है क्योंकि पीड़ित भारतीय मूल्यों के कारण अत्यधिक दबाव में थी कि वह उसके साथ किए गए कृत्य को प्रकट न करे। वह अपने कमरे में अकेली पाई गई थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-ए के प्रावधानों के अनुसार, पीड़िता के बयान की पुष्टि की आवश्यकता नहीं है और उस पर भरोसा किया जाना चाहिए।

    कोर्ट मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और मामला दर्ज करने में अत्यधिक देरी के तथ्य पर विचार करते हुए आवेदकों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

    आवेदकों के लिए वकील: पुलक गांगुली, वीरेंद्र कुमार मिश्रा, सुधीर मेहरोत्रा

    विरोधी पक्षों के वकील: आगा वी.के.एस. परमार, शिवम यादव, आदित्य यादव

    केस टाइटल - संदीप कुमार मिश्रा बनाम यूपी राज्य

    केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (इलाहाबाद) 74

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